लगा, खोपड़ी में अचानक कोई घन चला रहा हो। बाहर बगीचे से झींगुरों के बोलने की आवाज के साथ अचानक चमगादढ़ की चीख गूंजी। कमरे के साथ नम्मो का हृदय भी एक अजाने भुतहा डर से भर गया। लगा जैसे कोई काली-कलूटी घनीभूत आकृति ठठाकर हंसते हुए पूछ रही हो “मजा आ रहा है सुहागरात में दुल्हनिया?” एकाएक वह आकृति झपटी और उसके अरमानों की पोटली के रंग-बिरंगे फूल, छीनती-बिखेरती गायब हो गई। उसके हाथ गीले गालों पर फिरे, अंगुलियाँ आँखों तक पहुँचीं। कजरा धुल गया था। कनखियों से देखा तो उसके सपनों के राजकुमार, सात जन्मों के हमसफर की घोड़े की तरह नाक बज रही थी। वह स्तब्ध बैठी रही। नीद तो भाग ही चुकी थी । 

दूसरे दिन सुबह नहाने-धोने, खाने-पीने के बाद देवर-देवरानियों, ननदों की हंसी -ठिठोली का दौर चला। सब मजाक करके खिलखिलाते रहे। नम्मो का चित्त कहीं और था। वह बनावटी हंसी भी हंस नहीं पा रही थी। क्या करे, क्या कदम उठाये ? उसकी समझ के बाहर हो चुका था। तभी ड्राईंगरूम में दूल्हे राजा का प्रवेश हुआ। शराब की खुमारी शायद पूरी तरह उतरी नहीं थी। लाल-लाल आंखें, रूखा-रूखा खलनायकों सा चेहरा। आते ही अड़ियल दुष्ट आवाज में बोला- “माम, मैं आपकी बहू को जरा अपने दोस्त शरद के यहां से घुमा लाऊं……? माम  मुस्कुराती बोली- जा रहा है तो अपने मामा का घर भी दिखाते लाना। जा बहू। “नम्मो निषेध में कुछ बोलना चाहती थी परन्तु एक अनागत भय ने जैसे उसका मुंह जबरदस्ती बंद कर दिया। दरवाजे के पास से खलनायकी आवाज गूंजी ” चलो……जेठानी हंसती हुई बोली” -ऐसे ही ले जाएगा क्या ? उसे तैयार तो हो लेने दे, नम्मो खड़ी होती हुई पल भर ठिठकी। उधर से दूल्हे राजा की रूखी आवाज आई” अरे ठीक तो है  क्या सजेगी।” वह कमरे से बाहर निकला। पीछे-पीछे बलि के बकरे की तरह नम्मो निकली। उसने स्कूटर स्टार्ट किया और आदेश दिया “बैठो……….”वह चुपचाप पीछे बैठ गई। उसके अवचेतन में कहीं रात की धमकी गूंज रही थी “तेरे मुलायम, फूल जैसे जिस्म को गोद. गोदकर,टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा…….।” और चमक रहा था धारदार नुकीला छूरा ! 

गाड़ी झटके के साथ आगे बढ़ी। नम्मो उस पति नामी दुष्ट के बदन को छूना नहीं चाहती थी परन्तु गाड़ी के झटके से खुद को गिरने से बचाने के लिए उसने, उसका कन्धा जोर से पकड़ा। वह गरजा” ठीक से बैठ साली, बैठना भी नहीं आता तुझे…….उसका मन हुआ कि चलते स्कूटर से कूद जाए, लेकिन यह संभव नहीं था। जैसे ही स्कूटर चौराहे पर पहुंचा, वहां पीपल पेड़ के नीचे बने मंच पर दस -बारह आवारा किस्म के युवा प्रौढ़ बावन परियों में रमे, ठहाका लगाते दिखे। दूल्हे ने पहले गाड़ी की गति कम की फिर स्कूटर को उनके एकदम पास ले जाकर चीखा “देखो सालों, तुम लोग कहते थे न कौन देगा तुझे लड़की …..मुझे शिखंडी कहते थे हरामियों……देख लो ये रही मेरी बीवी…….एकाएक उसने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और चिल्लाया “देखो हरामजादों, देखो इस शिखंडी का कमाल……! है ऐसी खूबसूरत बीवी तुम्हारी। “

 नम्मो को कुछ सूझ नहीं रहा था। अचानक उसने साड़ी का पल्लू खींचा और चेहरे को घूंघट के आवरण में ढाप लिया। वह, उसका दूल्हा नामी जीव उसे शहर की गली-कूचों में विद्रूप चेहरे से चीखता घुमाता रहा “देखो सालों, मुझे शिखंडी पुकारते थे न ……..कहते थे, कौन करेगा मुझसे शादी ? देख लो, ये रही मेरी बीवी …….”नम्मो घूंघट के अवगुंठन में भी शर्म से पानी-पानी हो रही थी।  वह क्या करे? उसकी समझ से परे था। करीब पौन घंटे शहर की गली-कूचों और सड़कों में घुमाने के बाद वह पति नामी जीव घर लौटा। गाड़ी से उतरते-उतरते नम्मो की नजर दूल्हे राजा से टकराई। लाल-लाल खूनी आंखें और कसाई चेहरा ! जुगुप्सा से उसने नजरें नीची कीं और चुपचाप अपने कमरे में घुस गई ।

ससुराल के दो-तीन दिन मानसिक रूप से नर्क की घोर यातनाओं में बीते। अश्लील गालियों और कत्ल की धमकियों से नम्मो का गुलाबी चेहरा और देह शाख से टूटे फूल की तरह मुरझाकर रह गये थे। चौथे दिन उसके पिता उसे बिदा कर ले जाने आये। खलनायक दूल्हा तो भेजने को तैयार ही नहीं होता था। परम्पराओं और रीति-रिवाजों का नाम लेकर ले- दे विदाई हो पाई। जाते-जाते कमरे के अंदर अकेले में धमकी मिली “सात फेरे लिये हैं साली, चुपचाप लौट आना। किसी से मेरा भेद बताया और नहीं लौटी तो वहीं तेरे घर आकर गोली मारूंगा समझी। ऐसा वैसा मत समझना हां………।” 

नम्मो, पिता के साथ अपने विवाहित जीवन के अरमानों के बिखरे फूलों वाली चिंदी-चिंदी पोटली लेकर लौट आई । घर पहुंची तो हफ्तों से घनीभूत पीड़ा मां को देखकर ऐसी उमड़ी कि घंटों उसकी छाती से लगकर रोती रही। पिता से साफ़-साफ़ कह दिया कि वह अब कभी ससुराल नहीं लौटेगी। साल भर तलाक का मुकदमा चला। नम्मो को तलाक मिल गया। अरमानों की पूजा वाली फटी थिगड़ेल, चिंदी-चिंदी, सूखे फूलों की पोटली के टुकड़ों को उसने अपने आंसुओं की गंगा-जमुनी नदी में कब विसर्जित किया, उसे खुद ही पता न चला।