dukh ka kaaran
dukh ka kaaran

आजकल देखा जाए तो व्यक्ति अपने दुःखों के कारण उतना दुःखी नहीं है जितना कि दूसरों का सुख देखकर दुःखी होता है। एक पड़ोसी दूसरे को हंसता-खिलखिलाता हुआ नहीं देख संकता। पड़ोसी को हानि पहुँचाने की बात हरदम उसका दूसरा पड़ोसी सोचता रहता है।

ऐसे भी पड़ोसी देखे गए हैं जो सोचते हैं कि मेरा पचास प्रतिशत नुकसान भले हो जाए पर मेरे पड़ोसी को सौ प्रतिशत हानि पहुँच जाए। यानि मेरी एक आंख फूटती है तो फूट जाए, पर मेरे पड़ोसी की दोनों आंखें फूट जाएं। शेख सादी रोजाना पास की मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते थे। उनके पास फटे-पुराने जूते थे। एक दिन एक धनवान व्यक्ति भी नमाज पढ़ने आया। उसके पास सोने से मढ़े हुए सुंदर से जूते थे। शेख सादी ने उस धनवान व्यक्ति से पूछा- ‘आप कब-कब नमाज पढ़ने आते हैं?’ वह व्यक्ति बोला- ‘मैं तो सिर्फ वर्ष भर में केवल एक ही बार नमाज पढ़ने आता हूँ।’

शेख सादी विचार करने लगे- “हे ईश्वर ये तेरा कैसा इंसाफ है। जो व्यक्ति केवल वर्ष में एक बार नमाज पढ़ने आता है उसके पास तो सोने से मढ़े हुए जूते हैं, और मेरे पास फटे पुराने जूते।” तभी एक विकलांग व्यक्ति नमाज पढ़ने आया। वह पैरों से घिसटता हुआ मस्जिद में आया था। उसके पास तो जूते भी नहीं थे। शेख सादी ने जब उस विकलांग व्यक्ति को देखा तो ‘उनके विचार एकदम से बदल गए।

उन्हें ईश्वर से जो शिकायत थी, वह फौरन धन्यवाद ज्ञापन में बदल गई। वे सोचने लगे जब व्यक्ति सम्पन्न व्यक्ति से अपनी तुलना करता है तब वह दुःखी होता है। किन्तु जब दुखियों से तुलना करता है, तब उसे ज्ञात होता है कि वह बहुत सारे लोगों से श्रेष्ठ है। हमारे समाज में ऐसे लोग ज्यादा हैं जो अपने सारे दुःखों का जिम्मेदार ईश्वर को ठहराते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)