गुप्त नवरात्रि में है तंत्र विद्या का महत्व, जानिए कब से हो रहें शुरू: Ashadha Gupt Navratri 2023
Ashadha Gupt Navratri 2023

Ashadha Gupt Navratri 2023: हिन्दू धर्म में चार बार नवरात्रि का पावन त्यौहार आता है, जिसमें दो प्रकट और दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। प्रकट नवरात्रि यानी चैत्र और शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की सार्वजानिक तौर पर पूजा-अर्चना की जाती है। जबकि गुप्त यानी माघ और आषाढ़ नवरात्रि में गुप्त तरीके से मां दुर्गा की आराधना होती है। जल्द ही आषाढ़ में गुप्त नवरात्रि आने वाली है, जो मां दुर्गा के भक्तों के लिए बेहद शुभ समय है। गुप्त नवरात्रि में तंत्र विद्या का बहुत महत्व होता है। वहीं गुप्त और प्रकट नवरात्रि की पूजा विधि बहुत ही अलग होती है। आज इस लेख में हम आपको गुप्त नवरात्रि से जुड़ी सभी जानकारियों से अवगत करवाएंगे।

कब से शुरू हो रहे हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि

Ashadha Gupt Navratri 2023
Ashadha Gupt Navratri

गुप्त नवरात्रि माघ और आषाढ़ महीने में आते हैं। 19 जून 2023 से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत होने जा रही है, जो 28 जून 2023 तक चलेंगे। पंचांग के अनुसार, 19 जून को सुबह 06:05 बजे से लेकर 08:04 तक के बीच घटस्थापना की जाएगी। इसके अलावा अभिजित मुहूर्त में सुबह 11:55 से लेकर दोपहर 12:50 बजे तक भी घटस्थापना की जा सकती है।

गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की पूजा

प्रकट नवरात्रि में मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चन्द्रघण्टा, मां कूष्माण्डा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। जबकि गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं मां काली, मां तारा, मां त्रिपुरासुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुराभैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला की पूजा अर्चना होती है।

10 महाविद्याओं की पूजा का महत्त्व

पहला दिन: गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की आराधना की जाती है, इस दिन सच्चे मन से पूजा करने से श्रद्धालु विरोधियों और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।

दूसरा दिन: इस दिन मां तारा की पूजा की जाती है, जिससे आर्थिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति होती है। मान्यता है कि महर्षि वशिष्ठ ने सर्वप्रथम महाविद्या तारा की उपासना की थी। मां तारा को तांत्रिकों की देवी माना जाता है।

तीसरा दिन: तीसरे दिन महाविद्या मां त्रिपुरासुंदरी की उपासना होती है। मान्यता है कि भगवती त्रिपुरासुंदरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष प्राप्त होता है।

चौथा दिन: इस दिन मां भुवनेश्वरी की आराधना का नियम है। इस दिन सच्चे मन से पूजा अर्चना करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति होती है।

पांचवा दिन: इस दिन मां छिन्नमस्ता की पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन शांत मन से पूजा करने से माता के शांत स्वरूप के दर्शन होते हैं जबकि उग्र रूप से की गई साधना से माता का उग्र रूप प्रकट होता है।

छठा दिन: इस दिन माता त्रिपुराभैरवी की पूजा करने से साधक जीवन के सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है।

सातंवा दिन: सातंवे दिन माता धूमावती की उपासना होती है, इस दिन साधना करने से साधक के सभी संकट दूर हो जाते हैं।

आठवां दिन: इस दिन मां बगलामुखी की आराधना करने से भय से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक को वाक सिद्धियां प्राप्त होती है।

नौंवा दिन: इस दिन मां मातंगी की आराधना की जाती है। इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा से गृहस्थ जीवन में खुशहाली आती है।

दसवां दिन: गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन माता कमला की आराधना की जाती है।

कैसे करें पूजा

Puja
Puja

गुप्त नवरात्रि देवी मां की पूजा करने से साधक को अपने सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन पूजा के लिए साधक को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए। तन-मन से पवित्र होने के बाद साधक एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर गंगाजल से पवित्र करने के बाद देवी मां की मूर्ति की स्थापना करें। पूजा विधि को आरम्भ करने से पहले सकोरे में (कटोरे के आकार का मिट्टी का बर्तन) मिट्टी डालकर जौ बोएं। इसके बाद घटस्थापना और अखंड ज्योत प्रज्वलित करें। सच्च मन से दुर्गासप्तशती का पाठ और मंत्र जाप कर पूजा को पूर्ण करें।