सब्जीपुर का गौरवमय इतिहास जो याद करेगा, वह भला करेला रानी को कैसे भूल सकता है! इसलिए कि करेला रानी कड़वी तो हैं, पर इस कड़वेपन में भी कुछ ऐसी मिठास छिपाए हुए हैं कि सब्जीपुर में हर कोई उन्हें चाहता है।
यहाँ तक कि सब्जीपुर के बाहर की दुनिया में भी उन्हें चाहने और पसंद करने वालों की कोई कमी नहीं है। इसलिए कि वे हर किसी की मदद के लिए हरदम तैयार रहती हैं। रोगी भी उन्हें चाहता है, चिकित्सक भी। कोई स्वस्थ नौजवान जोश में आकर उनकी प्रशंसा के गीत गाता है तो अस्सी बरस का बूढ़ा भी। और गृहिणियाँ तो अकसर उनसे मिलकर कहती हैं, “करेला रानी, आज आपसे मिल लिए तो हमारी बहुत दिनों की ऊब और बोरियत खत्म हो गई। आपमें कुछ ऐसा है कि आपका नाम सुनते ही मन में चुस्ती-फुर्ती आती है और जरा खून का दौरा तेज हो जाता है।”
“क्यों नहीं होगा…क्यों नहीं होगा?” कहकर मंद-मंद हँसती हैं करेला रानी और याद करने लगती हैं आजादी की लड़ाई के दिनों को, जब वे सफेद खद्दर की धोती पहने मंचों से अंग्रेजी राज के खिलाफ जोरदार भाषण देती थीं और सुनने वालों के दिलों में जैसे जोश का तूफान मचल उठता था।
करेला रानी! यानी एक धधकती हुई आग। उफ! कैसी लपट, कैसा जोश था उनमें और आवाज कैसी करारी—तौबा, तौबा! खासकर सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की तो सब्जीपुर में सबको याद है। उस दिन करेला रानी ने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिससे अंग्रेजी सत्ता थर्रा गई थी। दूर-दूर के गाँवों के लोग जुटे थे। लाखों की सभा थी और लोगों का जोश ठाठें मार रहा था।
करेला रानी मंच पर किसी रानी-महारानी की तरह विराजमान थीं और लोग उनकी एक आवाज पर आग में कूदने को तैयार बैठे थे। यह प्रभाव लगातार संघर्षों की आँच में तप-तपकर और लड़-लड़कर उन्होंने हासिल किया था।
वैसे तो एक बिल्कुल साधारण परिवार में जनमी थीं वह। पर शुरू से चेहरे पर तेज था, वाणी में ओज। तीखे नाक-नक्श, नुकीली ठोड़ी, रोबदार चेहरा और एकदम कसा हुआ चुस्त शरीर! लिहाजा इतनी फुर्ती थी उनमें कि भाषण देने के लिए दौड़कर मंच पर चढ़तीं। और भाषण देने के बाद जब मंच से उतरकर तेज-तेज कदमों से चलने लगतीं, तो अपने आप उनके पीछे चलने वालों का एक बड़ा जुलूस बन जाता और आसमान ‘करेला रानी जिंदाबाद!’ के नारों से गूँज उठता।
उस दिन तो और भी गजब नजारा था। करेला रानी का भाषण इतना जोशीला था कि बार-बार लोग भाषण के बीच में उनका जय-जयकार कर उठते। ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाते। लोगों ने करेला रानी के भाषण तो बचपन से ही सुने थे, पर आज तो उनके भाषण में ऐसा तीखापन, तुर्शी और गुस्सा था कि जो भी सुनता, उबलने लगता।
करेला रानी ने अपनी भुजाएँ उठाकर कहा, “गाँव सब्जीपुर में आए मेरे भाइयो और बहनो, आज आप शपथ लेकर जाएँ कि अंग्रेजी दासता की बेड़ियों से हम भारत माता को आजाद करेंगे। मुट्ठी भर अंग्रेजों ने हमें बुरी तरह नाच नचाया है। इनकी इतनी हिम्मत कि हमारे बेकसूर नौजवानों पर लाठियाँ और गोलियाँ चलवाएँ। अगर हमारे देश के सारे नौजवान एक साथ खड़े हों तो अंग्रेजों की औकात ही क्या है! हम मिलकर उन्हें किसी अदने मच्छर की तरह मसल देंगे।”
उस दिन करेला रानी के भाषण के बाद कोई पाँच हजार लोगों ने सब्जीपुर के विशाल सभा मैदान हरियल पार्क में कसम खाई थी कि अब हम गुलामी नहीं सहेंगे। जब तक अंग्रेजों को मार नहीं भगाएँगे, हम चैन नहीं लेंगे।
थोड़ी ही देर बाद अंग्रेजी सेना ने चारों ओर से सब्जीपुर को घेर लिया। हवा में अंधाधुंध फायरिंग हो रही थी और अंग्रेज सेना लगातार पास आती जा रही थी। करेला रानी की गिरफ्तारी हुई तो हजारों लोग जो उनके साथ थे, उन्होंने जोश में आकर नारेबाजी की। चिल्ला-चिल्लाकर कहा, “पहले हमें गिरफ्तार करो, फिर करेला रानी को हाथ लगाने की हिम्मत करना।”
दूर-दूर तक हवा में यह गाना गूँज रहा था, “लेके रहेंगे, लेके रहेंगे, आजादी हम लेके रहेंगे!”
फिर करेला रानी ने ही लोगों से कहा, “अब आप लोग जाएँ। अंग्रेज मुझे गिरफ्तार कर सकते हैं, पर मेरी आत्मा को नहीं कुचल सकते। मैं जेल में रहूँगी और सत्याग्रह करती रहूँगी। आप लोग बाहर सत्याग्रह का कार्यक्रम चलाएँ।”
और करेला रानी ने महात्मा गाँधी के चरखा-मंत्र को अपना लिया। रोजाना चरखा चलातीं और जेल में अपना सत्याग्रह जारी रखतीं।
अंग्रेज सरकार परेशान थी। इस सीधे-सादे धुरगँवार समझे जाने वाले सब्जीपुर को क्या हुआ! वहाँ जितनी भी गिरफ्तारियाँ हो रही थीं, उतने ही नौजवान पंक्तियों में आगे आते जा रहे थे, “हमें गिरफ्तार करो, हमें गिरफ्तार करो! हम विद्रोही हैं, हम भी आजादी चाहते हैं। हमें जेल ले चलो।”
यहाँ तक कि नौजवानों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी आ गए और वे भी बुलंद आवाज में नारे लगा रहे थे, “हम भारत के बच्चे हैं, लेकिन दिल के पक्के हैं। हम आजादी लेके रहेंगे।”
उन बच्चों में से एक ने तो सब्जीपुर के पुराने किले पर चढ़कर तिरंगा झंडा भी लहरा दिया था। दूर-दूर तक बलिदानियों का जुलूस नजर आता था। सबके दिलों में करेला रानी के शब्द गूँज रहे थे, “हम आजादी लेने के लिए बढ़े हैं, अब रुकेंगे नहीं, झुकेंगे नहीं!”
अंग्रेज सैनिकों ने गोलियाँ चलाईं, पर उससे पहले ही तिरंगा झंडा लहराया जा चुका था और लोग जोर-जोर से तालियाँ बजाते हुए कह रहे थे, “अंग्रेजो, जाओ, अब हम आजाद हैं!”
उधर जेल में करेला रानी का अनशन शुरू हो गया। उनका कहना था, “हमारे बेकसूर नौजवानों पर गोलियाँ मत चलाओ। यह ठीक है कि वे आजादी के दीवाने हैं, पर आजादी माँगना कोई गुनाह नहीं है।”
करेला रानी के अनशन को कई दिन गुजर चुके थे और उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। मगर उनसे ज्यादा अंग्रेज सत्ता की। अंग्रेज सोच रहे थे करेला रानी अब सब्जीपुर की ही नहीं, पूरे देश की नेता हो गई हैं। उन्हें कुछ हुआ तो आग लग जाएगी!
कुछ समय बाद करेला रानी जेल से छूटकर आईं, तो हजारों लोगों ने उन्हें बग्घी पर बैठाकर जुलूस निकाला। एक बड़ी सजी-धजी बग्घी पर उन्हें बैठाया गया, जिसे दो सफेद अरबी घोड़े खींच रहे थे। और इतना बड़ा जुलूस निकाला गया कि मीलों तक बस लोगों के सिर ही सिर नजर आते।
बाद में करेला रानी को सब्जी बाजार में बनाए गए एक ऊँचे-से मंच पर ले जाया गया। सफेद साड़ी पहने कुछ-कुछ दुबला गईं करेला रानी के गले में गेंदे के फूलों की माला थी। उनकी आवाज धीमी थी, लेकिन जोश अपार था। उन्होंने कहा, “मुझे साफ-साफ दिख रहा है, अब अंग्रेज इस देश में नहीं टिक पाएँगे। उन्होंने खुद अपने हाथों अपनी कब्र खोद ली है। सब्जीपुर के नौजवानों ने दिखा दिया कि अपने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले रणबाँकुरे कैसे होते हैं। मुझे ऐसे ही एक नहीं, लाखों नौजवान चाहिए, जो एक साथ गुलामी की बेड़ियों पर चोट करें। और बस, हम आजाद हो जाएँगे!”
करेला रानी के भाषण में इतनी आग थी कि फिर हजारों की संख्या में अंग्रेज सैनिक उन्हें गिरफ्तार करने आ गए, पर लोगों का हुजूम इतना बड़ा था कि उनका कुछ बस नहीं चल रहा था। लाखों लोग जो वहाँ इकट्ठे थे, चिल्ला रहे थे, “हम पर गोलियाँ चलाओ, हमें मार डालो, पर हम करेला रानी को गिरफ्तार नहीं होने देंगे।” आखिर अंग्रेज सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा।
यह सब्जीपुर की बहुत बड़ी जीत थी और अंग्रेज सत्ता की हार। अगले दिन सारे अखबारों में करेला रानी की तसवीरें छपी थीं! और इधर एक कुटिया में अपने शिष्यों के साथ बैठी वे आगे की लड़ाई की योजना बनाने में जुटी थीं।
एकदम दुबली-पतली, साँवले शरीर की करेला रानी, जो देखने में एकदम साधारण लगती थीं, पर जब से गाँधी बाबा से उन्होंने मंत्र लिया, वे आग की लपट हो गई थीं और गाँधी जी उन्हें जगह-जगह जनता में अलख जगाने भेजा था। वे हर सभा में कहतीं, “मैं तो सब्जीपुर की मामूली करेला रानी हूँ। पर गाँधी बाबा ने मुझे देश का नेता बना दिया।”
और कुछ अर्से बाद ही आजादी की सुनहरी सुबह भी आई। 15 अगस्त को करेला रानी ने गाँव सब्जीपुर में आजादी का तिरंगा झंडा लहराया। उनका वह भाषण याद करके आज भी लोग रोमांचित हो उठते हैं।
यह खुशी की बात है कि करेला रानी आज चाहे बूढ़ी हो गईं हों, मगर उनके कदम थमे नहीं थे। देश के नए निर्माण में वे जुटी हैं और सब्जीपुर के नौजवान उनके मुँह से निकले एक-एक शब्द पर जान देने को तैयार रहते हैं।
मगर हाँ, जिन लौकीदेवी से करेला रानी ने आजादी का मंत्र लिया, उन्हें सामने देखते ही वे उनके पैरों की ओर झुक जाती हैं। साथ ही यह कहना भी नहीं भूलतीं कि “दादी अम्माँ, पहलेपहल तुम्हीं ने मुझमें धधकते लावे को पहचाना था। तुम मेरे सिर पर हाथ न रखतीं तो आज करेला रानी कहीं न होती, कहीं नहीं!”
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
