वह बस में बैठी हुई उसके चलने का इंतजार कर रही थी। तभी किसी वाहन की टक्कर लगने से बाइक पर सवार दंपती सड़क पर धड़ाम से जा गिरे। चोट गहरी थी लिहाजा दोनों खून से लथपथ तड़पने लगे। यह दृश्य देख उसकी चीख निकल गई। तभी उसने देखा कि तमाशबीनों की भीड़ के बीच में से 3-4 जने दुर्घटनास्थल की तरफ दौड़ पड़े।

‘मानवता अभी जिंदा है’ उसने मन ही मन सोचा ‘शायद ये लोग इन्हें अस्पताल ले जाने की जल्दी में हैं ताकि इनकी जान बचाई जा सके।’ पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। अस्पताल ले जाना तो दूर रहा किसी ने उन्हें संभालने तक की जहमत नहीं उठाई।

उन ‘मददगारों’ ने अपने-अपने मोबाइल निकाल लिए थे। हर कोई एंगल बदल-बदल कर उन तड़पते-कराहते घायलों के वीडियों के वीडियो शूट करने में मशगूल था।

उनकी सारी चुस्ती-फुर्ती का केंद्र उन बेबसों की जान बचाने पर न होकर उनकी बेबसी’ को शूट करने पर था। ताकि उन्हें सोशल साइट्स पर अपलोड करने का श्रेय मिल सके। बस चल पड़ी तो यह नज़ारा आंखों से ओझल होने लगा पर उस नजारे का क्या, जो उसके ज़ेहन में उथल-पुथल मचाते हुए मानवता पर अनगिनत सवाल खड़े करता जा रहा था। 

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