एक बार की बात है, एक बहेलिया जंगल में शिकार के लिए गया । कुछ दूरी पर उसे एक सूअर दिखाई दिया । बहेलिए ने न आगा सोचा, न पीछा, झट सूअर पर तीर छोड़ दिया ।
तीर सूअर के मर्म स्थल पर लगा और वह बुरी तरह घायल हो गया । पर उसने सोचा कि अब मौत से तो मैं घिर ही गया हूँ, तो भला भागने से क्या फायदा? लिहाजा बुरी तरह चिंघाड़ता हुआ वह जंगली सूअर बहेलिए पर झपटा ।
बहेलिए ने उस जंगली सूअर पर तीर चलाने से पहले यह तो सोचा ही नहीं था कि अगर वह पलटकर वार करेगा, तो मैं अपनी रक्षा कैसे करूँगा? लिहाजा जंगली सूअर ने हमला किया तो वह बुरी तरह घबरा गया । कुद्ध और घायल सूअर ने उसकी छाती फाड़ डाली । और फिर थोड़ी ही देर में दोनों का ही प्राणांत हो गया ।
कुछ देर बाद एक सियार उधर से निकला । उसने बहेलिए और सूअर दोनों को मरा हुआ देखा, तो उसकी खुशी का कोई अंत न रहा । बहेलिया और सूअर दोनों के शरीर काफी पुष्ट थे । उनसे ढेर सारा मांस मिल सकता था । सियार ने मन ही मन अपने भाग्य को धन्यवाद दिया और बोला, “अरे वाह, यह तो काफी दिनों के लिए मेरे भोजन का प्रबंध हो गया ।”
तभी सियार की नजर उस बहेलिए के धनुष पर पड़ी । बहेलिए और जंगली सूअर के बीच में वह धनुष पड़ा था । सियार ने उसे देखा तो बड़ा अचंभा हुआ । उसकी समझ में नहीं आया कि भला यह कौन सा जीव है? उसने मनुष्य देखे थे, पशु-पक्षी देखे थे, पर ऐसा विचित्र जीव तो कभी नहीं देखा था ।
उसने सोचा, ‘मैंने मनुष्य और पशु-पक्षियों का मांस तो खाया है, पर यह जो इन दोनों के बीच में पड़ा हुआ है, यह तो कोई निराला ही जीव है । मैंने तो कभी इसके मांस का स्वाद ही नहीं चखा । तो चलो, पहले इसी से शुरुआत करता हूँ ।’
सियार भूल गया कि अगर कभी कोई नई चीज दिखाई दे, तो पहले उसे अच्छी तरह देखभाल लेना चाहिए तब उसे हाथ लगाना चाहिए ।
पर वह तो था उतावला । उसने पूरा जोर लगाकर धनुष की ताँत को काटा, तो उस धनुष की मुड़ी हुई कमानी एकाएक सीधी होकर बड़ी तेजी से ऊपर उछली । वह सीधे सियार के सिर पर जा लगी । उसके तेज आघात के कारण उसी समय उसके प्राण निकल गए ।
अगर सियार ने थोड़ा धीरज से काम लिया होता और सोच-विचारकर काम करता, तो बेचारा इस तरह बेमौत न मरता ।