एक व्यापारी अपने साथियों के साथ एक जहाज में सफर कर रहा था। तभी उसके एक सहयात्री ने कहा कि वह एक ज्योतिषी है और उसकी गणना कहती है कि जहाज में एक घोर पापी सवार है, जिसके पापों की वजह से यह जहाज डूब सकता है।
व्यापारी ने उसकी बात को हंसी में टाल दिया। कुछ ही देर में जोरदार तूफान आया और जहाज पानी में डूब गया। संयोग से व्यापारी और वह ज्योतिषी किसी तरह किनारे पर आ लगे। तट पर आकर व्यापारी ने जहाज के डूबने पर अफसोस जाहिर किया और बोला कि यह तो भगवान की ज्यादती है। एक आदमी के पापों की सजा इतने लोगों को दी।तभी उसके पैर में एक चींटी ने काट लिया।
उसने देखा कि नीचे बहुत सारी चींटियां घूम रही थीं। उसने गुस्से में पैर जमीन पर पटखना शुरू कर दिया, जिससे अनेक चींटियां कुचली गईं। ज्योतिषी बोला कि भाई, तुम्हें एक चींटी ने काटा और तुमने इतनी सारी चींटियों को कुचल डाला। फिर तुम भगवान को किस मुंह से दोष दे रहे हो कि उसने एक अपराधी के साथ अनेक निर्दाेषों को भी मार डाला।
सारः दूसरों को दोष देना जितना आसान है, स्वयं पर नियंत्रण रखना उतना ही कठिन।
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