Avdheshanand Giri Ji Maharaj
Avdheshanand Giri Ji Maharaj

Avdheshanand Giri Ji Maharaj: अवधेशानंद जी महाराज ने गृहस्थ जीवन के लिए तीन प्रमुख बातें बताई हैं, जो न केवल सांसारिक सफलता बल्कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक हैं।

गृहस्थ को तीन कार्य करने चाहिए, चौथा कुछ भी नहीं। पहला – ज्ञानार्जन, दूसरा – धनार्जन और तीसरा – पुण्यार्जन।

ज्ञान का अर्जन करो। परंतु ज्ञान का अर्थ केवल डिग्रियाँ प्राप्त करना नहीं है। यह भी एक महत्वपूर्ण बात है, लेकिन ज्ञान इससे कहीं अधिक व्यापक है। सूचना की तकनीक और संचार की क्रांति दरवाजे पर खड़ी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग आ चुका है। आज भारत का बच्चा-बच्चा इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, और विदेशी भी इस बात पर चकित हैं कि भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी अग्रणी बन चुका है।

जिस देश के पास मेधा हो, प्रज्ञा हो, जिसकी चेतना तप में डूबी हो, सत्य का अनुभव किया हो – उस देश के लिए ज्ञान का पथ ही सर्वोपरि है।

दूसरी बात जो गृहस्थ को करनी चाहिए वह है – धनार्जन!

कोई कह सकता है, “हम तो धन कमाने का प्रयास कर ही रहे हैं, तीसरा कार्य बताइए?”

परंतु पहले कार्य को ही ठीक से समझा नहीं गया है। ज्ञान ही नहीं है, तो धन भी अस्थायी रहेगा। यदि धन के साथ विवेक नहीं जुड़ा, तो वह नष्ट हो सकता है। इसलिए धनार्जन करते समय भी ज्ञान आवश्यक है।

तीसरा कार्य है पुण्यार्जन, अर्थात् सत्कर्म करना। केवल धन का अर्जन ही पर्याप्त नहीं, पुण्य भी अर्जित करना चाहिए।

तप! तप! तप!

ब्रह्मा जी को जब आत्मबोध हुआ, तो उन्हें पहला संदेश क्या मिला? तप!

और पहला तप क्या है? सत्य!

सत्य ही सबसे बड़ा तप है। सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है। यही कारण है कि शास्त्रों में कहा गया है –

सत्य व्रतम! सत्य परम! त्रि सत्यम!

सत्य के बिना कोई भी सफलता स्थायी नहीं रह सकती। सत्य से बड़ा कोई नियम नहीं, सत्य से बढ़कर कोई सिद्धांत नहीं।

एक सच्ची घटना का उल्लेख करते हुए महाराज जी कहते हैं –

एक व्यक्ति महापुरुष के पास गया और बोला, “महाराज, मैं और मेरी पत्नी धन की कामना रखते हैं। हमें बहुत धन चाहिए। क्या हमारी यह इच्छा अनुचित है?”

महाराज ने उत्तर दिया, “धन ही चाहते हो, या कीर्ति भी?”

व्यक्ति बोला, “धन के साथ कीर्ति भी!”

महाराज मुस्कुराए और बोले –

सत्यानुसारण लक्ष्मी! त्यागानुसारण कीर्ति!

सत्य का अनुसरण करने से लक्ष्मी स्वयं चली आती है और त्याग का अनुसरण करने से कीर्ति प्राप्त होती है।

लक्ष्मी को सत्य अच्छा लगता है। मन, वचन और कर्म – जो भी सत्य के मार्ग पर चलता है, लक्ष्मी उसे स्वयं खोज लेती है। यही कारण है कि लक्ष्मी ने स्वयं सत्यनारायण को अपना स्वामी चुना।

सत्य ही सच्ची संपत्ति है

मनसा – विचारों में सत्य।

वाचा – वाणी में सत्य।

कर्मणा – कर्म में सत्य।

जो इस मार्ग पर चलता है, वही सच्चे अर्थों में सफल होता है। सत्य का अनुसरण कठिन हो सकता है, लेकिन जो इस पर अडिग रहता है, उसे ही सच्ची संपत्ति प्राप्त होती है – धन, कीर्ति और पुण्य।

इसलिए जीवन में इन तीन बातों को अपनाना चाहिए –

ज्ञानार्जन – क्योंकि बिना ज्ञान के जीवन दिशाहीन होता है।

धनार्जन – क्योंकि गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए धन आवश्यक है।

पुण्यार्जन – क्योंकि पुण्य ही वह निधि है, जो हमें सच्चे सुख और शांति की ओर ले जाती है।

अंततः, सत्य ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है।

सत्य व्रतम! सत्य परम! त्रि सत्यम!

जो सत्य का अनुसरण करता है, लक्ष्मी उसी का वरण करती है। जो त्याग करता है, कीर्ति उसी के पीछे-पीछे चलती है। इसीलिए, जीवन में सत्य का दृढ़ता से पालन करें और पुण्य के मार्ग पर आगे बढ़ें।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...