itane-utane-kitane dost
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

फ्रेंडशिप डे आने वाला था। तक्षशिला स्कूल के बच्चों में दोस्त बनाने को लेकर होड़ सी मची थी। बच्चे स्कूल की अन्य कक्षाओं में भी संपर्क करने में लगे थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई चुनाव होने वाला हो और सब अपने-अपने वोटर खोजने में लगे हों। वोटर को लुभाने का तरीका भी न्यारा था। बच्चे एक-दूसरे को टॉफी-चाकलेट भी बांट रहे थे। बस में अक्सर झगड़ने वाले बच्चे तो कितने प्यार से साथ बैठते-बतियाते। एक दूसरे का हाल-चाल पूछते।

बच्चे अपना टिफिन भी शेयर कर रहे थे। इस चक्कर में उस दिन मयंक को अरबी की सब्जी खानी पड़ गई। हुआ यूं कि उस दिन नये दोस्त लाफी को जब उसने सेंडविच खाने को दिया तो उसने भी बड़े प्यार से परांठा और अरबी की सब्जी उसकी ओर बढ़ा दी। बेचारा मयंक। पहले तो वह नहीं-नहीं करता रहा लेकिन जब लाफी ने तुनक कर कहा- क्यों, दोस्त नहीं मानते मुझे? तो मयंक ने झूठी हंसी हंसते हुए बड़ी मुश्किल से अरबी की सब्जी को गले से नीचे उतारा । वह मन ही मन झुंझला रहा था कि ये दोस्ती तो बहुत भारी पड़ी।

अब तो बच्चे एक-दूसरे को अपने-अपने घर भी बुला रहे थे। सबसे मजे की बात कि किसी को भी कभी अपने घर न बुलाने वाला अंशुल भी अब सबको अपने घर का पता बता रहा था। नहीं तो उसका तो हमेशा एक ही बहाना होता था कि नहीं, मेरे घर मत आना। मेरे घर की तरफ तो बहुत ताकतवर जाम लगता है। सब उसके ताकतवर जाम शब्द पर खूब हंसते थे।

आज इंटरवल में बच्चे अपने-अपने दोस्तों की लिस्ट खोले बैठे थे। माजिद के 82 दोस्त बन गए थे तो लाफी के 85, मयंक के 70, नेहा के 45 और यशी के अभी 30 दोस्त ही थे। मेहुल के 102 दोस्त हो चुके थे। सब चौंके-ऐसा कैसे? क्लीयर करो, क्लीयर।

अब समझ आया । मेहुल ने तो अपने दोस्तों में पापा-मम्मी, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, मौसा-मौसी और अन्य रिश्तेदारों के भी नाम लिख रखे थे। लाफी खिसियाया सा बोला- ‘फिर तो पड़ोस के अंकल-आंटियों के भी नाम लिख लो न। गिनती और बढ़ जाएगी।’

‘हां, क्यो नहीं? वह भी लिखूगा। सर कहते नहीं हैं कि दोस्ती तो किसी से भी हो सकती है। दोस्ती छोटा-बड़ा नहीं देखती। मेहुल की बात पर लाफी का उत्साह बढ़ा। वह चहक कर बोला-‘फिर तो मेरी गिनती और बढ़ेगी। सर यह भी तो कहते हैं कि पशु-पक्षी भी हमारे मित्र होते हैं।’

मयंक ने मेहुल के कथन में अपनी बात जोड़ी-‘हां, हां। …और पेड़-पौधे भी हमारे दोस्त हैं। मैंने तो छत पर गमलों में खूब पौधे लगाए हैं। मैं ही उनकी देखभाल करता हूं। मेरी उनसे पक्की दोस्ती है।’

सौरभ बोल उठा- ‘..और किताबें तो सच्ची दोस्त होती हैं जी। मैं तो उनके भी नाम अपनी लिस्ट में शामिल करूंगा।’

तभी इंटरवल खत्म हुआ और सभी ने अपनी अपनी लिस्ट बस्ते में रख ली।

लेकिन सच बात तो यही थी कि बाकी पीरियड में भी सबके दिमाग में अपनी लिस्ट ही छाई रही।

छुट्टी हुई। बस में फिर से दोस्तों का प्यार बरसने लगा। हां, यशी को जरूर यह सोचकर बहुत अजीब लग रहा था कि उसके तो बहुत ही कम दोस्त हैं।

यशी घर पहुंची तो गुमसुम थी। उसे नेहा की याद आई। नेहा उसकी बेस्ट फ्रेंड थी। वह उसके पड़ोस में ही रहती थी। हां, उसका स्कूल शाम की शिफ्ट का होता था। इसीलिए नेहा से उसकी मुलाकात कम ही हो पाती थी। अचानक मम्मी ने बताया कि आज सुबह नेहा फिसल गई। उसके पैर में चोट आई है।

अरे! …बस, यशी के मुंह से इतना ही निकला और वह नेहा के घर भाग खड़ी हुई। वहां पहुंची तो देखा, नेहा तो खिलखिला रही थी। उसके साथ एक छोटा सा बच्चा था।

‘अरे! तेरे तो चोट लगी थी?’

‘हां, लगी है न । यह देख पैर में।’ बिस्तर पर लेटी नेहा ने पैर पर पड़ी चादर को हटा दिया। पैर पर पट्टी बंधी थी। फिर नेहा ने उस बच्चे से परिचय कराया- ‘ये है पुल्लू । मेरा नया दोस्त।’

‘इतना छोटा दोस्त ।’ यशी की आंखे बड़ी हो चलीं।

छोटा सा बच्चा पहियों वाली चेयर पर बैठा यशी को घूर रहा था। यशी ने हलके से उसके गाल पर चिकोटी काटी– ‘वाह! कित्ता प्यारा बेबी है। वेरी क्यूट ।’ फिर बोली-‘योर, गुड नेम प्लीज । मेरे दोस्त बनोगे?’

नेहा हँस पड़ी-‘हाँ, तेरी गिटपिट जरूर उसके पल्ले पड़ेगी।’

नेहा ने बताया-‘कीर्ति आंटी के घर नये किराएदार आए हैं। यह उनका बच्चा है। अभी बोल नहीं पाता। लेकिन समझता खूब है। देखोगी इसके कारनामे ।’ फिर नेहा झूठमूठ खाँसने लगी।

अरे! यह क्या? सामने से भी बिल्कुल उसी लय-ताल में वह बच्चा भी खाँसी की आवाज निकालने लगा। यशी को हँसी आ गई। नेहा भी हँसने लगी। …बस, वह बच्चा भी उसी अंदाज में हंसने लगा। खूब मजा आया। यशी चहक उठी। नेहा से कहा-‘वाकई तुम्हारा नया दोस्त तो बहुत ही अच्छा है।

‘हां, यशी। दोस्त तो सभी अच्छे ही होते हैं। देखो, तुम्हें पता चला तो दौड़ी चली आईं। अभी मेरे और दोस्त भी आ रहे हैं।’

अब यशी थोड़ा उदास सी हो गई। फिर उसने स्कूल की आज की सारी कहानी उसे सुना दी। मायूसी से बोली-‘मेरे तो बहुत कम दोस्त हैं।’

नेहा ने आंखें बंद कीं। होठ दबाए और फिर थोड़ा मुस्कुराकर बोली ‘दोस्तों की गिनती नहीं, उनकी भावनाएं महत्वपूर्ण होती हैं। सच्चे दोस्त कम ही होते हैं। …बस, उनकी तलाश करो। क्या तुम्हें पता है, मेरे राहुल भैया के दो हजार फ्रेंड हैं।…’

‘दो हजार…. ।’ यशी चकराई सी बीच में ही बोल पड़ी।

‘हां, दो हजार फ्रेंड है फेसबुक पर । पढ़ाई से ज्यादा वे चेटिंग पर ध्यान देते थे। अभी एक्जाम में तीन सबजेक्ट्स में फेल हुए हैं और मजे की बात यह कि जब उन्होने फेसबुक पर यह बात पोस्ट की तो लगभग चार सौ फ्रेंड्स ने उसे लाइक कर दिया। मेरा तो अभी एकाउंट ही नहीं है, नहीं तो पैर में चोट की बात को भी लाइक करनेवालों की कमी नहीं है।’

यशी चहक उठी-‘आई लाइक इट ।’

नेहा तुनकी-‘क्या? मेरी चोट को?’

‘अरे! नहीं जी। तुम्हारी अच्छी बात को लाइक कर रही हूं मैं ।’

और फिर दोनों जोर से हंस पड़ी।

छोटा बच्चा भी साथ में हंस रहा था।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’