एक बार छोटे से गाँव में गरीब ब्राह्मण रहता था। वह पढ़ा-लिखा था लेकिन फिर भी सारा दिन कुछ नहीं करता था। उसे पेट भरने के लिए भी भीख माँगनी पड़ती थी। एक दिन वह दर-दर भटकता भीख माँग रहा था कि किसी दयालु महिला ने आटे से भरा बर्तन दे दिया। वह बहुत खुश हुआ।
वह बर्तन को घर लाया और बिस्तर के पास टाँग दिया ‘अब यह चूहों से बचा रहेगाष् उसने खुद से कहा और झपकी लेने के लिए बिस्तर पर पड़ गया।
वह सोचने लगा- मैं अकाल पड़ने तक यह आटा संभाल कर रखूगा। फिर इसे ऊँचे दामों पर बेचूंगा।ष् वह ख्याली पुलाव पकाने लगा-‘उस पैसे से बकरियों का जोड़ा खरीदूंगा। बकरियों के बच्चे होंगे। जल्दी ही वे भी बड़े हो जाएंगे। उनके दूध से पैसा कमाऊँगा। फिर एक गाय और बैल खरीदूंगा। जल्दी ही मेरे पास गायों का झुंड होगा। उनके दूध से और भी पैसा आएगा। मैं एक धनी व्यक्ति बन जाऊँगा।
उसकी सोच आगे बढ़ती गई – मैं अपने लिए सुंदर सा घर बनाऊँगा
और खूबसूरत लड़की से विवाह करूँगा। मेरे घर में दो बच्चे होंगे-एक बेटा और एक बेटी। मैं अपने बच्चों के साथ बाग में खेलूँगा। जब थक जाऊँगा तो पत्नी बच्चों का ध्यान रखेगी और मैं आराम करूँगा। मेरी पत्नी घर के कामों में लगी रहेगी तो उनके साथ खेल नहीं पाएगी। मैं आराम करूँगा और बच्चे मुझे तंग करेंगे। मैं उन्हें छड़ी से खूब पीगा।
ब्राह्मण ने यह सोचते ही छड़ी हवा में उछाल दी। अचानक वह छड़ी मिट्टी के बर्तन से टकराई और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। सारा
आटा धूल में मिल गया। आलसी ब्राह्मण ने यहाँ-वहाँ देखाए न तो कोई घर थाए न पत्नीए न बच्चे और न ही बागए ज़मीन पर टूटा बर्तन और धूल में सना आटा पड़ा था।
शिक्षा :- जिंदगी में आज ही सबसे अधिक महत्त्व रखता है। इसका सोच-समझ कर इस्तेमाल करो.