एक बार महाराणा रणजीतसिंह के दरबार में एक महात्मा आया। उन्होंने उसका आदर-सत्कार किया और वे उसे अपने कोषागार में ले गये। जब उन्होंने उसे हीरे, पन्ने। मोती, नीलम आदि बहुमूल्य रत्नों का संग्रह दिखाया, तो महात्मा ने पूछा, “इन पत्थरों से आपको कितनी आय प्राप्त होती है?”
“इनसे आय कैसी?”- रणजीतसिंह ने जवाब दिया, “बल्कि इनकी रक्षा के लिए मुझे काफी धन व्यय करना पड़ता है।”
“तब ये कीमती कहाँ रहे?” महात्मा बोला, “मैंने तो इनसे भी कीमती पत्थर देखा है।” “अच्छा!”- राजा को आश्चर्य हुआ, वे बोले “क्या आप मुझे वह कीमती पत्थर दिखाने ले चलेंगे?” “अवश्य, अभी चलो”- महात्मा बोला और वह उन्हें पास के एक ग्राम में ले गए। सामने ही एक कुटिया थी। उन्होंने जब कुटिया में प्रवेश किया तो अन्दर एक बुढ़िया पत्थर की चक्की से गेहूँ पीसती दिखायी दी। महात्मा बोला, “महाराज, यही वह कीमती पत्थर है। आपके सारे पत्थर ज्यों के त्यों पड़े हैं, मगर यह पत्थर इस बुढ़िया की जीविका का आधार है। इसी के जरिए वह अपना पेट भरती है। इस कारण निस्संदेह यह उनसे कीमती है।”
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
