कुछ चोर एक गाँव से गुजर रहे थे। चौराहे पर नट का तमाशा हो रहा था और ढोल बज रहा था। देखते ही देखते नट झटपट कलाबाजियां खाता हुआ दुमंजिले मकान की ऊँचाई के बराबर बांस पर चढ़ गया और वहाँ एक छोर से दूसरे छोर तक बँधी रस्सी पर चलने लगा। चोरों को बड़ा आश्चर्य हुआ। एक बोला- “अगर इसे अपनी टोली में शामिल कर लिया जाये तो बहुमंजिली इमारतों से चोरी करने में आसानी होगी।’ सबको यह बात जंच गयी और वे उस नट को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गये।
चलते-चलते वे एक कस्बे के पास पहुँचे तब तक शाम पड़ चुकी थी। अंधेरा घिरने लगा था। इसलिए उन्होंने वहीं अपना डेरा डाल दिया। आधी रात को खाना खा-पीकर वे उस कस्बे की एक दुमंजिली इमारत के पीछे जा पहुँचे तथा नट से बोले- “चल, देख वो जो दूसरी मंजिल की खिड़की खुली है उस पर से चढ़कर तू मकान के अंदर चला जा और मकान का मुख्य दरवाजा खोल” लेकिन नट चुपचाप खड़ा रहा। चोरों ने तीन-चार बार उसे और टोका कि ऊपर चढ़ता क्यों नहीं है? मगर वह तब भी चुपचाप खड़ा रहा। अंत में परेशान होकर चोरों के सरदार ने उसे धक्का देते हुए कहा- “क्यों बे, मरना है क्या? ऊपर चढ़ता क्यों नहीं है?”
सरदार की बात सुनकर नट ने कहा- हुजूर, सुन लिया, मगर ढोल तो बजवाइये।” उसका उत्तर सुनकर सारे चोर चकरा गये। जब उनकी समझ में सारी बात आयी तो वे, उसे वहीं छोडकर नौ-दो ग्यारह हो गये।
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