jo hoga dekha jaayega , hitopadesh ki kahani
jo hoga dekha jaayega , hitopadesh ki kahani

Hitopadesh ki Kahani : एक बार पहले भी, बहुत पुरानी बात है कि इस सरोवर पर इसी प्रकार मछुआरे आए थे। उस समय यहां तीन बड़े-बड़े मत्स्य रहते थे। उनमें एक का नाम अनागत विधाता था, दूसरे का प्रत्युत्पन्नमति और तीसरे का यद्भविष्य । मछुआरे मन्त्रणा करके जब चले गये तो मत्स्य परस्पर विचार-विमर्श करने लगे। उस समय अनागत विधाता ने कहा, “मैं तो किसी अन्य सरोवर में चला जाता हूं।”

उसने किसी के उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की और अपने परिवार को लेकर वह यहां से चला गया।

प्रत्युत्पन्नमति कहने लगा, “भविष्य में क्या होगा इसका मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है । इसलिये जाना व्यर्थ है । समय आने पर जो उचित समझा जायेगा वह किया जायेगा । “कहा भी गया है कि आपत्ति उपस्थित होने पर जो उसका प्रतिकार कर लेता है, वह बुद्धिमान है । जिस प्रकार कि एक वणिकपत्नी ने अपने प्रेमी को बचा लिया था।”

यद्भविष्य ने पूछा, “यह कैसे ?”

प्रत्युत्पन्नमति बोला, “सुनाता हूं सुनो।”