vapu ko shaap
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Hindi Katha: प्राचीन समय की बात है एक बार देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए देवराज इन्द्र के उपवन नंदन वन में पहुँचे। उस समय इन्द्र भी अप्सराओं के साथ वहाँ ठहरे हुए थे। देवर्षि नारद को वन में देखकर देवराज इन्द्र अपने आसन से उठ खड़े हुए और प्रणाम करके उन्हें आदरपूर्वक बिठाया । अप्सराओं ने भी मस्तक झुकाकर उन्हें प्रणाम किया।

इन्द्र और अप्सराओं को आशीर्वाद देकर देवर्षि नारद आसन पर बैठ गए और मधुर स्वर में बोले – “देवेन्द्र ! सारे जगत् का भ्रमण करने के बाद केवल आपके निकट ही सुख की अनुभूति होती है । जैसा आपका वैभव है, वैसा संसार में और कहीं देखने को नहीं मिलता। आप जहाँ सुशोभित होते हैं, वहीं एक नए स्वर्ग की रचना हो जाती है। ये अप्सराएँ प्रत्येक समय आपकी सेवा में तत्पर रहती हैं। इनकी सुंदरता और नृत्य आपकी वैभवता में चार चाँद लगा देते हैं।

देवर्षि नारद से अपनी प्रशंसा सुनकर इन्द्र विनम्रतापूर्वक बोले “मुनिश्रेष्ठ ! ये सब भगवान् विष्णु और आप जैसे ऋषि-मुनियों के आशीर्वाद का फल है। आप सबकी कृपा से ही मुझे यह सुख प्राप्त होता है। यदि आप भी सुंदर अप्सराओं का नृत्य देखना चाहते हैं तो रम्भा, मेनका, मिश्रकेशी, उर्वशी, घृताची, तिलोत्तमा – जो अप्सरा आपको प्रिय लगे, उसे नृत्य करने की आज्ञा दीजिए। “

देवराज इन्द्र की बात सुनकर देवर्षि नारद ने वहाँ खड़ी अप्सराओं को देखा और कुछ देर सोचने के बाद बोले – “देवेन्द्र ! मैं केवल उस अप्सरा का नृत्य देखना पसंद करूँगा, जो स्वयं को रूप और उदारता आदि गुणों में सबसे श्रेष्ठ मानती हो । ” देवर्षि नारद के इस प्रस्ताव से अप्सराओं में विवाद छिड़ गया। वे सभी अपने को अन्य से श्रेष्ठ बताने लगीं। यह देख इन्द्र ने नारद से श्रेष्ठ और सुयोग्य अप्सरा स्वयं चुनने की प्रार्थना की।

नारद बोले ” हे सुंदरियो ! इस प्रकार विवाद मत करो। तुम में से जो भी अप्सरा दुर्वासा मुनि की तपस्या भंग कर देगी, उसी को मैं सबसे अधिक गुणवती मानूँगा।” यह सुनते ही सभी अप्सराएँ भयभीत हो गईं। दुर्वासा मुनि के क्रोध से वे सभी अच्छी तरह से परिचित थीं ।

उन अप्सराओं में वपु नाम की एक अप्सरा थी । उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा अभिमान था। वह इन्द्र और नारद मुनि को प्रणाम करके उसी क्षण दुर्वासा मुनि की तपस्या भंग करने के लिए हिमालय की ओर चल पड़ी।

वहाँ उसने मधुर स्वर में गान और नृत्य आरम्भ कर दिया। यह देख महर्षि दुर्वासा ने क्रोधित होकर वपु को पक्षी – योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। भयभीत वपु ने दुर्वासा मुनि के चरण पकड़ लिए और उनसे क्षमा-याचना करने लगी। उसकी करुण विनती सुनकर दुर्वासा मुनि का क्रोध शांत हो गया। वे वपु से बोले – “हे सुंदरी ! मेरा शाप व्यर्थ नहीं जा सकता। किंतु मैं तुम्हें यह वरदान भी देता हूँ कि तुम केवल सोलह वर्षों तक पक्षी – योनि में रहने के बाद मेरे शाप से मुक्त हो जाओगी। तुम्हारे गर्भ से चार पुत्र (पक्षी) उत्पन्न होंगे। तत्पश्चात् तुम पुनः स्वर्गलोक में अपना स्थान पूर्ववत् प्राप्त करोगी।” यह कहकर दुर्वासा मुनि वहाँ से चले गए।