हस्त रेखा कितने प्रकार की होती है?

जिन मनुष्यों ने हस्त विज्ञान की खोज की उसे समझा और व्यावहारिक रूप दिया आज भी उनकी विद्वता के ठोस प्रमाण मौजूद हैं। भारत के ऐतिहासिक युग के स्मारक हमें बताते हैं कि रोम एवं यूनान की स्थापना से सौ वर्ष पूर्व इस देश के मनुष्यों ने ज्ञान का इतना अमूल्य भंडार एकत्र कर लिया था कि उसकी सराहना समूचे विश्व में हुआ करती थी और इन्हीं विद्वानों में हस्तरेखा विज्ञान के जन्म दाता भी थे, उन्हीं के बनाये हुए सिद्धांत अन्य देशों में पहुंचे। हस्तरेखा से संबधित अब तक जितने भी प्राचीन ग्रन्थ पाये गये हैं। उनमें वेद एवं सामुद्रिक शास्त्र सबसे प्राचीन धर्मग्रन्थ है।

यही वेद और शास्त्र यूनानी सभ्यता और ज्ञान के मूल स्रोत थे। अत्यन्त प्राचीन युग में इस विज्ञान का प्रचलन चीन, तिब्बत, ईरान और मिश्र जैसे देशों में प्रारम्भ हुआ लेकिन इन देशों में इसमें जो सहयोग स्पष्टता और एकरूपता हमें दिखायी देती है वह वास्तव में भारतीय सभ्यता की देन है। जगत भर में भारतीय सभ्यता को सर्वाधिक उच्च और विवेकपूर्ण माना जाता रहा है । जिसे हम हस्तरेखा विज्ञान या कीरोमेंसी कहते हैं वह भारत के अलावा यूनान में भी पला और पनपा। यूनानी शब्द कीर का अर्थ है जो हांथ से विकसित हुआ हो। उन्नीसवीं शताब्दी में उत्पीड़न की अग्नि में भी सुरक्षित रहकर फेनिक्स ने इस ज्ञान की सुरक्षा के निरन्तर प्रयास किये और जिस विज्ञान को अन्धविश्वास घोषित किया जा चुका था, वह एक बार फिर सत्य बनकर सामने आया । इस प्रकार के अनेक प्रमाण हैं जो इसकी सत्यता को साबित करते हैं कि यह एक सत्य और प्रमाणिक विज्ञान है। ईसा से 423 वर्ष पूर्व यूनानी दार्शनिक एनेक्सागारेस कीरोमेंसी का उपयोग ही नहीं शिक्षा भी देता था। इन्हीं की तरह अरस्तु विलसाइड फिनिक्स ने जोहिस्पनेस को इस विज्ञान पर एक किताब लिखकर दी थी। उसमें उसने लिखा कि यह ग्रन्थ एक ऐसा अध्ययन है जो जिज्ञासु एवं सुविकसित मस्तिष्क वाले व्यक्तियों के पढ़ने योग्य है।

इन विद्वानों ने जब मानव का अध्ययन किया तो मानव के चेहरे, उसकी नाक, कान, आंख, आदि की स्वाभाविक स्थिति को भली-भांति पहचान लिया। इसी प्रकार मानव की हथेली में बनी मस्तिष्क रेखा और जीवन रेखा की जानकारी प्राप्त करके उनकी स्वाभाविक स्थिति को मान्यता प्रदान कर दी गई। इस विज्ञान की खोज और अध्ययन में उन विद्वानों ने जो साधना की, जो समय लगाया उसी के कारण वे हथेली की रेखाओं और चिह्नों को ये नाम दे पाये, जिस रेखा का मस्तिष्क से संबंध था उसे मस्तिष्क रेखा नाम दिया गया। इसी प्रकार स्नेह से संबंधित रेखा को हृदय रेखा तथा जीवन की अवधि से संबंधित रेखा को जीवन रेखा का नाम दिया। इसी तरह चिह्न और पर्वतों के भी उन्हीं के अनुरूप नाम रख दिये।

रेखा विज्ञान की सत्यता

किसी विषय पर तभी विश्वास होता है जब उसे अन्तरात्मा द्वारा देख या समझ लिया जाए। एक अणु को भी अपने अस्तित्व में अध्ययन के अयोग्य ठहराना उचित नहीं होगा। यदि कोई व्यक्ति यह धारणा बना ले कि हस्त विज्ञान विचारणीय विषय नहीं है, तो यह उसका कोरा भ्रम है, क्योंकि अनेक बड़ी-बड़ी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सच्चाइयां और वास्तविकताएं जिन्हें कभी नगण्य समझा जाता था वे अब असीमित शक्ति का साधन बन गयी हैं। हस्तविज्ञान के अध्ययन में और उसे विकसित करने में अनेक दार्शनिक और वर्तमान काल के वैज्ञानिकों ने भी ध्यान दिया। हां, जब हम मनुष्यों की क्रियाशीलता और उसके पूरे शरीर पर प्रभाव के बारे में विचार करते हैं तो यह जानकर आश्चर्य नहीं होता कि जिन्हें वैज्ञानिकों ने पहले प्रमाणित किया था कि मानव मस्तिष्क और उसके हाथों के बीच जितने स्नायु हैं उतने शारीरिक व्यवस्था में और कहीं नहीं हैं।भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वभाव, संस्कार, प्रकृति और मानसिक स्थिति के व्यक्तियों के हाथों में भिन्न-भिन्न अन्तर होता है।

जगत में ऐसी अनेक आश्चर्यजनक सच्चाइयां हैं जिन पर शताब्दियों के कालक्रम ने धूल जमा दी थी, लेकिन मानव के विवेक ने उसे पुन: खोज निकाला और अब इस विज्ञान की सच्चाई पर विश्वास होने लगा। अब प्रमाणित हो गया है कि हाथ की रेखाएं एक ऐसा अमिट सत्य है जो व्यक्ति के जीवन और उसकी प्रकृति को स्पष्ट रूप से प्रकट करता है। आज भौतिक युग में जो लोग इस विज्ञान की सच्चाई के प्रभाव को जानना चाहते हैं उन्हें याद रखना चाहिये कि यह विज्ञान हमें शताब्दियों पूर्व प्राप्त हुआ था और वह विज्ञान आज भी अभीष्ट सिद्धि है। ईश्वर ने मनुष्य के हाथ में ग्रहों की सृष्टि किसी विशेष सिद्धांत को लेकर की है, अत: हस्त परीक्षा के समय ज्योतिषी को ग्रहों का वास्तविक स्वरूप समझते हुए जिज्ञासुओं के हाथ में ग्रह स्थानों की उपस्थिति-अनुपस्थिति तथा उनका आपस में एक दूसरे की ओर झुकाव देखकर ही किसी मनुष्य का स्वभाव बतलाना चाहिये। ध्यान रहे कि हाथ में एक ग्रह-स्थान का आवश्यकता से अधिक ऊंचा होना या उससे सर्वथा अभाव अच्छा नहीं होता। इसके अतिरिक्त यदि किसी हाथ में एक ग्रह स्थान दूसरे ग्रह-स्थान के पास पड़ा हो, तो उन दोनों के गुणों में परस्पर मिल जाने के कारण मानव के स्वभाव में भी निश्चय ही बहुत कुछ विलक्षणता आ जाती है। मान लीजिये किसी के हाथ में गुरु का स्थान शनि के स्थान की ओर झुका हुआ है तब उसका फल यह होगा कि आप जनता पर शासन करने की अभिलाषा रखते हैं। इसी तरह गुरु के लक्षण गुरु में सम्मिलित पाये जायेंगे।

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