जब भगवान बुद्ध मृत्यु, शय्या पर पड़े थे और आनंद उनके पास बैठा हुआ उनकी सेवा कर रहा था तो भद्रक रोता हुआ वहाँ पर आया। तथागत ने आनंद से पूछा, “आनंद! यह रोता कौन है?” तब आनंद भगवान से बोला, “भंते, भद्रक आपके दर्शन करने आया है।” जब भगवान ने उसे बुलाने का आदेश दिया तो आनंद भद्रक को बुला लाया!
भद्रक को रोता हुआ देखकर भगवान बोले, “भद्रक! तू रोता क्यों है?” सिसकियां भरते हुए भद्रक ने उत्तर दिया, “भंते, जब आप चले जायेंगे तो हमें प्रकाश कौन दिखलायेगा?” तब मधुर स्वर में बुद्ध ने उत्तर दिया, “भद्रक, मैंने अपनी सारी आयु में इसी बात का उपदेश दिया है कि प्रकाश तुम्हारे अंदर है, इसे बाहर खोजने की कोई आवश्यकता नहीं। जो लोग प्रकाश की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते हैं, जो तीर्थों में जाकर इसकी खोज करते हैं, जो देश-विदेश भ्रमण कर इसकी प्राप्ति का प्रयास करते हैं, उन्हें निराश ही होना पड़ता है। भद्रक, प्रकाश तुम्हारे अंदर है और वह उसी को प्राप्त हो सकता है, जो मन, वाणी और कर्म में एक रस हो जाते हैं। बुद्धत्व का यही मार्ग है।”
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
