ameer kee roti moral story
ameer kee roti moral story

गुरु नानकदेव ने लोगों को भेदभाव से ऊपर उठकर सच्ची ईश्वर भक्ति का संदेश दिया। वे अमीर-गरीब या जात-पात की दीवारों को नहीं मानते थे। दीन-दुखी और गरीबों के लिए उनके मन में सच्चा प्यार था। वे जगह-जगह घूमकर इसी सच्चे धर्म और सच्ची भक्ति का उपदेश देते थे।

एक बार की बात है, गुरु नानकदेव लंबी यात्रा पर निकल पड़े थे। वे जगह-जगह प्रवचन करते आगे बढ़ते जा रहे थे। लोग उनकी बातों से बहुत प्रभावित होते थे। एक गाँव में वे विश्राम के लिए रुके। वहाँ एक अमीर आदमी उनके लिए अपने घर से बड़ा स्वादिष्ट खाना बनवाकर लाया। तभी एक गरीब आदमी भी रूखी रोटियाँ और दाल लेकर आया।

अमीर आदमी ने मन ही मन हँसकर सोचा, ”भला मेरे स्वादिष्ट भोजन के सामने इस गरीब का रूखा-सूखा खाना कहाँ ठहरता है? गुरु नानकदेव जरूर मेरा लाया हुआ खाना ही खाएँगे।”

पर उसे हैरानी हुई। गुरु नानक ने उसकी थाली को परे खिसका दिया और गरीब आदमी के लाए हुए रूखे-सूखे सादा भोजन को बड़े प्रेम से खाने लगे।

उस अमीर आदमी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उसे लगा, गुरु नानक ने उसका अपमान किया है। वह बोला, ”गुरु जी, मैं आपके लिए घर से इतना बढ़िया भोजन बनवाकर लाया हूँ। फिर आप इस गरीब आदमी का रूखा-सूखा क्यों खा रहे हैं?”

सुनकर गुरु नानक एक क्षण के लिए चुप रहे। फिर कहा, ”अच्छा, तो तुम खुद अपनी आँखों से दोनों का फर्क देख लो।”

गुरु नानक ने एक हाथ में अमीर आदमी की लाई हुई रोटी को पकड़ा, दूसरे में गरीब की रूखी-सूखी रोटी। अमीर की रोटी को उन्होंने दबाया तो उसमें से खून की धार निकली, पर गरीब की रोटी को दबाया तो उसमें से दूध की धार निकली।

देखकर वहाँ मौजूद सब लोग हैरान रह गए। अमीर आदमी का चेहरा भी उतर गया, जैसे उसकी सच्चाई सबके सामने आ गई हो!

गुरु नानक देव ने बड़े शांत स्वर में उस अमीर आदमी से बोले, ”देखो भाई, तुम्हारा खाना स्वादिष्ट जरूर है, पर कितने लोगों का खून चूसकर और कष्ट देकर तुम्हें यह समृद्धि मिली है, यह तुम्हारी रोटी ने बता दिया। जबकि मेहनत और ईमानदारी की कमाई कैसी होती है, यह इस गरीब आदमी की रोटी से निकली दूध की धार को देखकर जाना जा सकता है।”

सुनकर अमीर आदमी का सिर शर्म से झुक गया।