बच्चों को फोन से दूर रखना अब नामुमकिन सा हो गया है, लेकिन बच्चों को सही कॉन्टेंट दिखाने की जिम्मेदारी माता-पिता की बनती है। पैरेंटल लॉक लगाकर आप अपने बच्चे की सही तरीके से निगरानी कर सकते हैं।
टेक्नोलॉजी के इस दौर में बच्चे-बड़े, सब स्मार्टफोन के आदी हो चुके हैं। चार-पांच साल पहले मां-बाप जहां बच्चों को बहलाने के लिए उनके हाथों में स्मार्टफोन पकड़ा देते थे, अब वही आदत उनके जी का जंजाल बन गई है। अब बच्चों को कुछ नहीं चाहिए, अगर उन्हें कुछ चाहिए तो केवल मोबाइल या लैपटॉप। बच्चे अपने कमरे में बैठे-बैठे ही फोन पर चैट पर मां-बाप से बात कर लेते हैं।
उसके बाद नेटफ्लिक्स और अमेजन जैसी वेबसाइट ने आकर इस लत को और अधिक घातक कर दिया क्योंकि मां-बाप को मालूम ही नहीं है कि बच्चे ओटीटी प्लेटफॉर्म में क्या देख रहे हैं और सोशल मीडिया में किसके संपर्क में हैं। इस कारण ही बीच में ब्लू व्हेल जैसे ऑनलाइन गेम के कारण कई बच्चों की जान चली गई।
वहीं अब खबरें आ रही हैं कि ओटीटी प्लेटफॉर्म के उत्तेजक कार्यक्रम देखकर कई बच्चे गलत समूह के संपर्क में आ गए हैं या उनका व्यवहार काफी आक्रामक और उत्तेजित हो गया है। लॉकडाउन में तो ऐसी कई खबरें आईं की बच्चों को मोबाइल देने में ही अभिभावक हिचकिचाने लगे।
इन सबका हल निकालने के लिए कई एनजीओ इंडिया में सेक्स एजुकेशन या सेक्स टॉक शुरू करने की बात करते हैं। लेकिन सेक्स एजुकेशन या सेक्स पर बात कर लेने से बच्चों की सोशल मीडिया की लत छूट जाएगी? क्या समय आ गया है कि इंडिया में सेक्स एजुकेशन की पढ़ाई स्कूलों में करवाई जाए और घर पर मां-पिता खुलकर बच्चों से सेक्स के बारे में बात करें?
सेक्स एजुकेशन और सेक्स टॉक की जरूरत सेक्स एजुकेशन और सेक्स टॉक शुरू करने से ज्यादा जरूरी यह बात समझना है कि कैसे बच्चों को गलत प्रोग्राम देखने से बचाया जाए।
क्योंकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि सेक्स पर बातें करने से बच्चे ओटीटी प्लेटफॉर्म में गलत या सेक्सुअल चीजें देखनी बंद कर देंगे। या सेक्स एजुकेशन बच्चों को यह अच्छी तरह से समझा देगा कि यह सब चीजें उनके उम्र के लिए सही नहीं है और उन्हें ये सब चीजें अभी नहीं देखनी है। बल्कि इसके उल्टा हो सकता है। इसलिए इस पर तो अभी बात नहीं की जा सकती।
रही बात सोशल मीडिया की गंदगी से बच्चों को बचाने की तो यह सारी जिम्मेदारी अभिभावकों पर आ जाती है। क्योंकि उन्होंने ही (अधिकतर अभिभावकों ने) एकल परिवार में बच्चों को पूरी तरह से अकेला कर दिया और फिर उनके अकेलेपन को दूर करने के लिए मोबाइल या लैपटॉप पकड़ा दिया। तो ये समस्या भी अब अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखकर दूर करनी होगी।
इसके लिए पैरेंटल लॉक उनकी मदद कर सकता है। पैरेंटल लॉक पर विस्तार से बात करते हुए आगरा पुलिस के साइबर सेक्यूरिटी विशेषज्ञ रक्षित टंडन इसे अभिभावकों का सबसे बड़ा हथियार बताते हैं। तो इस लेख में हम रक्षित टंडन से जानते हैं कि क्या है पैरेंटल लॉक और ये कैसे बच्चों के लिए बहुत जरूरी हो गया है।
छलनी का काम करती है पैरेंट्ल लॉक पैरेंटल लॉक एक सेटिंग सिस्टम है जिसे सेट कर देने से बच्चों के सब्सक्रिप्शन में केवल बच्चों के चैनल और सामग्रियां नजर आते हैं। आप यह कह सकते हैं कि पैरेंट्ल लॉक छलनी का काम करता है। जिस तरह से छलनी से चाय छानते हैं उसी तरह से पैरेंटल लॉक ओटीटी कंटेंट के लिए फिल्टर का काम करता है। इस सेटिंग को लगा देने के बाद केवल वह सामग्रियां ही नजर आएंगी जो बच्चों के लिए अच्छे होते हैं।
25 फरवरी 2021 को सरकार लाई थी नियंत्रण कानून इस तरह के अलग से काम करने वाले सॉफ्टेवयर मोबाइल पर भी आ रहे हैं। आप बच्चों के मोबाइल पर इस सॉफ्टवेयर को इंस्टॉल कर बच्चों के मोबाइल यूजिंग चीजों पर लगाम लगा पाएंगे।
पैरेंट्ल लॉक हाल ही में आई हुई सुविधा है और यह सुविधा सरकार द्वारा ओटीटी पर नियंत्रण रखने के लिए कानून बनाने की बात शुरू करने के बाद से लाई गई है। सरकार 25 फरवरी 2021 को ओटीटी प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने के लिए कानून लेकर आई थी। इस पर कंटेंट से संबंधित नियम पेश किए गए थे।
साथ ही हर ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपने कंपनी के अंदर एक समूह या एक अधिकारी की नियुक्ति करने को कहा गया जो इन सामग्रियों पर नजर रखेगा। इसी कानून के बाद से सारे ओटीटी प्लेटफॉर्म पैरेंटल लॉक की सुविधा लेकर आए हैं।
फेसबुक में नहीं है यह सुविधा फिलहाल फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप में इस तरह की कोई सुविधा नहीं है। तो इस साइट पर नजर रखना अभिभावकों का काम है। वहीं यूट्यूब और गूगल भी पैरेंटल लॉक के साथ आ रहे हैं। यूट्यूब ने तो बच्चों के लिए अलग से ही यूट्यूब किड्स नाम से चैनल चलाया हुआ है।
कुछ गलती अभिभावकों की भी बच्चों के बिगड़ने की सारी जिम्मेदारी आप सोशल साइट्स और टेक्नोलॉजी पर नहीं डाल सकते हैं। इसके बारे में रक्षित टंडन सही बात करते हैं कि जिसतरह से 13 साल के बच्चे को आप गाड़ी चलाने नहीं दे देते उसी तरह से इंटरनेट की कोई सामग्री या मोबाइल ऐप आप बच्चे को देखने नहीं दे सकते। खासकर तो तब जब उसमें लिखा है कि यह सामग्री केवल 18 साल से अधिक बच्चों के लिए हैं।
गूगल फैमिली लिंक से रखें बच्चों पर नजर यह आप अपने बच्चों के मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर में डाल सकते हैं। यह पूरी तरह से मुफ्त में आता है। इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से आप 24 घंटेअपने बच्चों के डिवाइस पर नजर रख सकते हैं कि बच्चा अपने डिवाइस में क्या देख रहा है, क्या कर रहा है और किससे बातें कर रहा है।
लेकिन अभिभावक ध्यान रखें कि इसका इस्तेमाल वे बच्चों की जासूसी करने पर ना लगाएं। नहीं तो इसके परिणाम विपरीत हो सकते हैं। बाद बाकी पैरेंटल लॉक एक ऐसी सुविधा है जिससे आप अपने बच्चे को अच्छी चीजें देखने की ओर राह दिखा सकते हैं। ये एक अच्छी पहल है।
कर सकते हैं टाइमिंग के हिसाब से भी सेट आगे विस्तार से बताते हुए टंडन कहते हैं कि पैरेंटल लॉक को टाइमिंग के हिसाब से भी सेट किया जा सकता है। जैसे कि आपने सेट कर दिया है कि बच्चा 4 से 6 बजे तक टीवी देखता है तो उस समय केवल बच्चों के कार्यक्रम ही नजर आएंगे।
इसे आप डिवाइस में भी सेट कर सकते हैं। यह सुविधा हर ओटीटी प्लेटफॉर्म ने दी हुई है। जैसे कि आपने नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन लिया है। आप अपने कमरे के टीवी में अपने हिसाब से कार्यक्रम सेट कर सकते हैं और बच्चों के कमरे के टीवी को बच्चों के हिसाब से सेट कर सकते हैं।
क्या है पैरेंटल लॉक साइबर विशेषज्ञ रक्षित टंडन का कहना है कि आजकल इंटरनेट पर हर तरह की सामग्री पाई जाती है जो मासूम बच्चों के दिमाग पर असर डाल सकती है। अब बच्चों को तो मालूम नहीं है कि कौन सी चीजें उनके लिए अच्छी हैं और कौन सी चीजें खराब।
बोल्ड कंटेंट हैं, सेक्स से जुड़ी सामग्रियां हैं, सॉफ्ट पोर्न है, अपशब्दों की भरमार है, हर तरह की चीजें हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म तो केवल लिख देते हैं कि 18 से अधिक उम्र के लोगों के लिए। लेकिन इससे उस सामग्री का प्रभाव तो कम नहीं हो जाता या फिर बच्चा वह नहीं देखता।
कंपनियों का क्या है, कंपनियों को तो अपने व्यूअर्स की संख्या में बढ़ोतरी करनी है। इसलिए टेक्नोलॉजी ने पैरेंटल लॉक नाम की तकनीक बनाई गई है।