पाकिस्तान के विषय में कई तरह के कयास हमारे देश में लगाए जाते हैं तथा कई तरह के प्रश्न भी हम सभी के मन में उठते हैं। अक्सर मन में उठने वाला एक ऐसा ही प्रश्न है कि क्या पाकिस्तान में कोई हिन्दू मंदिर अब भी है। हम सभी के मन में उठने वाले इस प्रश्न का उत्तर है रीमा अब्बासी की पुस्तक ‘हिस्टोरिक टेम्पल्स इन पाकिस्तान अ कॉल टू कॉन्शन्स, जिसमें पाकिस्तान के प्रमुख ऐतिहासिक मंदिरों की झलक चित्रों सहित प्रस्तुत की गई है। पाकिस्तान में स्थित प्रमुख हिन्दू मंदिरों के बारे में जानने के लिए पढ़ें यह लेख।
कटास राज मंदिर, चकवाल-
पाकिस्तान में सबसे बड़ा मंदिर शिवजी का कटासराज मंदिर है, जो लाहौर से 270 किमी की दूरी पर चकवाल जिले में स्थित है। इस मंदिर के पास एक सरोवर है। कहा जाता है कि मां पार्वती के वियोग में जब शिवजी की आंखों से आंसू निकले तो उनके आंसुओं की दो बूंदे धरती पर गिरीं और आंसुओं की यही बूंदे एक विशाल कुंड में परिवर्तित हो गईं। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से मानसिक शांति मिलती है और दुख-दरिद्रता से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही यहां एक गुफा भी है। इसके बारे में कहा जाता है कि सरोवर के किनारे पांडव अपने वनवास के दौरान आए थे। इसी कटासराज सरोवर के किनारे यक्ष ने युधिष्ठिर से यक्ष प्रश्न किए थे जो इतिहास में अमर सवाल बनकर दर्ज हो गए। शिव मंदिर के अलावा कटासराज में राम मंदिर और अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं जिन्हें सात घरा मंदिर परिसर कहा जाता है। मंदिर परिसर में हरि सिंह नलवा की प्रसिद्ध हवेली भी है।
पंचमुखी हनुमान मंदिर, कराची-
1500 साल पुराना हनुमान के पांच सिर वाली मूर्ति वाला मंदिर भी कराची के शॉल्जर बाजार में बना है। इस मंदिर में जोधपुर की नक्काशी की झलक दिखाई देती है।
हिंगलाज माता मंदिर, बलूचिस्तान-
इस मंदिर की गिनती देवी के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में होती है। कहा जाता है कि इस जगह पर आदिशक्ति का सिर गिरा था। यह मंदिर बलूचिस्तान के ल्यारी जिला के हिंगोल नदी के किनारे स्थित है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह जगह इतनी खूबसूरत है कि यहां आने वाले व्यक्ति का मन वापस लौटने का नहीं होता। कहते हैं कि सती की मृत्यु से नाराज भगवान शिव ने यहीं तांडव खत्म किया था। एक मान्यता यह भी है कि रावण को मारने के बाद राम ने यहां तपस्या की थी। हिंगलाज माता मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां गुरु नानक देव भी दर्शन के लिए आए थे। हिंगलाज माता मंदिर एक विशाल पहाड़ के नीचे पिंडी के रूप में विद्यमान है जहां माता के मंदिर के साथ-साथ शिव का त्रिशूल भी रखा गया है। हिंगलाज माता के लिए हर साल मार्च-अप्रैल महीने में लगने वाला मेला न केवल हिन्दुओं में बल्कि स्थानीय मुसलमानों में भी बहुत लोकप्रिय है। ऐसा कहा जाता है कि दुर्गम पहाड़ी और शुष्क नदी के किनारे स्थित माता हिंगलाज का मंदिर दोनों धर्मावलंबियों के लिए अब समान रूप से महत्त्वपूर्ण हो गया है।
गौरी मंदिर, थारपारकर-
यह सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में स्थित है। पाकिस्तान के इस जिले में हिंदू बहुसंख्यक हैं और इनमें अधिकतर आदिवासी हैं। पाकिस्तान में इन्हें थारी हिंदू कहा जाता है। गौरी मंदिर मुख्य रूप से जैन मंदिर है, लेकिन इसमें अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं। इस मंदिर की स्थापत्य शैली भी राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बसे माउंट आबू में स्थित मंदिर जैसी ही है। इस मंदिर का निर्माण मध्य युग में हुआ था।
गोरखनाथ मंदिर, पेशावर-
पाकिस्तान के पेशावर में मौजूद ये ऐतिहासिक मंदिर 160 साल पुराना है। ये बंटवारे के बाद से ही बंद पड़ा था और यहां रोजाना का पूजा-पाठ भी बंद पड़ा था। पेशावार हाई कोर्ट के आदेश पर छह दशकों बाद नवंबर 2011 में इसे दोबारा खोला गया।
श्रीवरुण देव मंदिर, मनोरा कैंट, कराची-
1000 साल पुराना यह मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए मशहूर है।
साधु बेला मंदिर, सुक्कुर-
सिंध प्रांत के सुक्कुर में बाबा बनखंडी महाराज 1823 में आए थे। उन्होंने मेनाक परभात को एक मंदिर के लिए चुना। आठवें गद्दीनशीं बाबा बनखंडी महाराज की मृत्यु के बाद संत हरनाम दास ने इस मंदिर का निर्माण 1889 में कराया। यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए पूजा करने की अलग-अलग व्यवस्था है। यहां होने वाला भंडारा पूरे पाकिस्तान में मशहूर है।
मरी सिन्धु मंदिर परिसर, पंजाब-
मरी इंडस के नाम से मशहूर यह मंदिर परिसर पहली शताब्दी से पांचवी शताब्दी के बीच बनाया गया है। मरी उस वक्त गांधार प्रदेश का हिस्सा था और चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी मरी का जिक्र यह कहते हुए किया है कि इस पूरे इलाके में हिन्दू और बौद्ध मंदिर खत्म हो रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान और दुनिया के आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि मरी के मंदिर सातवीं शताब्दी के बाद के हो सकते हैं क्योंकि इन मंदिरों के स्थापत्य में कश्मीर की स्थापत्य शैली स्पष्ट रूप से दिखाई देती है जो इस क्षेत्र में इस्लामिक आक्रमण के बाद विकसित हुई है। आधुनिक अन्वेषण शास्त्री इन मंदिर समूहों को साल्ट रेन्ज टेम्पल्स भी कहते हैं। इतिहासकारों का एक वर्ग यह भी कहता है कि ये मंदिर राजपूतों द्वारा बनवाए गए हो सकते हैं जिन्होंने यहां शासन किया था।