Manto story in Hindi: मिजाजपुर्सी चलती गाड़ी रोक ली गई। जो दूसरे मजहब के थे, उनको निकाल-निकाल कर तलवारों और गोलियों से हलाक कर दिया गया। इससे निपट कर गाड़ी के बाकी मुसाफिरों की हलवे, दूध फलों से खातिर की गई।

गाड़ी चलने से पहले खातिर करने वालों के प्रबंधक ने मुसाफिरों को संबोधित करके कहा, ‘भाइयों और बहनों! हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला देर से मिली। यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे, उस तरह आपकी खिदमत नहीं कर सके।’

खबरदार

बलवाई मालिक-मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीटते हुए बाहर ले आए। कपड़े झाड़ कर वह उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा, तुम मुझे मार डालो, लेकिन खबरदार जो मेरे रुपये-पैसों को हाथ लगाया।’

निगरानी में

अ अपने दोस्त ब को अपना हम-मजहब जाहिर करके, उसे महफूज मुकाम पर पहुंचाने के लिए मिलिटरी के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ। रास्ते में ब ने, जिसका मजहब मसहलतन बदल दिया गया था, मिलिटरी वालों से पूछा, ‘क्यों जनाब, आसपास कोई वारदात तो नहीं हुई?’

जवाब मिला, ‘कोई खास नहीं। फलां मुहल्ले में अलबत्ता एक कुत्ता मारा गया।’

सहमकर ब ने पूछा, ‘कोई और खबर?’

जवाब मिला; ‘खास नहीं, नहर में तीन कुत्तियों की लाशें मिली।’

अ ने ब की खातिर मिलिटरी वालों से कहा, ‘मिलटरी कुछ इंतजाम नहीं करती?’ जवाब मिला, ‘क्यों नहीं? सब काम उसकी निगरानी में होता है।’

हैवानियत

बड़ी मुश्किल से मियां-बीवी घर का थोड़ा सा सामान बचाने में कामयाब हुए जवान लड़की थी, उसका कोई पता न था। छोटी-सी बच्ची थी-उसकी मां ने अपने सीने के साथ चिपटाए रखा। एक भूरी भैंस थी, उसे बलवाई हांक कर ले गए। गाय बच गई, लेकिन उसका बछड़ा न मिला।

मियां-बीवी, उनकी छोटी-सी लड़की और गाय एक जगह छिपे हुए थे। सख्त अंधेरी रात थी। बच्ची ने डर से रोना शुरू किया तो खामोश फिजा में जैसे कोई ढोल पीटने लगा। मां ने खौफजदा होकर बच्ची के मुंह पर हाथ रख दिया कि दुश्मन सुन न ले। आवाज दब गई। बाप ने एहतियातन ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।

थोड़ी देर के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज आई। गाय के कान खड़े हुए। वह उठी और इधर-उधर पागलों की तरह दौड़ती हुई डकारने लगी। उसको चुप कराने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन बेसूद।

शोर सुनकर दुश्मन आ पहुंचा। दूर से मशालों की रोशनी दिखाई दी। बीवी ने अपने मियां से साथ कहा-

‘तुम क्यों इस हैवान को अपने साथ ले आए थे?’

रिआयत

‘मेरी आंखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो।’

‘चलो, इसी की बात मान लो, कपड़े उतारकर हांक दो एक तरफ।

पेशबंदी

पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।

दूसरी शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मुकाम पर नियुक्त कर दिया गया। तीसरा केस राम के बारह बजे लांडरी के पास हुआ। जब इंस्पेक्टर ने सिपाही को इस नई जगह पहरा देने का हुक्म दिया तो उसने कुछ देर गौर करने के बाद कहा, ‘मुझे वहां खड़ा कीजिए, जहां नई वारदात होने वाली हो।’

उलाहना

‘देखो यार, तुमने ब्लैक-मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी नहीं जली।’

आराम की जरूरत

‘मरा नहीं, देखो, अभी जान बाकी हैं।’

‘रहने दो यार, मैं थक गया हूं।’

किस्मत

‘कुछ नही दोस्त, इतनी मेहनत करने पर सिर्फ एक टिन हाथ लगा था, पर उसमें भी साला सूअर का गोश्त निकला।’

दावते-अमल

आग लगी तो सारा मुहल्ला जल गया। सिर्फ एक दुकान बच गई, जिसकी पेशानी पर यह बोर्ड लगा था: ‘यहां इमारतसाजी का सारा सामान मिलता है।’

बंटवारा

एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक चुना। जब वह उसे उठाने लगा तो वह अपनी जगह से एक इंच भी न हिला।

एक आदमी ने जिसे शायद अपने मतलब की कोई चीज ही नहीं मिल रही थी, संदूक उठाने की कोशिश करने वाले से कहा, मैं तुम्हारी मदद करूं?’

संदूक उठाने की कोशिश करने वाला मदद लेने पर राजी हो गया। उस आदमी ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज ही नहीं मिल रही थी, अपने मजबूत हाथों से संदूक को हिलाया और उठा कर पीठ पर रख लिया। दूसरे ने सहारा दिया।

दोनों बाहर निकले। संदूक बहुत भारी था। उसके वजन के नीचे उठाने वाले की पीठ चटख रही थी। टांगें दुहरी होती जा रही थीं।

लेकिन इनाम पाने की इच्छा ने उस कष्ट का अनुभव नहीं होने दिया।

संदूक उठाने वाले के मुकाबले में संदूक को चुनने वाला बहुत ही कमजोर था। रास्ते भर वह केवल एक हाथ से सहारा देकर अपना हक कायम किए रहा।

जब दोनों सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए तो संदूक को एक ओर रख उठाने वाले ने कहा, ‘बोलो, इस संदूक के माल में से मुझे क्या मिलेगा?’

संदूक पर पहली नजर डालने वाले ने जवाब दिया, एक चौथाई।’

‘बहुत कम है।’

‘कम बिल्कुल नहीं, ज्यादा है क्योंकि सबसे पहले मैंने ही इस पर हाथ डाला था।’

‘ठीक है, लेकिन यहां तक इस कमरतोड़ बोझ को उठाकर लाया कौन है?’

‘आओ, आधे-आधे पर राजी होते हैं।’

‘ठीक है, खोलो संदूक।’

संदूक खोली गई तो उससे एक आदमी बाहर निकला। हाथ में तलवार थी। बाहर निकलते ही उसने दोनों हिस्सेदारों को चार भागों में बांट दिया।

करामात

लूटा हुआ माल प्राप्त करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।

लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौका पाकर अपने से अलग कर दिया ताकि कानून के पंजे से बचे रहें। एक आदमी के सामने एक समस्या उठ खड़ी हुई। उसके पास चीनी की दो बोरियां थीं। एक तो ज्यों-त्यों रात के अंधेरे में पास वाले कुंए में फेंक आया। लेकिन जब दूसरी उठाकर उसमें डालने लगा तो खुद भी साथ चला गया।

शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। कुएं में रस्सियां डाली गईं। दो जवान नीचे उतरे ओर उस आदमी को बाहर निकाल लिया। लेकिन कुछ घंटों के बाद वह मर गया। दूसरे दिन जब इस्तेमाल के लिए लोगों ने कुएं से पानी निकाला तो वह मीठा था। उसी रात उस आदमी की कब्र पर दिए जल रहे थे।

हलाल या झटका

‘मैंने उसके गले पर छुरी रखी। धीमे-धीमे चलाई और उसको हलाल कर दिया।’

‘यह तुमने क्या किया?’

‘क्यों?’

‘इसको हलाल क्यों किया?’

‘आनंद आता है इस तरह।’

‘आनंद आता है के बच्चे । तुझे झटका करना चाहिए था…..इस तरह…’ और हलाल करने वाले का झटका हो गया।

सफाई पसंदी

गाड़ी रुकी हुई थी।

तीन बंदूक वाले एक डिब्बे के पास आए। खिड़कियों में झांक कर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा, ‘क्यों भाई, कोई मुर्गा है?’

एक यात्री कुछ कहते-कहते रुक गया। बाकी लोगों ने जवाब दिया, ‘जी नहीं।’ थोड़ी देर के बाद चार भाले वाले जवान आए। खिड़कियों के अंदर झांक कर उन्होंने यात्रियों से पूछा, ‘कोई मुर्गा-वुर्गा है?’

उस यात्री ने जो पहले कुछ कहते-कहते रुक गया था, जवाब दिया ‘जी, मालूम नहीं, आप अंदर आकर पाखाने में देख लीजिए।’

भाले वाले अंदर घुसे। पाखाना तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्गा निकल आया। एक भाले वाला जवान चिल्लाया, ‘कर दो हलाल।’ दूसरे ने कहा, ‘नहीं, यहां नहीं। डिब्बा खराब हो जाएगा। बाहर ले चलो।’

मिस्टेक

छुरी पेट चाक करती हुई नाक के नीचे तक चली गई। इजारबंद कट गया। छुरी मारने वाले के मुंह से तुरंत अफसोस के शब्द निकले, ‘च, च, च, च! मिस्टेक हो गया।’

शांति

चालीस-पचास आदमियों का एक गिरोह लूटमार के लिए एक मकान की ओर बढ़ रहा था। अचानक उस भीड़ को चीर कर एक दुबला-पतला और अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला और पलटकर लूटमार करने वालों की तरफ ऐसे मुखातिब हुआ जैसे उनका नेता हो। उसने लूटमार करने वालों से कहा, ‘भाइयों, इस मकान में बेशुमार दौलत है। बेशकीमती चीजें हैं। आओ, हम सब मिल कर इस पर कब्जा करें और माल-भत्ता आपस में बांट लें।’

हवा में बहुतेरी लाठियां लहराई, बहुत सी मुट्ठियां भिंची और एक भारी-भरकम नारा जोर-शोर से लगाया गया।

चालीस-पचास लठैतों का गिरोह उस दुबले-पतले और अधेड़ उम्र के आदमी के नेतृत्व में मकान की तरफ तेजी से बढ़ने लगा जिसमें उसने अपार धन और बहुमूल्य वस्तुएं होने का रहस्य उद्घाटित किया था।

मकान के मुख्य द्वार पर पहुंच कर वह दुबला-पतला आदमी फिर लट्ठबाजों की ओर मुड़ा और बोला, ‘भाइयों, इस बिल्डिंग में जितना माल-टाल है, वह सब आपका है, इसलिए कोई छीना-झपटी न करे, आपस में न लड़े…..अब आओ आगे बढ़ो।’

एक चिल्लाया, ‘दरवाजे में ताला है।’

दूसरे ने ऊंची आवाज में कहा, ‘तोड़ डालो….तोड़ डालों।’

हवा में कितनी ही लाठियां लहराईं, कितनी ही मुट्ठियां भिंची और आकाश को हिला देने वाला नारा लगाया गया।

दुबले-पतले आदमी ने हाथ के इशारे से दरवाजे तोड़ने वालों को रोका और मुस्करा कर कहा, ‘भाइयो, ठहरो, मैं इसे चाबी से खोलता हूं।’

उसने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला और एक चाबी छांट कर ताले में डाली। ताला खुल गया। शीशम का भारी भरकम दरवाजा ची-ची करके खुला कि भीड़ पागलों की तरह अंदर दाखिला हो गई।

दुबले-पतले आदमी ने आस्तीन से माथे का पसीना पोंछते हुए कहा, ‘भाइयों, आराम-आराम से, जो कुछ इस मकान में है तुम्हारा है, फिर इस आपाधापी की क्या जरूरी है।’

उसकी बात सुनते ही भीड़ शांत हो गई। एक-एक करके लट्ठबाज मकान में घुसने लगे। लेकिन मकान के भीतर चीजों की लूट शुरू हुई कि धांधली मच गई। तमाम लुटेरे बड़ी बेदर्दी से कीमती चीजों पर हाथ साफ करने लगे।

दुबले-पतले आदमी ने जब यह हाल देखा तो दुखी आवाज में उनके लीडरों से कहा, ‘भाइयों, धीमे-धीमे, आपस में लड़ने-झगड़ने की कोई जरूरत नहीं। नोंच-खसोट की भी कोई जरूरत नहीं। शांति से काम लो। यदि किसी के हाथ ज्यादा कीमती चीज आ गई तो जलो मत, इतना बड़ा मकान है, अपने लिए और कुछ ढूंढ लो। ऐसा करते हुए जंगली न बनो। मारधाड़ करोगे तो चीजें टूट जाएंगी, इसमें नुकसान तुम्हारा ही है।’

लीडरों में एक बार फिर शांति पैदा हो गई। भरा हुआ मकान धीमे-धीमे खाली होने लगा।

दुबला-पतला आदमी समय-समय पर चेतावनी देता रहा, ‘देखो भैया, यह रेडियो है,आराम से उठाओ। ऐसा न हो टूट जाए। इसके तार भी तो साथ लेते जाओ।’

‘तह कर लो भाई…इसे तह कर लो। अखरोट की लकड़ी की तिपाई है। हाथीदांत की पच्चीकारी है। बड़ी नाजुक चीज है। हां, अब ठीक है।’

‘नहीं-नहीं, यहां मत पियो, बहक जाओगे, बहक जाओगे। इसे घर ले जाओ।’

‘ठहरो-ठहरो, मुझे मेन स्विच बंद कर लेने दो। ऐसा न हो कि करंट का झटका लग जाए।’ इतने में एक कोने से शोर उठा। चार लठैत रेशमी कपड़े के एक थान पर छीना-झपटी कर रहे थे। दुबला-पतला आदमी तेजी से उनकी ओर बढ़ा और लानत देते हुए बोला, ‘तुम कितने नासमझ हो, ऐसे तो यह कीमती कपड़ा तार-तार हो जाएगा। घर में सब चीजें मौजूद हैं। गज भी होगा। तलाश कर लो और नाप कर आपस में बांट लो।’

सहसा कुत्ते के भौंकने की आवाज आई, ‘अफ-अफ-अफ…’ अगले ही पल एक कद्दावर कुत्ता दौड़ता हुआ अंदर आया और आते ही उसने लपक कर दो-तीन लीडरों को काट खाया।

दुबला-पतला आदमी चिल्लाया, ‘टायगर….टायगर!’

टायगर, जिसके भयावह मुंह में एक लीडर का नुंचा हुआ गिरेबान था, निगाह नीची किए-किए दुम हिलाता हुआ दुबले-पतले आदमी की ओर कदम उठाने लगा।

कुत्ते के हरकत में आते ही तमाम लीडर भाग खड़े हुए थे, केवल एक वही बाकी रह गया था जिसके गिरेबान का टुकड़ा टायगर के मुंह में था।

उस लीडर ने दुबले-पतले आदमी की तरफ देखते हुए पूछा, ‘कौन हो तुम?’

दुबला-पतला आदमी मुस्कुराया, ‘इस घर का मालिक।

देखो-देखो, तुम्हारे हाथ से कांच का मर्तबान गिर रहा है।’

हमेशा की छुट्टी

‘पकड़ लो….पकड़ लो…देखो, जाने न पाए।’

शिकार थोड़ी सी भागदौड़ के बाद पकड़ लिया गया। जब भाले उसके आर पार होने के लिए आगे बढ़े तो उसने कांपती आवाज में गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘मुझे न मारो…मुझे न मारो…मैं छुट्टियों में अपने घर जा रहा हूं।’

पठानिस्तान

‘खो, एकदम जल्दी बोलो, तुम कौन अए?’

‘मैं….मैं….।’

‘खो, शैतान का बच्चा, जल्दी बोलो, इन्दु अए या मुस्लमीन?’

‘मुस्लमीन।’

‘खो, तुम्हारा रसूल कौन है?’

‘मुहम्मद खान।’

‘टीक अए, जाव।’

बेखबरी का फायदा

लबलबी दबी। पिस्तौल से झुंझला कर गोली बाहर निकली।

खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दुहरा हो गया।

लबलबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी। दूसरी गोली भनभनाती हुई बाहर निकली।

सड़क पर माशकी की मशक फटी। वह औंधे मुंह गिरा और उसका लहू मशक के पानी में मिल कर बहने लगा।

लबलबी तीसरी बार दबी। निशाना चूक गया। गोली एक गीली दीवार में जज्ब हो गई।

चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी। वह चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई।

पांचवीं और छठी गोली बेकार गई। कोई हलाल हुआ न जख्मी। गोलियां चलाने वाला भन्ना गया।

उसी वक्त सड़क पर एक छोटा सा बच्चा दिखाई दिया। गोलियां चलाने वाले ने पिस्तौल का मुंह उसकी तरफ मोड़ा।

उसके साथी ने कहा, ‘यह क्या करते हो?’

गोलियां चलाने वाले ने पूछा, ‘क्यों?’

‘गोलियां तो खत्म हो चुकी है।’

‘तुम खामोश रहो, इतने से बच्चे को क्या मालूम?’

जूता

हजूम ने रुख बदला और गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा। लाठियां बरसाई गईं। ईंटें और पत्थर फेंके गए। एक ने मुंह पर तारकोल मल दिया। दूसरे ने बहुत से पुराने जूते जमा किए और उसका हार बना कर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन पुलिस आ गई और गोलियां चलनी शुरू हुईं।

जूतों का हार पहनाने वाला जख्मी हो गया। चुनांचे मरहमपट्टी के लिए उसे सर गंगाराम अस्पताल भेज दिया गया।

मुनासिब कार्रवाई

जब हमला हुआ तो मुहल्ले में से अल्पसंख्यकों के कुछ आदमी तो कत्ल हो गए, जो बाकी थे, जान बचाकर भाग निकले। एक आदमी और उसके बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छुप गए।

छुपे हुए मियां-बीवी ने दो दिन और दो रातें कातिलों के आने की संभावना में गुजार दी, लेकिन कोई न आया।

दो दिन और गुजर गये। मौत का डर कम होने लगा। भूख और प्यास ने ज्यादा सताना शुरू किया।

चार दिन और बीत गए।

मियां-बीवी को जिंदगी और मौत से कोई दिलचस्पी न रही। दोनों छुपे स्थान से बाहर निकल आए।

खाविंद ने बड़ी दबंग आवाज में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया और कहा, ‘हम दोनों खुद को आपके हवाले करते हैं। हमें मार डालो।’

जिन्हें आकर्षित किया गया था, वे इस सोच में पड़ गए कि हमारे मजहब में तो जीव हत्या पाप है।

वे सब जैनी थे।

उन्होंने आपस में मशवरा किया और मियां-बीवी को मुनासिब कार्रवाई के लिए दूसरे मुहल्ले के आदमियों के सुपुर्द कर दिया।

इस्लाह

‘कौन हो तुम?’

‘तुम कौन हो?’

‘हर-हर महादेव…हर-हर महादेव…हर-हर महादेव।’

‘सबूत क्या है?’

‘सबूत…मेरा नाम धर्म चंद है।’

‘यह कोई सबूत नहीं।’

‘चार वेदों में से कोई भी बात मुझसे पूछ लो।’

‘हम वेदों को नहीं जानते। सबूत दो।’

‘क्या?’

‘पायजामा ढीला करो।’

पायजामा ढीला हुआ तो शोर मच गया, ‘मार डालो, मार डालो।’

‘ठहरो, ठहरो, मैं तुम्हारा भाई हूं। भगवान की कसम, तुम्हारा भाई हूं।’

‘तो यह क्या सिलसिला है?’

‘जिस इलाके से आ रहा हूं, हमारे दुश्मनो का था इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा, सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए।…एक यही चीज गलत हो गई है। बाकी बिल्कुल ठीक हूं।’

‘उड़ा दो गलती को।’ गलती उड़ा दी गई। धर्म चंद भी साथ ही उड़ गया।

घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और 42 रुपये देकर उसे खरीद लिया। रात गुजार कर एक दोस्त ने पूछा, ‘तुम्हारा नाम क्या है?’

लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भन्ना गया, ‘हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मजहब की हो।’

लड़की ने जवाब दिया, ‘उसने झूठ बोला।’

यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा, ‘उस हमरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया है। हमारे ही मजहब की लड़की थमा दी। चलो, वापस कर आएं।’