एक तपस्वी मुनि के आश्रम में कभी कोई ग्रामीण कुत्ता भूले-भटके पहुँच जाता था कुछ समय बाद वह वहीं का होकर रह जाता है। मुनि के आश्रम में रहते हुए वह सात्विक वृत्ति का हो जाता है और जन-समुदाय के साथ उनके उपदेश सुनता है। एक बार वह निकट के जंगल में घूमते-टहलते हुए एक चीते को देखा, जो उस पर आक्रमण करने के लिए उसकी ओर बढ़ता चल आ रहा था।
दौड़ता हुआ मुनि के पास पहुँचा और उन्हें अपनी भयजन्य व्यथा सुनाया। उस पर तरस खाते हुए सिद्धिप्राप्त मुनि उसे अपनी मंत्रशक्ति से चीता बना देते हैं और कहते हैं, ‘तुम्हें अब कोई भय नहीं होगा उस चीते से।’ समय बीतता है और तब एक दिन उस चीते को पास के जंगल में एक बाघ के दर्शन होते हैं।
भयभीत होकर फिर वह दौड़ते हुए मुनि के पास पहुँचा। उसके डर को देखकर वे इस बार उसे बाघ बना देते हैं। कुछ दिन तक सब ठीक चलता है, किंतु फिर एक दिन बाघ बन चुके उस कुत्ते का सामना होता है बलशाली सिंह से, जो उससे डरने के बजाय उसी पर हमला कर देता है।
वह भागता हुआ मुनि की शरण में आता है और पूरा वाकया सुनाता है। मुनि उसे आश्वस्त करते हुए कहते हैं, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हें बलिष्ठ सिंह बना देता हूँ। तुम्हारे सभी भय अब समाप्त हो जाएंगे।’ और वह एक ताकतवर सिंह बन जाता है। इसके बाद वह सिंह निर्भय होकर जंगल में घूमता है, जानवरों का शिकार करके पेट भरता है और फिर आश्रम पर लौट आता है। स्वयं मुनि को उससे कोई भय नहीं रहता है समय के साथ सिंह बन चुके उस कुत्ते के मन में कुविचार आने शुरू हो जाते हैं।
वह सोचने लगता है, ‘जब यह तपस्वी अपने मंत्रबल से मुझे शेर बना सकता है तो कभी किसी और पर भी ऐसी ही अनुकंपा कर सकता है। तब तो मेरा वर्चस्व ही समाप्त हो जाएगा। उस संभावना को टालने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि इस तपस्वी को ही मार डाला जाए।’ वह यह सब सोच ही रहा था कि अपनी सिद्धि के बल पर मुनिवर को उसके नापाक इरादों का पता चल गया। वे खतरा भांप जाते हैं और उंसे ‘तुम विश्वासयोग्य नहीं हो, अतः जाओ अपने पुराने शुनक (कुत्ता) योनि में’ कहते हुए उसे पुनः कुत्ता बना देते हैं।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
