भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
टारना पर्वत में एक पुराना मकान था। उसमें दो छोटे-छोटे सुंदर चूहे रहते थे। एक का नाम निशु था और दूसरे का नाम टिशु था। एक दिन दोनों चूहेदानी में जा फंसे। निशु को भूख नहीं थी, फिर भी टिशु के कहने पर वह भी चूहेदानी में चला गया।
रात का समय था। निशु ने कांपते हुए कहा, “सुबह तक अगर हम चूहेदानी में ही फंसे रहे तो मकान मालकिन हमें सगोडी खड्ड में फेंक आएगी, जहां कुत्तों का झुंड बैठा रहता है। कौन जाने, मकान मालकिन सुबह हमें यहीं मार डाले!”
टिशु बोला, “ज्यादा खा-खाकर हम दोनों मोटे हो गए हैं। वरना, पहले की तरह आराम से इस चूहेदानी की सींखचों में से बाहर निकल सकते थे।”
निशु ने कहा, “तेरी तो बुद्धि भी मोटी हो गई है। वरना, मेरा कहना मान लेता और रोटी के लालच में अपने साथ मुझे भी इस चूहेदानी में न फंसाता।”
दोनों बाहर निकलने का उपाय सोचने लगे।
“क्यों न जोर-जोर से चीखें? दूसरे चूहे हमें बचाने को दौड़े चले आएंगे।” टिशु बोला।
“क्या इस घर के लोग बहरे हैं? पहले तो वही आएंगे और हमारा टेंटुआ दबा देंगे। बिल्ली भी आ सकती है।”
निशु की इस बात पर टिशु ने बची हुई रोटी को देखा और बोला, “पहले ठीक से पेट भर लें, शायद कुछ और अक्ल आ जाए।”
दोनों रोटी कुतरने लगे।
“अब थोड़ा सो भी लें! कौन जाने सपने में गणेश देवता आकर कोई तरकीब ही बता दें।” टिशु बोला।
निशु को उसकी बात पर गुस्सा आ गया, “ऐसे में किसी को न नींद आ सकती है, न सपने। तुझे सोना है तो सो जा। मैं लोरी सुना देता हूं।”
टिशु ठहाका लगा कर बोला, “मैं तो तुम्हारा मनोरंजन कर रहा हूं। मुसीबत में चूहों को भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। फिर तुम भी तो मुझसे खतरनाक मजाक करते रहते हो। अचानक ‘बिल्ली आई’ कहकर डराते रहते हो।”
निशु ने निराश होकर कहा, “कल पता नहीं हम इस दुनिया में होंगे या नहीं?”
टिशु ने फिर मजाक बनाया, “तुझे कौन-सा कल चुनाव लड़ना है या दिल्ली जाना है? कल की कल देखेंगे। कल की चिंता नेता करते हैं, ज्ञानी नहीं।”
“तुम सचमुच ज्ञानी हो! जरा भी नहीं डरते।” निशु ने व्यंग्य किया।
“हमारे पास खोने के लिए है ही क्या? चूहेदानी भी मकान मालकिन की है और हमारा बिल भी। खैर, डरना भूल जाओ और चूहेदानी को ध्यान से देखो।”
निशु ने चूहेदानी को देखकर कहा, “अपनी मौत को ध्यान से देखने से डर खत्म हो जाता है क्या?”
“हां… तुमने अभी तक चूहेदानी की छत की तरफ देखा ही नहीं
जैसे ही निशु ने सिर उठाकर देखा, वह खुशी से उछल पड़ा। ऊपर एक बड़ा छेद था, जिसमें से वे आराम से बाहर निकल सकते थे।
तभी अचानक मुटल्ली बिल्ली उनके सामने आकर खड़ी हो गई।
दोनों चकरा गए।
टिशु ने बिल्ली से कहा, “मौसी, आपकी सेहत तो बहुत अच्छी है। हम बच्चों को खाकर आपकी सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर आपको भूख लगी है तो रसोई में तशरीफ ले जाइए। वहां बहुत सारा दूध पड़ा है। हमें खाने के लिए तो आपको सुबह सगोडी खड्ड जाना होगा, जहां आपके दुश्मन कुत्ते बैठे रहते हैं।”
मुटल्ली बोली, “वहां न तुम पहुंचोगे, न मैं। पहले मैं तुम्हें चूहेदानी समेत अपने घर में रख आती हूं, फिर दूध पीने आऊंगी।”
तभी घर का कुत्ता जोर से भौंका। मुटल्ली भाग गई। उसके जाते ही निशु और टिशु चूहेदानी में से निकल भागे।
अपने बिल में पहुंचते ही निशु बोला, “टिशु, इस घर के लोग कितने मूर्ख हैं! भला छेद वाली चूहेदानी में रोटी रखकर चूहे पकड़े जा सकते हैं?”
टिशु जोर से हंसा और बोला, “तुम जैसे महाज्ञानी को तो वे पकड़ ही लेंगे जो भीतर पहुंचते ही खुद को फंसा हुआ मान लेते हैं। अरे, संसार में फंस भी जाएं तो भी मुक्त रहा जा सकता है! कोई न कोई रास्ता हर मुसीबत में होता ही है बचने का!”
“हां, जब चूहे बच जाते हैं तो ऐसे ही तर्क देते हैं।”
टिशु अब और भी जोर से हंसा और उसने बताया- “तुम मुझे ‘बिल्ली आई’ कहकर अचानक डराते रहते थे। इसलिए मैंने तुम्हें सबक सिखाया। मैंने ही पुरानी चूहेदानी में रोटी रखी थी और मैंने ही तुम्हें बचा भी लिया।”
निशु को गुस्सा तो बहुत आया, मगर क्या कर लेता?
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
