भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
‘पॉजिटिव’ शब्द की नकारत्मकता के इस दौर में परिवार की सलामती के लिए बुदबुदाते उसके होंठ और प्रार्थना में करबद्ध होते हाथ तथा गंभीर आँखें सदैव पारलौकिक शक्ति से सहायता, समर्थन और आशीर्वाद माँगती नहीं थकती थी।
निजी बैंक में कार्यरत ममता के जीवन में सबकुछ ठीक ही चल रहा था। सामान्य कामकाजी महिला होने का दबाव तो था ही, ऊपर से महामारी से खुद बचे रहने और परिवार को बचाए रखने की दोहरी जिम्मेदारी अपने नाजुक कंधों पर उठाए वह साल भर निकाल चुकी थी।
दो हजार बीस तो वह साल था, जब संघर्ष अदृश्य ताकत के साथ था। हर व्यक्ति ऐसा सिपाही था मानो जिसे ‘मिस्टर इंडिया’ से बिना लाल चश्मे और हथियार के लड़ना था। इस लड़ाई में आंशिक कामयाबी दवा की खोज से मिली।
ममता ने जब प्रिंट और सोशल मीडिया पर टीकाकरण शुरू किए जाने के बारे में पढ़ा तो मन का मोर नाच उठा। काम में तत्परता बढ़ी तो चेहरे पर संतोष के भाव थे। उम्मीदों का नया वातावरण पैदा हुआ। यकीनी जमीन पर वह आसमानी ख्वाब देखने लगी कि सब पहले जैसा होगा। पति दफ्तर तो बेटी स्कूल जाने लगेगी। वीकेंड में बाहर सैर-सपाटा भी हो जाएगा तो नीरस जीवन में सरसता और सरलता आने लगेगी।
लेकिन ममता नहीं जानती थी कि उसके ख्याली पुलाव बीरबल की खिचड़ी की तरह है। एक दुर्भाग्यपूर्ण शाम के वक्त जब वह दफ्तर से लौटी तो पति का चेहरा उतरा और सास की झुकी गरदन ने उसे झकझोरा। उसे किसी अनहोनी का आभास हो गया था। फिर अपनी सभी इंद्रियों को वश में करते वह बोली क्या हुआ, कोई जहाज डूब गया है? या पेट्रोल के भाव सौ पार कर गए हैं? किश्त वाला घर आया था क्या? बेटी को चोट तो नहीं आई?
सवालों की इन झड़ियों का जवाब उसे ‘पॉजिटिव’ मिला तो ममता के होश उड़ गए। पाँव तले जमीन सरक गई। सर पर आसमान टूट पड़ा। भावों और भावनाओं को सहेजते-थामते ममता ने पति से पूछा, यह सब कैसे और कहाँ से?
निरुत्तर पति की अवस्था तो मानो सांप सूंघे आदमी की तरह थी। उसका गला बैठा था और साथ ही किस्मत भी। अब घर में एक पॉजिटिव और बाकी सामान्य होने से ममता के जीवन की शांत लहरों ने उछाल मारना शुरू कर दिया।
फिर ममता के सामान्य जीवन का कँटीला मार्ग शुरू हुआ। पॉजिटिव पति और इस पॉजिटिविटी से नेगेटिव हुई ममता के जीवन ने नया मोड़ लिया। ममता समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे? कहाँ जाए? कौन-से अस्पताल जाए? किससे मिले? इस बीच सग-सम्बन्धियों के फोन कि ममता क्या करने वाली है? मदद चाहिए तो बताना।
यह कैसा रोग है ममता भली-भाँति जानती थी। इसके संक्रमण से जब वह अपनी सास और बेटी को बचाना चाहती थी तो दूसरों को मदद के लिए बुलाना तो असम्भव ही था। उसने मन में गाँठ बांधी कि पॉजिटिव पति के नेगेटिव होने तक हार नहीं मानेगी।
पहली जद्दोजहद ही पति को अस्पताल ले जाने की थी। कोरोना पॉजिटिव को ले जाने के लिए कोई गाड़ी वाला तैयार ना था। ऐम्बुलेंस नहीं मिलने से ममता की कंपकंपी छूटने लगी। उसके अपार्टमेंट में बसे लगभग हर परिवार के पास कार थी। लेकिन कौन आता भला? और ममता किसको बुलाती भला कि, “भाई साहब! पति कोविड पॉजिटिव हैं, क्या कार में अस्पताल ले चलेंगे”
महामारी के दौर में पूरी दुनिया ने मानवता का नया पाठ पढ़ा है। इसी पाठ का अनुभव ममता को उस वक्त हुआ, जब पड़ोस का ऑटो चालक बोला- मैडम आप मत घबराइए! मैं लेकर चलूँगा साहब को अस्पताल!
ऑटो चालक ममता के लिए देवदूत तो उसकी वाणी देव वाणी जैसी थी। ऑटो में पति के साथ सफर कर रही ममता की कपोल कल्पनाओं में अस्पताल, सफेद चोगे और पीपीई किट पहने देवगण नजर आने लगे थे। इन कल्पनाओं और आशंकित भविष्य से संघर्ष का यह आधा घंटा ममता के लिए यमलोक की यात्रा जैसा था।
अस्पताल में जब ममता ने पति के साथ कदम रखा तो वह सत्यवान की सावित्री की तरह थी। ममता चाहती थी, डॉक्टर्स से सहानुभूति और मन को मजबूत करने वाले दो बोल मिल जाए। ममता और उसके पति को डॉक्टर के बुलाने तक का समय अग्निवेदी पर बैठने की तरह थे। जब डॉक्टर ने रिपोर्ट देखनी शुरू की तब अग्निपरीक्षा शुरू हुई।
डॉक्टर का हरेक प्रश्न चिंता की नई लकीरें पैदा कर रहा था। सवालों और रिपोर्ट के बाद जब डॉक्टर एक मिनट के लिए मौन हआ तो अनिष्ट की आशंका में ममता के सब्र का बांध टूटने वाला ही था। उस वक्त डॉक्टर का सवाल, “घर में क्वॉरंटीन फैसिलिटी है?’ सुनकर, मानसिक रूप से आहत ममता के चेहरे पर बसंत की हरियाली दिखाई दी। ममता को लगा मानो आधी जंग जीत ली है। पति ने भी लम्बी साँस भरी। उसमें भी आत्मविश्वास दिखा जब डॉक्टर ने कहा- घबराने की बात नहीं घर से ही इलाज हो जाएगा।
ममता खुशी के मारे पति से लिपट गई। उसे इस बात का ख्याल ही न रहा कि पति पॉजिटिव है और संक्रमण उसे भी हो सकता है। यही महिला मन है जो सनातन काल से भारतीय संस्कृति को बनाए रखे है कि ईश्वर का वास वहीं होता है जहां महिलाओं की पूजा होती है।
डॉक्टर के परामर्श और पृथकवास में रहने की हिदायत के साथ ममता पति के साथ इस तरह घर लौटी मानो किला फतह कर लिया हो। उसने अगले पंद्रह दिनों तक पति की खूब सेवा की तो उसकी सेहत भी सुधरी। देश की नई सोच “न्यू नॉर्मल” के तहत ममता के घर भी जब सब सामान्य हुआ तो ममता की एक खांसी ने उसके पति के चेहरे का भूगोल बिगाड़ दिया।
वह गणित बिठाने लगा कि ममता पॉजिटिव निकली तो उसे कहाँ रखेंगे? उसका विज्ञान कह रहा था, बीवी संस्थागत क्वॉरंटीन रहे तो बेहतर होगा। अगर घर में रही तो कैसे नियमों की पालना होगी? क्या उससे वापस संक्रमण तो नहीं हो जाएगा? उससे भी अधिक फिक्र इस बात की थी कि पूरे परिवार के खाने की व्यवस्था कैसे होगी? यदि वह घर में रही तो साफ-सफाई करने वाली और कुक को भी तो नहीं बुला सकते। उसने पुरुषत्व का उपयोग करते हुए ममता को हड़का ही दिया, मेरे इलाज के दौरान क्यूँ नहीं सावचेती रखी? अब क्या होगा? कौन तुम्हारी जाँच कराएगा? अस्पताल ले जाएग? मैं तो अभी भी शरीर में कमजोरी महसूस कर रहा हूँ।
ये सवाल ममता को तनिक भी नहीं चुभे। वह जानती थी जमाना अभी बदला नहीं है और ना उनके पति। अपने आपको सम्भालते हुए वह बोलीऐम्बुलेंस को कॉल कर दिया है। आते ही निकल जाऊँगी और नेगेटिव होने के बाद फिर से आपकी जिंदगी और परिवार को पॉजिटिव करूँगी, आप मेरी फिक्र न करें।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
