कवि रहीम और कवि गंग के मध्य गहरी मित्रता थी। दोनों अपनी रचनाएं एक-दूसरे को सुनाते और उन पर गहन चर्चा करते। दोनों संत प्रकृति के थे इसलिए दोनों की खूब जमती थीः रहीम की एक आदत बहुत अच्छी थी कि वे जरूरतमंदों को दान दिया करते थे। उनके पास जो भी आता, वह खाली हाथ नहीं लौटता था। कवि गंग उनकी दान वृत्ति पर प्रसन्न होते थे। किंतु कवि गंग को एक बात अजीब लगती थी कि जब भी रहीम लोगों को दान देते तो अपनी दृष्टि नीचे झुका लेते थे। उनके ऐसा करने से कई बार कुछ लोभी लोग दोबारा दान ले लेते थे।
जब कवि गंग ने कई बार यह दृश्य देखा तो उनसे रहा नहीं गया। एक दिन उन्होंने रहीम से पूछ ही लिया- दान देने का आपका यह कैसा अजीब तरीका है? जब दान देने के लिए हाथ ऊपर करते हैं तो आंखें नीचे क्यों कर लेते हैं? लालची लोग इसका गलत फायदा उठा लेते हैं।
रहीम ने उत्तर दिया- “देनहार कोउ और है, देवत है दिन रैन। लोग भरम हम पर करें, ताते नीचे नैन।” अर्थात् देने वाला कोई और (ईश्वर) है, जो दिन-रात देता रहता है, किंतु जो यहाँ लेने आते हैं उन्हें ऐसा भ्रम होता है कि मैं दे रहा हूँ। बस, यही सोचकर मैं अपनी दृष्टि नीचे झुका लेता हूँ। कवि गंग यह निःस्वार्थ दान भावना देखकर अभिभूत हो गए।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
