Hundred Dates
Hundred Dates

Hindi Love Story: “कुछ बड़ा करना है यार!” मैंने अपने सारे सुने और पढ़े मोटिवेशन का सार निकाल कर रख दिया। वह हँसने लगी “हा…हा…हा…तो कर लो, रोका किसने है?”

“अरे वही तो समझ रहा हूँ कि करूँ क्या?”

“एक काम करो… शादी कर लो, बच्चे पैदा कर लो। यही बड़ा काम सब करते हैं।”

“तुम तो मज़ाक करने लगी। सीरियसली कह रहा हूँ।” तब तक दिमाग़ की थोड़ी बत्ती जली और कभी कुत्सित राह पर चल निकलने वाले मन ने सोचा कहीं यह ऑफर निकल ना जाए। मैंने फिर से कहा-“वैसे तुमने इतना बुरा सजेसन भी नहीं दिया। कर लो शादी।” बत्तीसी दिखाते हुए आख़िरकार मैंने अपना उचक्का ख़्याल परोस ही डाला।

“मुझे ग़ुलामी में बाँधने के सपने देखना बंद करेंगे महोदय?”

“अरे प्रेम का बंधन तो…”

“मुझे घिन आती है इस प्रेम से।”

“तुम्हें मेरे प्रेम से घिन आती है? या प्रेम से ही घिन आती है?”

“सुनो पुरुषों के वंशज। मुझे तुमसे प्यार है, लेकिन मैं तुम्हारी लौंडिया नहीं बन सकती।”

शायद उसे लगा हो, नारीवाद का झंडा उठाते वह ज़्यादा खारी हो गई। आवाज़ में मोहब्बत के शरबत का तड़का मारते हुए उसने कहा-“तंगी तुम्हारे प्रेम में नहीं, तुम्हारी विक्षिप्त इच्छाओं में है। मैंने नहीं रोका कभी तुम्हें, कि मुझसे प्यार मत करो। लेकिन मैं क्या करूँ, सुंदर सी नकली दुनिया का वहम मुझसे पाला नहीं जाता। तुम्हारा प्यार मेरे लिए इस समय दुनिया में सबसे क़ीमती है और इसी नशे में जीना मेरे जीवन का लक्ष्य। मैं नहीं चाहती कि अपने प्रेम को रोज़ मरते देखूँ। अपने सपनों का क़त्ल कर, मैं उस ज़िंदगी को नहीं चुन सकती जो मुझे परजीवी होने की टीस देती रहे। तुम्हें यह क्यों लगता है कि अगर तुमने मुझे रिश्तों में नहीं बाँधा तो मैं तुम्हारी ज़िंदगी से ही निकल जाऊँगी? तुम्हें कुछ बड़ा करना था ना? पहले बड़ा सोचना तो शुरू करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।” मेरी नज़र उसके चमकीले ललाट पर थी, जो अपनी क्षमताओं के प्रति आश्वस्त था और बरसों की ग़ुलामी खारिज कर देने का साहस, जिसकी भवों में परचम की तरह लहलहा रहा था।

उसने यह कहा नहीं, पर मैंने यही समझा कि जैसे वह कह रही हो, मुझे और प्यार को ज़िंदगी की मंज़िल बना सको तो आओ, मैं इश्क़ में मिले ईनामी तमगों की तरह गले में लटकते रहने से नफ़रत करती हूँ।