sati ke charanon mein samai ganga
sati ke charanon mein samai ganga

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

“मीरा के जहर को पचाने वाले …सतिओं के सत को बचाने वाले हे कृष्ण! तू पतितपावन है ना? मेरी देह पर लगे कलंक अगर धूले नहीं जायेंगे तो हे धरणीधर! मैं तेरे ही चरणों में अपनी देह गिराऊंगी। मेरे कारण पवित्र ब्राह्मणों के खून की नदियां नहीं बहाने दूंगी!”

कलेजा चीर के रख दे, ऐसा करुण आर्तनाद से वाघेली रंगाबाई भगवान श्रीकृष्ण को विनती कर रही थी। उसकी आंखों में से अविरत आंसू निकल रहे थे। करुणा मिश्रित आवाज मंदिर में उठ रही थी। उस वक्त मंदिर के दरवाजे के बाहर ब्राह्मणों के दिल में भी दर्द बढ़ जा रहा था।

ढीमा के धरणीधर भगवान के मंदिर के चारों ओर ब्राह्मणों की जीती जागती चौकी थी। ढीमा का हरेक ब्राह्मण आज मंदिर के आसपास खडा हो गया था। धरणीधर भगवान की मूरत के सामने तुलसीदास की जगह में बैठी रगां बाई की देह का रक्षण करने आज हरेक ब्राह्मण मरने के लिए भी तैयार था। वाव का राणा जुनून से मानो पागल हो गया था। उसने रंगाबाई को भर बाजार में एक ही वार में काट देने के लिए तलवार उठाई कि हाहाकार मच गया।

बात कुछ ऐसी थी कि राणा की अप्रिय रानी के पेट में बच्चा पल रहा था। इस समाचार से राजा का शिर मानो चकरा गया। बरसों से जिसके महल में कदम ही नहीं रखा, उसके पेट में राजबीज? राणा सोच में पड़ गया।

  • “तेरे पेट में किसका पाप पल रहा है?” वाव के राणा ने रंगाबाई से क्रोध से लाल हो कर पूछा। राणा के गुस्से की जरा-सी भी परवाह न हो, इस तरह वाघेला वंश की कुमारी ने स्वस्थता से जवाब दिया- “मेरे पेट में जो पल रहा है, वह बीज वाव के राणा का है। आपका ही है। जो आप इसे पाप कहते हो तो वह पाप है!”
  • “झूठ… एकदम झूठ। वाघेली रानी! राजपूत घराने की आबरू मत गंवाओ!”

– “ राणाजी! राजपूत के घराने की आबरू राजपूताणी की मुट्ठीओं में समाई हुई होती है। राजपूत के कलंक राजपूताणी ही धोती है। उनके सत से ही राजपूत राज कर सकते हैं। उसकी देह उसके दूध ही की तरह पवित्र है।”

  • “बस…बस कर वाघेली! मुझे झूठा साबित करते हुए शर्म नहीं आती? बरसों से मैंने तेरा काला मुंह नहीं देखा।”
  • “राणा जी! जहर की कसौटी मत करो! मै सती स्त्री हूं। याद करो! आज से चार महिना पहले आप नशे में धुत्त होकर मेरे महल में आये थे कि नहीं?”
  • “चुप… चुप हो जा, शंखिणी!” राणा ने गुस्से से कहा और उन्होंने रानी को मौत की सजा फरमाई। यह समाचार जब वेजिया वास के राजपूतों को मिला तो वे हाथों में खुली तलवार लिए निकल पड़े- “खबरदार! अगर वाघेली रानी का बाल भी बांका हुआ तो एक-एक राजपूत कट जायेगा।” राजपूतों की यह हिम्मत देखकर वाव के राणा का गुस्सा और भी बढ़ गया। कुल पर कलंक रूप एक नारी को बचाने के लिए भायात भी तैयार हो जाये? और खुद वाव के राणा का विरोध करे? राणा ने सेना को तैयार होने का हक्म दे दिया। वेजिया वास के राजपूत सोच में पड़ गये। मर कर भी रानी को बचा नहीं पायेंगे। रानी को किसी भी तरीके से बचाना है, ऐसा सोच कर राजपूत रानी को भगवान धरणीधर के मंदिर में कृष्ण के आसरे रख आये। ढीमा के ब्राह्मणों को पता चला तो रंगाबाई को बचाने के लिए मंदिर के दरवाजे पर आकर खड़े रह गये। वाव का लश्कर मंदिर के दरवाजे के पास अटक गया था। राणाजी ब्राह्मणों को देख कर उलझन में पड़ गये। गौ ब्राह्मण प्रतिपाल वाव राणा के हाथों ब्राह्मणों का खून कैसे बहाया जा सके? राणा ने रानी को सौप देने की मांग की। लेकिन सारे ब्राह्मण शरण में आई हुई रानी को छोड़ने को तैयार न थे। अंत में राणा ने ऐसा घोषित किया कि अगर वाघेली रानी सच्ची है तो अपने सत को साबित करे। नहीं तो मैं उसके राई के जितने छोटे-छोटे टुकड़े कर दूंगा। और राणजी के लश्कर ने मंदिर के बाहर ही अपना डेरा डाल दिया।

अन्न एवं जल का त्याग कर बैठी रंगाबाई भगवान धरणीधर से विनती कर रही थी। सात दिन और सात रात वह भगवान के मंदिर में बैठी रही। फिर उसकी काया कांपने लगी। भगवान धरणीधर की मूर्ति भी कांपने लगी। हिलडौल रही धरती के सिर से गंगा का कलेजा भी हिल उठा। देवनदी भागीरथी रंगाबाई के चरणों में से गंगा की धारा के रूप में निकल कर बहने लगी। भगवान धरणीधर की मूरत से भी एक दूसरी धारा निकली।

सारे ब्राह्मण दौड़े और सती रंगाबाई के चरणों में गिर पड़े। तम्बू में राणा जी ने यह जाना। वे भी दौडे। रंगाबाई के चरणों में से बह रही गंगा के नीर को सिर पर लगा के खुद का कलंक मिटाने लगे। उस वक्त उनकी आंखों में अश्रु थे।

रंगाबाई ने पति को क्षमा दी। वे निष्कलंक जाहिर हुए उसी वक्त उन्होंने अपने गले का सवा लाख रूपयों का कीमती हार भगवान धरणीधर को भेट कर दिया। जो आज भी ढीमा में मौजूद है। जो ज्येष्ठ सुद एकादशी पर और कार्तिक सुद एकम याने की नये बरस पर भगवान को पहनाया जाता है। मंदिर में जिस जगह गंगाजी प्रगट हुए थे, वह निशानी आज भी जस की तस रखी गई है। रिपेरिंग करते वक्त भी उतना भाग छोड दिया जाता है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’