akl kee paradaadee moral story
akl kee paradaadee moral story

जुगनीपुर गाँव का किस्सा है। उसी गाँव में रहता था बुद्धू। नाम तो उसका न जाने क्या था, पर सब उसे कहते थे, बुद्धूराम। था भी वह थोड़ा बुद्धू। ‘बुद्धूराम’ कहकर कोई बुलाए, तो वह चिढ़ता था। सोचता था, जैसे भी हो, मुझे अक्लमंद होना चाहिए।

कभी-कभी बुद्धू लोगों के ताने और उलटी-सीधे बातें सुनकर दुखी हो जाता, तो उसकी घरवाली सुंदरी मुस्कराकर उसे दिलासा देती। कहती, ”पर यह तो सोचो कि तुम दिल के कितने अच्छे हो! किसी का बुरा तो नहीं सोचते। फिर तुम्हें परेशान होने की क्या जरूरत है?”

बुद्धू को बात समझ में आ जाती। लेकिन कुछ दिनों बाद फिर कोई ऐसी बात हो जाती कि वह परेशान हो उठता।

एक दिन बुद्धू ने दुखी होकर अपनी घरवाली सुंदरी से कहा, ”अरे सुनो तो! जरा बताओ, अक्ल कहाँ मिलती है? थोड़ी अक्ल मिल जाए, तो लोग मुझे बुद्धू कहना छोड़ देंगे।”

सुनकर सुंदरी को हँसी आ गई। बोली, ”मुझे तो पता नहीं। पर सुना है, पहाड़ पर एक बुढ़िया माई रहती है। वह बड़ी अक्लमंद है। उससे जाकर बात करो।”

अगले दिन बुद्धू सुबह-सुबह नाश्ता करके निकला। पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने लगा। होते-होते दोपहर हो गई। ऊपर पहुँचा तो देखा, एक बुढ़िया अपने खेतों में पानी दे रही है। बुद्धू ने पूछा, ”क्या तुम्हीं अक्ल की परदादी हो? जल्दी से मुझे थोड़ी अक्ल दे दो। बताओ, मुझे कितने पैसे देने होंगे?”

सुनते ही बुढ़िया जोर से हँस पड़ी। बोली, ”ठीक है, लेकिन अक्ल का करोगे क्या?”

”करना क्या है! सब गाँव वालों पर अपने अक्लमंद होने का रोब गाँठूँगा। सब मुझे बुद्धू कहकर चिढ़ाते जो हैं।”

”अच्छा, बुद्धू कहते है? चच्च…यह तो बुरी बात है।” बुढ़िया बोली। फिर पूछने लगी, ”अच्छा बताओ तो, तुम्हारे घर पर कौन-कौन हैं।”

”कोई नहीं, बस मेरी घरवाली है सुंदरी। वह तो बड़ी ही सुंदर, बड़ी ही अच्छी है!” बुद्धू बोला।

बुढ़िया मुस्कराई, ”अच्छा ठीक है, तो कल उसे भी साथ लेकर आना।”

अगले दिन बुद्धू के साथ सुंदरी भी गई। बुढ़िया ने देर तक सुंदरी से बातें कीं। सुंदरी उसे भा गई। वह थी ही इतनी अक्लमंद।

कुछ देर बाद बुढ़िया बोली, ”जा बुद्धू, अब घर जा। मैंने देख लिया, तेरी घरवाली में बहुत अक्ल है। फिर तो तुझे चिंता करने की जरूरत ही नहीं है। आपस में अक्ल बाँटकर काम चलाओ। जब भी तेरे सामने कोई दुख-परेशानी आए, तो घरवाली से सलाह कर लिया कर।”

”अरे वाह, यह तो मैंने सोचा नहीं था कि मेरी घरवाली के पास अक्ल की पूरी पोटली है, पोटली!” कहकर बुद्धू हँसा।

सुंदरी के साथ उसने बुढ़िया को प्रणाम किया। फिर उसका हाथ पकड़कर बुद्धू बड़े मजे से अपने घर की ओर चल पड़ा।