एक बार एक राजा के मन में ख्याल आया कि वर्षों से वह किसी यंत्र की तरह जीवन व्यतीत करता आ रहा है, अब समय आ गया है कि उसे जीवन को जीने का तरीका जान लेना चाहिए। उसने अपने राजगुरु से
मंत्रणा की कि वह जीवन जीने का सही ढंग जानना चाहता है। राजगुरु ने उसे अगले दिन सुबह अपने साथ चलने के लिए कहा। नियत समय पर राजा गुरु के पास पहुँचा और गुरु उसे लेकर एक पनघट के पास आ गए। वहाँ उन्होंने राजा से कहा कि सामने कुछ पनिहारिनें पानी भरकर लौट रही हैं। उन्हें गौर से देखो और फिर तुम्हारे मन में जो ख्याल आता है, मुझे बताओ।
राजा ने गुरु से कहा कि गुरुदेव, मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ कि ये अपने सिर पर पानी से भरे घड़े रखकर बिना उन्हें पकड़े चली आ रही हैं और साथ ही बातें भी करती आ रही हैं। ऐसे में वे अपने सिर पर रखे घड़ों के गिर जाने की आशंका से जरा भी ग्रस्त नहीं नजर आ रहीं। इसका क्या रहस्य है। गुरु ने उत्तर दिया कि यही जीवन जीने का सही ढंग है। ये बातें करती हैं, लेकिन क्षण भर को भी अपना ध्यान अपने सिर पर रखे घड़ों से हटने नहीं देतीं। अर्थात् अपने सांसारिक कर्म करते जाएं और मोक्ष प्राप्ति के अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें।
सारः आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए सांसारिक कर्मों का परित्यागः आवश्यक नहीं है।
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