Hindi Story: “अरे आज क्लास में स्ट्रेन्थ कम क्यों है,मारिया !” सुप्रिया ने झुँझलाते हुए सवाल किया?
जाओ सबको इन्फॉर्मेशन दो कि मैं क्लास में आ चुकी हूँ , सब आ जायें जल्दी से इधर …
“जी मैडम ” मारिया ने मेज़ की धूल झाड़ते हुए उत्तर दिया ,और डस्टर लगने से पेपरवेट जैसे ही नीचे गिरा,उसकी जान मानो उसके हलक में ही अटक गई।
अपने ओहदे का ख़्याल न करते हुए उसने फ़र्श से स्वयँ ही उठाकर हाथों में कोमलता से सहेजा जैसे वह निर्जीव पेपरवेट न होकर नवजात शिशु हो।
फिर वापस मेज़ पर सजा दिया,
जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गई हो ,पल भर की कोमलता विलुप्त होकर ,पुनः भिंचे होंठ और सख़्त मुद्रा में बदल गयी।
मारिया भी उसका ख़राब मिज़ाज भाँप कर तेजी से बाहर की ओर निकल गयी।
हुँह …क्लास क्या ख़ाक लूँगी इस तरह ,जब एच. ओ.डी. की क्लास में ये बच्चे इतने अनुशासन हीन हो सकते हैं तो दूसरे टीचर्स की क्लास में क्या ही करते होँगे…
कहकर वो खुद से बड़बड़ाते हुए , अपनी चेयर पर बैठ गयी ,कलफ़ लगी ताँत की सूती नारँगी रँग की साड़ी में उसका उसका गेहुआँ व्यक्तित्व अलग ही खिल रहा था।
माथे पर बड़ी सी सिन्दूरी बिन्दी लगाये ,कर्णचुम्बी बड़े-बड़े खिले पनीले से नयनोँ में काजल की रेखा ऐसे लग रही थी मानों सागर की सीमा-रेखा तय कर दी हो किसी ने …
फाइन आर्ट की प्रवक्ता थी ,वह स्वयं भी रूपरँग मेंअपनी तराशी हुई मूर्तियों का ही कोई हिस्सा सी लगती….
विद्यार्थी उसे पीठ पीछे कड़क कॉटन कैंडी कहा करते थे।
उसे बड़ी कुढ़न होती कि आख़िर मेरी ही किस्मत में प्यार क्यों नही था ,सोचती थी कि काश ये बच्चे उस आखिर में दुःख देने वाली भावना से दूर क्यों नही रहते?
आज भी जलरँगों की पेन्टिंग बनाते समय वो अधिकतर शेड्स के लिये कपास का इस्तेमाल किया करती थी।
उसने अपनी नज़रें टेबल पर रखे अपने रेज़िन आर्ट से बने हुए फेवरेट कपास के फूल वाले पेपरवेट पर टिका दीं
उसकी यादों के गलियारों में एकबार फिर से सौरभ घूम गया …
जब गाँव से लौटने के बाद उसने उस दिन उसे वो कपास का फूल दिये थे,वो बेसाख़्ता उसके इस अनाड़ी से प्रेम पर हँस पड़ी थी।
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अरे बुद्धूराम कुछ पता है तुम्हें …उपहार में गुलाब देते हैं,ये कपास का फूल नहीं उसने चलते चलते कहा,
बस यूँ ही मनमौजी हूँ, मुझे नियमों से बन्धना रास नहीँ आता कभी…फिर किसने कहा कि मुझे प्रेम है,भई ये जकड़न कमज़ोर करती है रिश्ता…
हूँ ,छोड़ देना चाहिये कुछ बातों को आज़ाद और बेपरवाह
अच्छा अगर ये प्रेम नहीं है तो फिर तुम बात-बात पर क्यों ख़ोजते हो ,मुझे उसने पूछा?
तुमसे कहकर मन हल्का महसूस होता है,ऐसा लगता है कि मन का भारीपन कुछ कम हुआ बात करके तुमसे ?
किसलिये?
“तुम ध्यान से सुनती जो हो”
और वो मुस्कुरा दी,तो तुम मुझे अपनी निराशा की नाव मानते हो
पता नहीं?
कुछ तो है हमारे बीच ,जो मुझे तुम्हारे पास खींच लाता है
हाँ शायद यही वो अदृश्य बन्धन है वो बारीक़ सा तन्तु जो तुम देख नहीं पाते ,और तुम्हें पास ले आता है।
हाँ… एक बेचैनी सी होती है,जबतक तुमसे बात न कर लूँ
हाँ कुछ तो है जो खींच लाता है ,तुम्हारे पास, जब भी मन भरा होता है,उसने कन्धे पर सिर रखकर कहा
दुपट्टे के छोर पर उंगलियाँ लपेटते खोलते हुए उसने कहा..
जानते हो ये गुलाबी सूती दुपट्टा भी कपास से बना है, यही सोखता है दर्द और मुस्कान के आँसू, शायद हमारे बीच कपास के फूल सा ही नाता है ,शुभ्र, सरल और पवित्र
इस बार उसने कपास का वो फूल अपनी आँखों पर रखा, ढुलके हुए आँसू उसमेँ जज़्ब हो चुके थे।
हाँ तुम मेरे लिये कपास हो मेरी उदासियों की चादर हो ,सोख लेती हो मेरी सारी पीड़ा…
उसने न जाने कब कपास का वो फूल माथे से लगाया और चूमकर किताब में रख लिया…
हूँ … तुम मेरी कपास हो ,सबसे खूबसूरत, गुलाब से बेहतर है कपास हो जाना कहकर वो मुस्कुरा दिया…
उन दोनों को प्यार पहली ही नज़र में हुआ था एक दूसरे से , दोनोँ ही फाइन आर्ट्स के स्टूडेंट्स थे।
क्लास में सबसे जीवन्त आँखे बनाता था सौरभ जो न जाने कब हर स्केच हर पेन्टिंग में सुप्रिया की आँखे बन बैठतीं…
सुप्रिया भी उसकी शालीनता और निश्छलता पर मर मिटी थी,उसका पुरुषोचित स्वभाव और उसके प्रति सुरक्षा की भावना,क्लास में या बाहर उसके लिये सबसे लड़ जाना उसे कहीँ न कहीँ सुकून भी देता था।
प्रेम की सभी मुहर व्यवहार में छपी थीं पर प्रकट में उसने कभी नहीं स्वीकार किया,।
शायद सुप्रिया का ऊँचा जीवन स्तर सौरभ को उसकी भावनाएँ व्यक्त करने से रोक लेता था।
दीक्षान्त समारोह के बाद सुप्रिया ने उससे कहा ,”मैं तुम्हें अपने पापा से मिलवाना चाहती हूँ,आज ही बात करलो वरना जिससे वो चाहेँगे उसे मेरा हाथ सौंप देँगे”
सौरभ की आँख कुछ नम हुई फिर सुप्रिया उसे खोजती रही,और हॉस्टल की तरफ निकल गयी मगर वो वहाँ से जा चुका था,रूममेट ने उसके लिये छोड़ा गया एक पैकेट ज़रूर दिया।
घर आकर उसने खोला तो दंग रह गयी,
प्रिय सुप्रिया
आज स्वीकार करता हूँ कि मुझे तुमसे प्रेम है ,पर किसी ने कहा है कि किसी के ज़ख्म की पट्टी तब मत बनना जब तुम्हारी पीठ में पहले से ही छुरा घुसा हुआ हो …
तुम्हारे पापा तुम्हें जिसे सौंपना चाहते हैं ,उसमें मेरी भी ख़ुशी हैं क्योंकि प्रेम पेट नहीं भर सकता,मेरी पसन्द शुरू से कपास है क्योंकि यह ज़ख्म पर लगे मरहम को भरने में सहायक होता है।
मैं तुम्हें कष्ट में देख सकता क्योंकि कष्ट मेरी नियति है,तुम्हें उस राह का मुसाफ़िर नहीं बना सकता।
सौरभ
सुप्रिया के सामने सारे रहस्य उस शाम को उसके पिता ने उजागर कर दिये,उसने चहकते होठों ने उस दिन के बाद ख़ामोशी धारण कर ली…और उसने ख़ुद को काम में डुबो दिया
तब तक मारिया की आवाज़ से उसकी तन्द्रा भँग हुई,
“मैम कॉलेज ग्राउंड में एक आदमी बैठा है उसकी आर्ट कमाल है जादू है उसके हाथों में भीड़ वहीं लगी है”
रँगीन चॉक से फ़र्श पर बने हुए स्केच ऐसे लग रहे हैं जैसे असली हों आँखे तो इतनी असली जैसे दिल में उतर जायें…
इस बार सुप्रिया को सौरभ की याद शिद्दत से आई,उसका अपना परिचय देने तरीका ऐसा ही तो था और वो “अच्छा कौन है ?”
कहकर मारिया के साथ उधर चल पड़ी….
उस आदमी पर नज़र पड़ी तो ऐसा लगा कि दुनिया रुक गयी हो एक पल को वही चेहरा बस आँखों पर चश्मा था और केशों में थोड़ी चाँदी जुड़ गई थी…
सौरभ …उसके मुँह से हर्ष-मिश्रित स्वर निकला…
सौरभ ने भी अपने पुराने अन्दाज़ में उससे अभिवादन किया और कहा
“ये डॉक्टर सौरभ आपके कॉलेज में अपनी नौकरी के पहले दिन देर से आने पर आपकी माफ़ी चाहता है….”
ऑफिस में चलें,सुप्रिया ने कहा ,
श्योर , सौरभ ने उत्तर दिया,
औपचारिक बातों के बाद सुप्रिया ने उससे शाम को कॉलेज कैम्पस में ही स्थित घर में खाने पर आने का निमंत्रण दिया ,जिसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
हल्के गुलाबी लखनवी सूट के साथ पिंक सूती दुप्पटा उसकी साँवली रँगत को अपूर्व आभा प्रदान कर रहा था।
हरीतिमा से भरी गैलरी उसके कलाकार मन की पूरी चुगली कर रही थी।
अरसे बाद सब कुछ सौरभ और उसकी मिली जुली पसन्द का बना था रसोई में
चाय पीते पीते सुप्रिया ने सौरभ से उसके परिवार की जानकारी चाही ,जिसे सौरभ हँसकर टाल गया।
फिर उसने सुप्रिया की ज़िंदगी के बारे में सवाल किया?
सब ठीक है बस चल रही है ज़िन्दगी…
क्योँ ?
उसने अचकचा कर सवाल किया ,तुम्हारी शादी कैसी चल रही है?
चलती तो तब जब हुई होती सौरभ… उस रात तुम चले गये ,ये सदमा मुझे बर्दाश्त न हुआ…
मैंने सम्भलने के लिये थोड़ा वक़्त माँगा ।
जो उन्होंने दिया भी ।
कुछ दिनों बाद पापा अचानक ही पैरालाइज्ड हो गये…उसके बाद उनकी पोस्ट उनका रुतबा और उसपर मंडराने वाले लोग भी धीरे-धीरे गायब हो गये,
मंगेतर पुनीत को मेरे जीवन में आई परेशानियों से कोई लेना देना न था ,पापा उसकी नज़र में धन बोझ अधिक थे।
एक शाम उसने मुझे बुलाया रेस्टोरेंट में ,वो शादी होते ही पापा को ओल्ड एज होम भेजने की सिफ़ारिश कर रहा था।
मैंने उस दिन तुम्हें और तुम्हारी बेवफ़ाई को शिद्दत से याद किया और उसकी अँगूठी वापस करके उस रिश्ते को मुक्त कर दिया।
तबसे इसी कॉलेज में नौकरी कर रही हूँ ,बस मन में सवाल था कि तुमनें ऐसा क्योँ किया मेरे साथ ?
उसका जवाब है ये लिफ़ाफ़ा ,सौरभ ने उनके रिश्ते की स्वीकृति के लिये उसके पिता का पत्र सामने रख दिया।
जिसमें उन्होंने पिछले बर्ताव की माफी माँगते हुए लिखा था ,मन का बोझ हल्का हो जायेगा जाने कब से तुम्हें खोज रहा हूँ हो सके तो मुझे माफ़ करके सुप्रिया को अपनी हमसफ़र बना लो तो चैन से मर सकूँगा..
सच्चाई दर्पण की तरह साफ़ थी गिले-शिक़वे आँसुओं में बह गये
” तुम लौट आये इस बार अपने कपास को गठबंधन से दिल पर बाँध लूँगा सदा के लिए ,तुमसे प्यार जो किया है “सौरभ ने कहा
कपास पर गुलाब का इत्र हवा में घुल रहा था
