Vikram or Betaal Story in Hindi : राजा विक्रम हमेशा की तरह शव को कंधे पर लेकर चल पड़ा और बेताल कहानी सुनाने लगा।
वाराणसी में एक ब्राह्मण रहता था। उसकी एक सुंदर पुत्री थी, ‘लीलावती’। ब्राह्मण के पास पुत्री के विवाह के लिए पर्याप्त धन नहीं था।
एक रात, लीलावती गहरी नींद में थी। तभी कमरे में एक चोर घुस आया। अचानक लीलावती की आंख खुली तो उसने कमरे के कोने में एक सुंदर युवक को छिपे देखा।
लीलावती ने पूछा :- “तुम कौन हो? मेरे कमरे में क्यों छिप रहे हो?”
उस युवक ने उत्तर दिया है :- “कृपया! शोर न मचाना। मैं यहां कुछ चुराने नहीं आया। मैं यहां राजा के सैनिकों से बचने के लिए छिपा हूं। मैं एक धनी व्यापारी को लूटने की कोशिश कर रहा था। तभी सैनिकों की नज़र मुझ पर पड़ गई और वे मेरा पीछा करने लगे। कृपया! मेरी मदद करें।”
थोड़ी ही देर में राजा के सिपाही वहां आ पहुंचे। लीलावती ने उस युवक को अलमारी के पीछे छिपने के लिए कहा। सिपाही लीलावती के पिता से सवाल-जवाब कर लौट गए।
अगली सुबह, लीलावती ने उस युवक से अपना प्रेम प्रकट किया और वे दोनों विवाह-सूत्र में बंध गए। उस युवक ने सारा चुराया हुआ धन लीलावती के पिता को दे दिया व उसी घर में रहने लगा।
वे खुशी-खुशी रह रहे थे। कुछ माह बाद, लीलावती गर्भवती हुई। उसका पति किसी काम की तलाश में, दूसरे शहर चला गया। जब वह काफी समय तक नहीं लौटा, तो लीलावती ने उसका अता-पता जानना चाहा। पता चला कि उसने राजा के महल में चोरी करने की कोशिश की थी, राजा ने उसे फांसी की सजा दे दी।

इस घटना के बाद, लीलावती के पिता पुत्री के भविष्य के लिए चिंतित रहने लगे। उन्होंने कुछ सप्ताह बाद, लीलावती का विवाह दूसरे युवक से कर दिया व कुछ समय बाद लीलावती ने एक पुत्र को जन्म दिया। कोई भी नहीं जान पाया कि बच्चे का असली पिता कौन था? लीलावती अपने नए पति के साथ बच्चे को प्यार से पालने लगी। बदकिस्मती से बालक अभी आठ वर्ष का ही था कि लीलावती बीमार पड़ी व चल बसी।
उसकी मृत्यु के बाद लीलावती का पति उस बालक को स्नेह से पालने लगा। वह बालक एक समझदार युवक बना और उसने पिता के व्यवसाय का सारा भार संभाल लिया।
कुछ वर्ष बाद, उस युवक के पिता भी चल बसे और वे अकेले रह गया। उसने पिता का अंतिम संस्कार किया व पारिवारिक व्यवसाय संभालने लगा।

एक वर्ष बाद लीलावती का पुत्र हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे पहुंचा। वह अपने दिवंगत माता-पिता को जलांजलि देना चाहता था। जब वह पूजा करने लगा तो गंगा में से तीन हाथ निकल आए। वह उलझन में पड़ गया। उसने पहले हाथ को छू कर पूछा तुम कौन हो?”
हाथ ने कहा। :- “मैं तुम्हारी मां हूं, पुत्र!” युवक ने बड़े भक्ति-भाव से मां को अपनी श्रद्धांजलि दी।
फिर उसने पूछा :- “दूसरा हाथ किसका है?”
“मैं तुम्हारा पिता हूं।” एक आवाज आई।
“तो फिर ये तीसरा हाथ किसका है?” युवक काफी उलझन में था।
तीसरे हाथ ने भी कहा:- “मैं तुम्हारा पिता हूं।”

युवक ने कहा :- “मेरे दो-दो पिता कैसे हो सकते हैं?” दूसरा हाथ उस चोर का था। उसने युवक को सारी कहानी बता दी। तभी तीसरे हाथ ने कहा :- “बेटा! मुझे नहीं पहचानते?”
मैं तुम्हारा पालक पिता हूं। “मैंने ही तो तुम्हें पाल-पोस कर इतना बड़ा किया है।”
अब युवक को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने पिता के रूप में पूजा किसे चढ़ाए।

बेताल ने यहां कहानी समाप्त कर विक्रमादित्य से पूछा :- “बता बुद्धिमान विक्रम! उस युवक का असली पिता कौन था? उसे किसे श्रद्धांजलि देनी चाहिए?”
राजा ने गंभीरतापूर्वक सोच कर कहा :- “बेताल, जिसने बच्चे को पाला-पोसा, उसे ही असली पिता होने का अधिकार है। चोर ने बालक को जन्म तो दिया, किंतु दूसरे व्यक्ति ने उस बालक का पालन-पोषण किया इसलिए वही असली पिता है।”
राजा के जवाब देते ही, बेताल फिर से पीपल के वृक्ष की ओर उड़ चला।
