बहुत समय पहले की बात हैए जंगल में एक आश्रम में साधु रहते थे। एक दिन वे पेड़ के नीचे ध्यान लगा कर बैठे थे कि चूहे का एक बच्चा उनकी गोद में आ गिरा।
उन्होंने आँखें खोल कर चूहे के बच्चे को देखा, जो शायद किसी कौए की चोंच से छूट कर उनकी गोद में आ गिरा था।
दयालु साधु ने चूहे को अपने आश्रम में शरण दे दी। वे उसकी देखभाल करते व अपने बच्चे की तरह पालते। चूहे का बच्चा खुशी-खुशी रहने लगा।
एक दिन आश्रम में एक बिल्ली आ पहुँची। वह चूहे को देखते ही उस पर झपटी। चूहा भाग कर साधु की गोद में जा गिरा। उसे बिल्ली से डरता देख साधु बोले- “तुम बिल्ली से डर रहे हो, चलो तुम बिल्ली बन जाओ।” साधु के आशीर्वाद से चूहा बिल्ली बन गया।
अब वह बिल्ली आश्रम में बेधड़क घूमने लगी लेकिन एक दिन उसने कुत्ता देख लिया। कुत्ते को देखते ही वह फिर साधु के पास जा छिपी। साधु बोले- “अब तुम कुत्तों से डरती हो। चलो कुत्ता बन जाओ।” साधु के आशीर्वाद से बिल्ली कुत्ते में बदल गई।
चूहा कुत्ता बन कर बहुत खुश था, पर उसे अकेले बाहर जाने में डर लगता था, क्योंकि जंगल में बहुत से चीते घूमते रहते थे। साधु ने सोचा कि उसे चीता बना देना चाहिए, ताकि वह जंगल में निडर घूम सके। उन्होंने अपनी मंत्र-शक्ति व आशीर्वाद से चूहे को चीते में बदल दिया।

साधु अब भी उसे नन्हे चूहे की तरह ही समझते थे। उसे उतना ही प्यार और देख-रेख देते। लोग चीते को देख कर कहते- “इसे देखो, साधु के वरदान से यह चूहा चीता बना है।”
चीते को ऐसी बातें सुनना पसंद नहीं था। उसने सोचा कि जब तक साधु जीवित रहेंगे, लोग उसे देख कर ऐसी ही बातें करते रहेंगे, इसलिए उसने साधु से पीछा छुड़ाने की योजना बना ली।
एक दिन साधु ध्यान में बैठे थे। चीता उन्हें मारने की नीयत से वहाँ पहुँचा। साधु उसकी नीयत भाँप गए। इससे पहले कि वह उन पर हमला करता, वे बोले- “कृतघ्न जीव! तू फिर से चूहा ही बन जा।” जल्दी ही ताकतवर चीता, छोटे से चूहे में बदल गया।
शिक्षाः- तुम्हें अपने शुभ-चिंतकों के प्रति विनम्र व कृतज्ञ होना चाहिए।
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