समुद्र के किनारे टिटिहरी का जोड़ा रहता था । वे दोनों हँसी-खुशी अपना समय गुजारते थे । एक बार की बात, टिटिहरी को अंडे देने थे । उसने टिटिहरे से पूछा, “मैं अंडे कहाँ दूँ?”
टिटिहरे ने कहा, “देखो, समुद्र का किनारा कितना सुंदर और स्वच्छ है । यह कितनी दूर-दूर तक फैला है । फिर अंडे देने के लिए इससे अच्छी जगह और क्या होगी?”
“लेकिन यह जगह तो सुरक्षित नहीं है । समुद्र में ज्वार आता है तो बड़े- बड़े हाथियों को भी बहा ले जाता है फिर हमारे अंडे कैसे सुरक्षित रह पाएँगे?” टिटिहरी ने चिंतित होकर कहा ।
सुनकर टिटिहरे को गुस्सा आ गया । बोला, “क्या तुम मुझे कम समझती हो? समुद्र शक्तिशाली है तो क्या मैं कुछ भी नहीं हूँ । अगर समुद्र ने कुछ गड़बड़ की तो मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊँगा कि याद रखेगा ।”
टिटिहरे की बात समुद्र ने भी सुन ली । उसने सोचा, ‘यह टिटिहरा न जाने अपने-आपको क्या समझता है? पैर ऊपर करके सोता है, जैसे इसे गलतफहमी हो गई हो कि अगर आसमान गिरेगा तो यह अपने पैरों से सँभाल लेगा । मैं इसे मजा चखाकर रहूँगा ।
पर टिटिहरी तो टिटिहरे की बात सुनकर निश्चिंत थी । उसने समुद्र के किनारे अंडे दे दिए । एक दिन टिटिहरी और टिटिहरा दोनों भोजन की तलाश में गए हुए थे । पीछे से समुद्र की लहरें आईं और उन अंडों को अपने साथ बहा ले गई ।
लौटकर टिटिहरी ने देखा कि उसके अंडे वहाँ नहीं हैं । देखकर दुख के मारे उसकी छाती फटने लगी । उसने गुस्से में पति से कहा, “देखो, तुम्हारे अहंकार के कारण समुद्र उन अंडों को अपने साथ बहाकर ले गया । हाय, हमारे बच्चे ।
टिटिहरा बोला, “भला इसमें अहंकार की क्या बात है? कोई अपने घर में सुख से रहता है तो इसमें अहंकार कैसा? समुद्र बड़ा है तो मैं भी तो कुछ हूँ । मैं अगर अपनी पर आ गया तो अपनी चोंच से समुद्र को सुखा सकता हूँ ।”
टिटिहरी दुखी थी । बोली, “भला समुद्र से तुम्हारी क्या तुलना? तुम छोटे मुंह बड़ी बात कर रहे हो । कोई तुम्हारी चोंच विष्णु जी का बाण तो नहीं, जो समुद्र को सुखा देगा ।”
टिटिहरा बोला, “ठीक है, समुद्र बलशाली है पर मेरे भीतर न्याय का बल है, जोश और ललकार है । भला समुद्र उसका क्या मुकाबला करेगा? इसी जोश और ललकार के कारण तो आदमी समुद्र की छाती चीर देता है और उस पर बैठकर यात्राएँ करता है । तो भला मैं क्या नहीं कर सकता?”
टिटिहरी बोली, “तो ठीक है, जो ठीक समझो करो । मैं तो बस यही चाहती हूँ कि मेरे अंडे वापस आ जाएँ ।”
टिटिहरे ने उसी समय आसपास के पक्षियों को बताया । वे सभी उस समुद्र के किनारे आ गए । फिर उनके बुलाने पर दूर-दूर से और पक्षी भी आते चले गए । धीरे-धीरे समुद्र के किनारे पक्षियों का विशाल मेला जुड़ गया । उनकी जोर-जोर की आवाजें और शोर सुनकर समुद्र एक पल को तो चिंता में पड़ गया । फिर सोचा, ‘भला ये पक्षी अगर लाखों की संख्या में भी हों, और अपने घमंड के कारण किसी की बात नहीं सुन रहा! तो मेरा क्या बिगाड़ लेंगे?’
लेकिन धीरे-धीरे पक्षियों के राजा गरुड़ को भी यह बात पता चली । उन्हें भी समुद्र की करतूत से बड़ा भारी दुख हुआ । वे समुद्र को दंड देना चाहते थे । पर उन्होंने सोचा, ‘समुद्र तो विष्णु जी का घर है । ऐसे में समुद्र को कुछ कहना मुझे शोभा नहीं देता ।
गरुड़ ने उसी समय विष्णु जी के पास जाकर सारी बात कही कि किस तरह समुद्र ने टिटिहरी के अंडे ले लिए?
विष्णु जी ने समुद्र को बुलाकर डाँटते हुए कहा, “तुम बलशाली हो, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि कमजोरों पर अन्याय करो । तुमने भला टिटिहरी के अंडे क्यों लिए? अगर तुमने उसके अंडे नहीं लौटाए और उससे माफी नहीं माँगी तो दंड के लिए तैयार रहो ।”
सुनते ही समुद्र की घिग्घी बंध गई । उसने विष्णु जी के पैरों पर गिरकर क्षमा माँगी । फिर टिटिहरी के अंडे लेकर खुद उसके पास गया । वे अंडे लौटाकर माफी माँगते हुए उससे कहा, “मुझसे भूल हो गई । आप मुझे माफ कर दें ।”
टिटिहरी को अंडे वापस मिल गए तो उसकी खुशियाँ लौट आईं । उसने समुद्र को माफ कर दिया । फिर टिटिहरी और टिटिहरा खुशी-खुशी अपना जीवन जीने लगे ।