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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

उसे सिर्फ खरीदने और सहेजने का शौक था। बहुत चाहते हुए भी कई बार वह उसे ज्यादा देर तक नही पहन पाती थी। क्योंकि बस कारण यही था कि जिसे वह इतने शौक से लाई है, वह कहीं घर के कामकाज में खराब न हो जाए। अक्सर ऐसा ही होता था कि वो घर के कामकाज मे खराब हो जाते थे। कभी नग निकलकर गिर जाते तो कभी किरकिरी निकल जाती और अक्सर ऐसा होता कि आटा गूथते समय उसकी नक्काशियों में आटा ही चिपक जाता। जब वह उसे साबुन से रगड़ रगड़ कर साफ करती तो उसकी रौनक काफी हद तक चली जाती। यही कारण था कि कई बार वह उसे पहनने को तो निकालती लेकिन खराब होने के डर से शीघ्र ही उतार कर रख देती और चाहते हुए भी ज्यादा देर तक न पहन पाती।

जबकि उसकी इस आदत को तो अब तक सास ननद सभी समझ चुकी थी। छोटी ननद तो अक्सर भाभी से चुटकी लेने के लिये उसकी चूड़ियों का खजाना देख मचल उठती थी, कि भाभी आज अपना वह वाला कढ़ा हमें दे दो। लेकिन वह ननद थी आखिर मना कैसे करती, यदि मना करती तो सासू माँ तो नाराज होती ही होती, साथ में पति देव भी कुछ कम नही सुना देते। शायद गुस्से में आकर उसकी चूड़ियों का डिब्बा ही जमीन पर फेंक देते, तब बाकी की बची चूड़ियां भी न बच पाती। यही कारण था कि वह कभी अपनी चूड़ियों का खजाना किसी के सामने नहीं खोलती थी। जब भी पहनती तो ऐसे वक्त में छुपकर पहनती कि कहीं कोई उसके चूड़ियों के खजाने को न देख ले, विशेष रुप से पति और ननद, क्योंकि ननद तो सीधे अपने पसंद के कढ़े और चूड़ियां उससे पूछे बगैर ही पहन लेती और यदि पति देख लेता तो उसके पास बहाना हो जाता कि इतनी सारी चडियां पहले पहनों तो। आ जायेंगी जब टटेंगी।

अतः इसी कारण वह अपनी चूड़ियों को बहुत संभालकर पहनती और छुपाकर रखती। जबकि कई बार तो काँच की खूबसूरत चूड़ियाँ पति के झगड़े और बच्चों को संभालने के दौरान ही टूट जाती थी और तब वह कई बार बहुत आहत हो जाती थी और टूटे हुए टुकड़ों को उठाकर कई बार देखती भी, सोचती भी, हाय! कितनी खूबसूरत और महंगी चूड़ी थी, यह फालतू में पति से उलझने के चक्कर मे टूट गई और अंदर ही अंदर दुखी होती रहती। यही कारण था कि उसके पास तरह-तरह की चूड़ियों और नक्काशीदार कढ़ो की भरमार थी जिसे उसने अपने श्रृंगारदान में बड़ी ही हिफाजत के साथ डिब्बों में सजाकर रखा हुआ था।

अक्सर उसने अपने घर के लोगो से कहते भी सुना था कि “इसे तो चूड़ियाँ खरीदने का फितूर है कभी हाथ मे ढंग की चूड़ियाँ पहने नही देखा, सहेज-सहेज कर रखने की आदत है।” लेकिन फिर भी उसे सुनने की आदत पड़ चुकी थी इसलिये चुप रह जाती।

जब कभी कोई त्योहार आने वाला होता, तो दस-पंद्रह दिन पहले से ही वह चूड़ी खरीदने के सपने देखने लगती और कुछ पैसा भी इधर-उधर से बचा कर रखने लगती। अक्सर ऐसा होता कि दुकान पर जो चूड़ी उसे पसंद आती वह या तो बजट के बाहर होती या नाप मे कुछ बड़ी या छोटी होती। इस कारण तो वह अपने नाप की चूड़ियों या बजट से समझौता करके जो सम्भव होता ले आती। और अगली बार के लिये दुकानदार को लाने के लिये कह आती। लेकिन जब अगली बार वह दुकान पर जाती तो वह चूड़ी और कड़े या तो दुगने दाम के हो जाते या फिर बाजार मे आया नया माल दुकानदार दिखाने लगता। ऐसी स्थिति मे महंगी हुई चूड़ियों को वह फिर छोड़ आती लेकिन नये आये माल को खरीदने मे वह सदा दुविधा में पड़ जाती।

बहुत बार वह दूसरों के विषय मे सोचने लगती कि चमकीली चूड़ी खरीदने पर घर मे सब क्या कहेंगें “अरे यह क्या बहुत देहाती चूड़ी है, क्या चमकीली चूड़ियाँ ले आई” या फिर ज्यादा सोवर होने पर “अरे तुम्हें तो खरीदने का शहूर भी नहीं, पैसा फेंकने की आदत है तुम्हें” ऐसा सोचते-सोचते फिर, वह चूड़ियाँ वहीं छोड़ आती और अपनी पसंद से समझौता करके जो सम्भव होता ले आती। परन्तु दो दिन बाद ही अपने पड़ोसिन के हाथों में जब वही चूड़ियां देखती तो सुंदर चूड़ियाँ देख मन मसोज कर रह जाती। खुद ही बुदबुदा कर कह उठती “क्या हो गया था मुझे जो मैंने यह चूड़ियाँ न खरीदी, काश आज मेरे हाथो मे वह, यह चूड़ियाँ देखती तो अवश्य ही देख कर जलभुन जाती। अरे! मै तो फुहड़ की फुहड़ ही निकली, नया फैशन ही न समझ पाती हूँ। दुकानदार तो कह रहा था कि यह मार्केट मे नया है, लेकिन….. अब अगली बार मैं अकेले न जाऊँगी, इनको संग लेकर जाऊँगी। ये तो घर से बाहर निकलती है औरतों के हाथों में पड़ी चूड़ियों पर नजर तो पड़ती ही होगी। इनको नये फैशन का ज्यादा ज्ञान होगा।”

अगली बार जब कोई त्योहार आने वाला होता तो अपनी साड़ी की मैचिंग की चूड़ियां खरीदने के सपने मन ही मन सजोने लगती। जैसे-जैसे त्योहार की तारीख पास आती, वैसे-वैसे उसकी खुशी बढ़ती जाती। पति और सास की हर बात में हाँ में हाँ मिलाती। कोशिश करती कि वह सास और पति को खुश रखें, सिर्फ इसलिए कि उसे चूड़ियां जो खरीदनी थी। चूड़ियों को खरीदने और सहेजने का उसे शौक था और इसी कारण वह अपनी एक खुशी के लिये सारे समझौते करने को तैयार रहती थी। अपने पति के साथ जब छुट्टी वाले दिन किसी त्योहार पर चूड़ी खरीदने जाती तो अंदर ही अंदर बहुत खुश होती। सोचती ‘चलो आज पैसे का कोई झंझट न फसेगा, साथ में है तो यह।’

सुबह से ही सारे घर के काम निबटाकर जल्दी-जल्दी वह तैयार हो जाती। जब पति के साथ बाजार जाती तो आज ज्यादा भीड़ देखकर अगर पति कहता “सुनो, आज रहने दो, कल देख लेना , कल खरीद लेना चूड़ी” सुनकर परेशान हो जाती कि कहीं चूड़ी खरीदने की बात टल न जाये। कह उठती “अरे आजकल तो यहाँ रोज ही इतनी भीड़ रहती है, जब यहाँ तक आये है तो कोशिश कर ही लेते हैं” और तेजी से भीड़ के बीच मे घुसते हुए दुकानदार के सामने पहुँच ही जाती। पति भी पत्नी को जाता देख अंदर भीड़ मे घुस जाता। अब जब वह किसी चूड़ी को पसंद करती तो पति कह उठता “सुनो यह वाली मत लो, यह ठीक नही है और वह जो अपने पसंद की निकालता तो उसको पसंद न आती, अतः टालने के लिये जब वह कहती “कि यह चूड़ी बहुत कमजोर है” तो पति भी कह उठता “सुनो भीड़ बहुत ज्यादा है अब फिर कभी आकर अपनी पसंद की चूड़ी ले लेना, वैसे भी कोई चीज जन्मपट नहीं होती।” अन्त मे भीड की वजह से वह फिर समझौता करके पति के पसंद की चूड़ी लेकर लौट आती।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’