एक बार एक राजा जंगल में रास्ता भटक गया। वह थक-हारकर एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने के उद्देश्य से बैठ गया। उस वृक्ष पर एक तोता बैठा था। राजा को देखते ही वह चिल्लाया ‘पकड़ो, मारो, लूट लो। जब तक राजा वहाँ आराम करता रहा तोता इसी प्रकार चिल्लाता रहा। कुछ देर आराम करने के बाद राजा वहाँ से चल दिया। कुछ आगे जाने पर उसे एक कुटिया दिखाई दी। राजा ने सोचा किसी साधु की कुटिया दिखती है। चलो वहीं चलकर जल ग्रहण करते हैं।
यह सोचकर राजा जैसे ही उस कुटिया के द्वार पर पहुँचा, उसे बड़े ही मधुर स्वर में सुनाई पड़ा “आइए, पधारिए, आसन ग्रहण कीजिए।” राजा ने देखा, वह एक तोता था जिसने इन शब्दों में उसका सत्कार किया था। वह आश्चर्यचकित हो गया। तभी कुटिया में से एक महात्मा निकले तो राजा ने उन्हें प्रणाम कर कहा “महात्मा जी क्या बात है, इससे पहले मैंने जहां विश्राम किया था, वहाँ भी एक तोता था जिसने मुझे देखते ही अत्यंत कटु और अभद्र शब्द कहे और एक यह तोता है जिसने मेरा स्वागत कितने मीठे शब्दों में किया।”
महात्मा कुछ बोलते इसके पहले ही तोता स्वयं ही बोल पड़ा राजन्! वह तोता मेरा ही भाई है, पर वह वहाँ जंगल में अक्सर चोर-डकैतों की बातें सुनता है और उनकी संगति में रहने के कारण उनकी भाषा भी सीख गया है। मैं यहाँ महात्मा जी के साथ रहता हूँ। इसी कारण इनकी भाषा सीख गया हूँ। राजा समझ गया कि संगति का असर इंसान पर ही नहीं जीव-जंतु और पशु-पक्षियों पर भी पड़ता है।.
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
