Hindi Kahani: मगर भागवती अथवा भागो उसके बीते कल के कारण इस छोटी सी उम्र में ही एक प्रौढ़ महिला की तरह समझदार हो चुकी थी।
भागवती के पति को गुजरे कुछ ही माह बीते थे और उन कुछ ही माह में उसके ससुराल वालों ने उसे हमेशा के लिए वापस मायके भेंज दिया था, अभागी मायके आई भी तो सफेद सूती साड़ी में। विवाह को एक वर्ष ही तो हुआ था अभी उसकी उम्र ही क्या थी केवल उन्नीस वर्ष, जो भी उसे देखता आंखों में आंसू भर लाता। आस-पास के स्त्री-पुरुष सभी के हृदय में भागवती के लिए विशेष सहानुभूति थी, एक विधवा स्त्री को सभी दया की दृष्टि से देखते हैं यह तो स्वभाविक है मगर सामने वाला यदि पुरुष हो तो वहां सहानुभूति दुगनी हो जाती है। मर्दों का स्वभाव स्त्रियों के लिए जन्म जन्मांतर से ही नम्र चला आ रहा और वह भी तब जब स्त्री पराई और लाचार हो तो वह और अधिक नम्र बन जाते हैं। यह नम्रता छल और मक्कारी में कब परिवर्तित हो जाती है इसका अहसास स्त्रियों का कोमल मन लगा ही नहीं पाता, और जब तक वो कुछ जान पाती है तब तक उनकी देह उनका आत्मसम्मान, लुट चुका होता है।
Also read: Eye Care: आंखों की त्वचा को ऐसे बनाए रखें जवां
मगर भागवती अथवा भागो उसके बीते कल के कारण इस छोटी सी उम्र में ही एक प्रौढ़ महिला की तरह समझदार हो चुकी थी। उसके पिता संकटा ने अपनी दुकान में उसको हिसाब-किताब के लिए साथ में बिठा दिया था। इससे भागो का भी मन काम में लगा रहता और कुछ समय को वह अपने दुख भूल जाती। वह पिता के साथ दिनभर दुकान संभालती रात में दुकान बढ़ाकर दोनों साथ में घर चले जाते। संकटा की एक ही बेटी थी वह उसे जान से प्यार करता था और मन ही मन यह सोचते रहता मेरे बाद इसका क्या होगा, कैसे गुजारेगी यह अपनी पहाड़ सी जिंदगी। उन्हें याद था, जब छोटी सी भागवती पैदा हुई पूरे गांव के लोगों को उन्होंने भोज पर बुलाया था विवाह के आठ वर्ष बाद कई मंदिरों के चक्कर व मन्नतों के बाद वह उनके घर में जन्मी थी। जैसे कल ही की बात हो वह इन्हीं गलियों में और गांव की चौपाल के पेड़ के आगे खुले मैदान में अन्य बच्चों के साथ खेलती हुई न जाने कब बड़ी हो गई, चौपाल में बैठने वाले पुरुष उन बच्चों को खेलते देखते और सभी बच्चों का इस तरह ध्यान रखते जैसे वह उनके अपने घर के बच्चे हो। सभी भागों को भी बहुत नेह करते वह थी ही इतनी प्यारी। पूरे गांव में उसे लाड़ोरानी नाम से पुकारा जाता।
लड़के लड़कियों के विद्यालय का रास्ता एक था। मगर लड़कियों की छुट्टी थोड़ी देर से होती थी तो ये मनचले लड़के वक्त पर गेट पर पहुंच जाया करते थे। मगर विद्यालय के अलावा भी अक्सर जहां-तहां मुनीम और मुखिया का लड़का उसका पीछा करते रहते। भागवती के पिता को जब इस बात की भनक लगी तो वह उसके विवाह के लिए वर तलाशने लगे। शीघ्र ही पास के गांव के स्कूल मास्टर के लड़के का रिश्ता भागवती के लिए आ गया। भागवती पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अव्वल थी। मास्टर पद्म सिंह ने उसे देखा और अपने बेटे का विवाह उससे कराने की ठानी और तनिक देर किये बिना भागो के लिए रिश्ता भेज दिया। मास्टर जी का लड़का शहर में जूनियर इंजीनियर था विवाह के बाद भागो को उसके साथ शहर जाना था। इस बीच दोनों परिवार एक-दूसरे के गांव घर बार देखने आए, दान दहेज सब तय हो गया एक बार रमेश भी भागवती से मिलने आया था। फिर वह दिन भी आया जब गाजे-बाजे के साथ धूम-धाम से रमेश उसे ब्याह कर अपने घर ले गया। दस दिन ससुराल में रहने के बाद वह उसे अपने साथ लेकर शहर चला गया। वहां उसने एक किराये का कमरा लिया था। उससे पहले वह आफिस के गेस्ट हाउस में रहता था और वहीं मैस में भोजन करता था। भागवती को साथ लाने के लिए ही उसने किराये में कमरा लिया और थोड़ा जरूरत का सामान उसमें रखवा दिया। दोनों ने अपनी गृहस्थी की शुरुआत उस छोटे से घर से की दोनों बहुत खुश थे। कुछ दिन तो बहुत सुख से बीते मगर सिविल इंजीनियर होने के कारण रमेश को साइट पर देर तक रुकना पड़ता था कभी-कभी वह रात एक बजे तक घर पहुंचता। भागो दिन भर घर में अकेले रहती, काम भी ज्यादा नहीं था रमेश का टिफिन बनाना साफ-सफाई कपड़ें वगैरह करने के बाद भी बहुत समय बच जाता उसे कमरे में घुटन होती तो वह बॉलकनी में बैठ जाती जो कमरे से लगी थी। कभी-कभी कोई किताब पढ़ लेती। आते-जाते लोगों को घंटों देखती रहती, उस बिल्डि़ंग के दाहिनी तरफ एक पार्क था जिसमें शाम को बच्चे खेला करते थे। वह शाम की चाय वहीं बालकनी में बैठकर पीती बच्चों को देखती रहती। शहर में फ्लैट बहुत पास पास हुआ करते हैं। सामने के फ्लैट में एक छोटा सा ऑफिस था। उसका किचन व बाथरूम पीछे की ओर था जिस ओर भागों की बॉलकनी थी। ऑफिस के कुछ लड़के बार-बार बहाने से कभी बाथरूम तो कभी किचन में आते-जाते रहते और कभी वहीं बॉलकनी में खड़े होकर सिगरट पीते और रह रहकर भागों को देखते कुछ दिनों बाद एक लड़के ने भागो से कहा आपके फ्लैट में पानी आ रहा है पहली बार तो उसने अनसुना किया मगर जब उसने दोबारा पूछा पानी आ रहा क्या? दरअसल उस इलाके में पानी टाइम से आता था सुबह आठ बजे और शाम पांच बजे, तो भागवती ने हां में सिर हिलाया वह बोला क्या दो बोतल पानी दे सकती हैं। आज हमारी बिल्डिंग में पानी नहीं आया सुबह से कोई परेशानी चल रही है। थोड़ा सोचने के बाद वह बोली ठीक है। वह झट से बोला मैं बोतल लेकर आता हूं। थोड़ी देर में वो दरवाजे की घंटी बजा रहा था भागवती ने दरवाजा खोला और उसके हाथों की खाली बोतलें लेकर वो किचन में पानी भरने चली गई। थोड़ी देर में दरवाजे पर खड़े युवक को दोनों भरी बोतल थमाते हुए बोली ये लीजिए, वह बोला जी धन्यवाद! मेरा नाम प्रदीप है, इस ऑफिस में काम करता हूं। वह फिर बोला आपका नाम क्या है? बह बोली, जी भागवती। मगर सब मुझे भागो कहते है वह हंसा। भागो ने उसकी मुस्कान में एक निश्छलता देखी वह भी हंस दी। जी इस नाम के कारण मुझे बचपन में सखियां बहुत चिढ़ाती थी कहती थी भागो-भागो आ गई और हंस दी। मगर मां कहती है उसने मां दुर्गा के व्रत रखे तब मैं जन्मी इसलिए उसने मेरा नाम भागवती रखा। बहुत रोचक कहानी है आपके नाम के पीछे तो वह फिर बोला आप बोर हो जाती हैं न मैंने देखा आपको। जी, ये देर से आते हैं ना, दिन काटना मुश्किल होता है। हां, मैं समझ सकता हूं आप पार्क में क्यों नहीं चली जातीं, सामने ही पार्क है आपको अच्छा लगेगा। जी, मैं अकेले, वह बीच में ही टोकते हुए बोला अब आप शहर में है और यहां सब अकेले हैं। इसलिए यह डर निकाल दीजिये और घूमिए आस पास की जगह जाईये आपको अच्छा लगेगा। भागो ने सिर हां में हिलाया वह बोला चलिए मैं चलता हूं पानी के लिए धन्यवाद, और वह चला गया।
धीरे धीरे उनकी बोलचाल बढऩे लगी दोनों बॉलकनी से शाम की चाय के समय बातें करने लगे हालांकि बातें औपचारिक ही होती एक-दूसरे के परिवार, रिश्तेदार, देश, गांव, दुनियांदारी, भोजन, महंगाई आदि-आदि पर, मगर आस पास वाले लोगों ने उन पर तांक-झांक बढ़ा दी थी। दोनों को यह बात समझते देर न लगी और भागवती ने बॉलकनी त्याग कर कमरे में ही रहना आरंभ कर दिया। उसे लगने लगा जैसे उसने एक अच्छा दोस्त खो दिया। कुछ दिनों बाद उसे एक पत्र मिला वह पत्र प्रदीप का था, जिसमें उसने लिखा था प्रेम किसी से कभी भी हो सकता है जैसे मुझे हो गया तुमसे काश तुम विवाहित न होती। यह पढ़ते ही वह घबरा गई और सोचने लगी बड़ा विचित्र है यह। ये जानते हुए भी कि मैं विवाहित हूं इसे मुझसे कितनी आसानी से प्रेम हो गया और माना कि कभी कोई भावना इसके मन को छू भी गई हो तो भी क्या इसे यह पत्र मुझे लिखना चाहिए था। अचानक उसे याद आया रमेश ने कहा था यहां किसी से ज्यादा बात मत करना। यहां के लोग बहुत स्वार्थी हैं। तो क्या इसमें इसका कोई स्वार्थ था। कहीं यह मुझे बहकाने की तो कोशिश नहीं कर रहा है। वह वहां रहने में खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी। उसने वह पत्र चूल्हें पर रखकर जला दिया। शाम को जब रमेश घर आया तो वह उसे यह बात बताने को आतुर थी। मगर इससे पहले की वो कुछ कहती रमेश बोला कुछ दिनों में यह कमरा बदलना पड़ेगा। आज पापर्टी डीलर के हाथों मकान मालिक का संदेश आया था। उनका बेटा यहां रहने आ रहा इसलिए मकान खाली करने को बोला है। भागो घबराते हुए बोली अचानक क्यों। वह बोला, बहाने चाहिए होते हैं इन लोगों को क्या कर सकते है। कोई नहीं, बहुत कमरे मिलेंगे तुम चिंता मत करो उसके मन में उस समय दो बातें चल रहीं थी कही मकान मालिक से किसी ने कुछ कहा तो नही इसलिए वो बहाने से उन्हें निकाल रहा है। पर जो भी हुआ ये उसके लिए सही हुआ। वह खुश हो गई कुछ दिनों में एक नया कमरा उनका बसेरा हो गया। साइट के पास होने की वजह से अब रमेश भी जल्दी घर आने लगा दोनों बहुत खुश थे। परिवार आगे बढ़ाने की सोच रहे थे, कि अचानक एक दिन कुछ लोग रमेश को बेहोशी की हालत में घर लाए वह खून की उल्टियां कर रहा था। भागों के पैरों तले जैसे जमीन सरक गई। उसने उसकी बहुत सेवा की। एक हफ्ता बहुत कठिनता से बीता, उसकी हालत सें बहुत सुधार न था इसलिए दोनों रोज शहर के कई अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे। मगर आराम नहीं मिल रहा था। मास्टर जी को जब यह खबर मिली तो वह उन दोनों को गांव ले आए और गांव के अस्पताल में तकरीबन दो माह भर्ती रहने के बाद उसने उसी अस्पताल में अंतिम सांस ली। भागो का सब कुछ उजड़ गया। साल भर से पहले वह आभागी विधवा हो गई। कुछ दिन तो सभी का संभलना मुश्किल हो गया पर एक माह के बाद सास का व्यवहार ऐसा बदल गया कि भागो का जीना दुर्भर हो गया। वह उसे ही अपने बेटे की मृत्यु का जिम्मेदार मानने लगी। मास्टर जी पहले-पहले तो बहुत अच्छे रहे। पत्नी को भी समझाते कहते कि बच्ची है क्यों सुनाती रहती हो पर धीर-धीरे उनको भी पत्नी की बातें सही लगने लगी। बेटी मानने वाले ससुर के लिए अब भागो सिर्फ काम करने वाली बाई बनकर रह गई। एक दिन तो हद ही हो गई, मार पीटकर दोनों ने उसे घर से ही निकाल दिया। रात भर वह बाहर आंगन में बैठी रही। पड़ोस की एक ताई जो भागों की मां को जानती थी, उसने किसी पहचान वाले के हाथ भागो के पिता को चिी लिखवाकर भिजवाई। चिी पढऩे के बाद वह तुरंत मास्टर जी के वहां से उसे ले गये। गांव पहुंचने तक रास्ते भर वो सोचती रही सोच-सोच कर उसका चेहरा व उसकी आंखें दोनों में थकान साफ दिखने लगी थी और दिमाग तो जैसे फटने को तैयार था। द्वार पर मां उससे लिपट-लिपट कर रोने लगी आस-पास के लोग उसकी सहेलियां जिसमें गुडिय़ा जो उसकी सबसे प्यारी सहेली थी सब उससे मिलने व दुख जताने आए। उसके पिता ने सोचा क्यों न इसे मैं दुकान के काम में लगा दूं इससे इसका भी मन लगा रहेगा और रोज-रोज घर पर आकर इसे रुलाने वाले पड़ोसियों का भी आना जाना बंद हो जाएगा अत: उन्होने उसे अपने साथ किराने की दुकान पर बिठा दिया। मगर संकटा के संकट इतनी आसानी से कम होने वाले न थे वह महसूस कर रहे थे जब से भागों को दुकान में बिठाया है तब से दुकान के ग्राहकों में बढोतरी हो गई है। हालांकि ये अच्छी बात थी मगर जिन महिलाओं का घर में जमावड़ा लगा रहता था। बात-बात में भागों के लिए दुख जताते। मुखिया का लड़का भी अब बहाने से रोज कभी राशन तो कभी तेल कभी साबुन लेने वहां आने लगे संकटा का मन यह सब देखकर बेचैन हो जाता था। भागो गल्ले पर बैठी हिसाब लिख रही थी की सामने से एक आदमी को अपनी दुकान की ओर आते देखा धीरे-धीरे वह आदमी कुछ जाना पहचाना लगने लगा पास आते आते उसका चेहरा साफ दिखाई दिया। अरे यह तो प्रदीप था, भागो को पहले यकीन न हुआ उसने पुन: गौर से देखा वह वाकई प्रदीप था। वह पास आकर बोला मुझे बहुत दुख हुआ जब पता चला रमेश जी नहीं रहे। संकटा प्रसाद यह देखकर आश्चर्यचकित था कि यह कौन है भागो ने बताया पिताजी यह शहर में हमारे पड़ोसी थे। प्रदीप ने संकटा को नमस्कार किया और बोला मुझे आपसे कुछ बात करनी है क्या आप थोड़ी देर के लिए मेरे साथ चल सकते हैं। पहले तो संकटा हिचकिचाया फिर बोला अच्छा चलो दोनों पैदल चलने लगे चलते-चलते रास्ते में प्रदीप ने भागों के साथ मुलाकात की सारी बातें बताई और वह चि_ी का भी जिक्र किया, साथ ही यह भी बताया की वह भागों से कितना प्रेम करता है। संकटा प्रसाद को उसकी सच्चाई और भागो के लिए उसका प्रेम उसकी आंखों में साफ दिखाई दिया। उसने आकर भागो से सारी बातें कह दी, भागो यह सुनकर बहुत व्यथित हो गई उसे लगा वो उस पर दया दिखा रहा है और उसने पिता से पुनर्विवाह के लिए साफ मना कर दिया। एक दिन भागो को हल्का बुखार था मगर दुकान खोलने तो जाना ही था उसने दुकान खोली ग्राहकों का आने का सिलसिला चलने लगा आज अकेले दुकान संभालना बहुत कठिन हो रहा था, भागों का मन था घर जाकर आराम करने का कर रहा था मगर दुकान पर इतना काम था। तभी सामने से मुनीम का लड़का आते दिखा वह बोला अरे, आज अकेली हो। हां पिताजी दुकान का सामान लेने गये हैं ओह वह बोला भागो बोली क्या चाहिए तुम्हें। कुछ नहीं तुम जाओ वह उसका माथा छूकर बोला तुम्हें तो बुखार हैं हां, पर इससे पहले वो कुछ बोलती उसने उसे कुर्सी पर बिठा दिया बोला तुम आराम करो आज दुकान मैं संभाल लूंगा। वह बोला कभी तुम मेरे काम आ जाना वह बोली मतलब क्या है तुम्हारा। सोनू बोला बड़ी भोली हो इतना भी नही समझती एक लड़की लड़के के काम कैसे आ सकती है वह चिल्लाई सोनू तुरंत निकल जा मेरी दुकान से और कभी यहां भूल कर भी नजर नहीं आना समझा।
यह सुनकर वह गुस्से से कांपने लगी और धम्म से दुकान में ही गिर गई। जब उसकी आंख खुली तो वह अस्पताल में थी सामने प्रदीप खड़ा था उसके चेहरे पर परेशानी दिख रही थी उसके उठते ही वह बोला तुम ठीक तो हो ना मैं तुम्हारी दुकान तक गया था वहां किसी को न देख जब मैंने दुकान के अंदर झांका तो तुम जमीन पर बेसुध पड़ी थी, देह ज्वर से तप रही थी तो मैं तुम्हें यहां ले आया, साथ ही तुम्हारी दुकान भी बढ़ा दी। मुझ पर इतनी दया क्यों कर रहे हो, प्रदीप बोला जिसे तुम दया करती हो वह मेरा प्रेम है मगर तुम्हारे हालात ऐसे हैं कि तुम मुझे नहीं समझोगी। मुझे ऑफिस से सिर्फ सप्ताह भर की छुट्टी मिली गांव की धर्मशाला में रुका हूं। पांच दिन हो गये परसों वापस चला जाऊंगा तुम्हारा जवाब जो भी होगा मुझे स्वीकार होगा। तुम बस सदा खुश रहना। चलता हूं कहकर वो धर्मशाला की ओर चला गया। भागों ने मां को सब बात बता दी, मां ने भागों को बहुत समझाया उसका मन का डर निकालने की बहुत कोशिश की मगर वह न मानी अंत में मां ने कहा जैसा तू उचित समझे वही कर।

बस की खिड़की पर बैठा-बैठा वह सोच रहा था, चलो मैने एक कोशिश तो की इसका मुझे यही सुकून है। अचानक बस के दरवाजे में उसे भागों खड़ी दिखी। वह एक पत्र प्रदीप को थमा कर चली गई। पत्र में लिखा था मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।
संकटा प्रसाद को उसकी सच्चाई और भागो के लिए उसका प्रेम उसकी आंखों में साफ दिखाई दिया। उसने आकर भागो से सारी बातें कह दी, भागो यह सुनकर बहुत व्यथित हो गई उसे लगा वो उस पर दया दिखा रहा है और उसने पिता से पुनर्विवाह के लिए साफ मना कर दिया।
