dhairya mein hi bhalai
dhairya mein hi bhalai

महान विद्वान शेख सादी ने लिखा है, ‘सभी कार्य धैर्य से होते हैं, जल्दबाज मनुष्य सिर के बल गिरता है।’ धैर्य जीव का एक महत्वपूर्ण गुण है जिसमें धैर्य नहीं है वह जीवन में कभी भी किसी कार्य में सफल नहीं हो सकता।

एक बार महात्मा नित्यानंदजी ने अपने शिष्यों को बांस से बनी बाल्टियां पकड़ा कर कहा, “जाओ इन बाल्टियों में नदी से पानी भरकर ले आओ। आश्रम की सफाई करनी है।” नित्यानंदजी के इस विचित्र आदेश को सुनकर सभी शिष्य आश्चर्यचकित हुए कि भला कहीं बांस की बाल्टियों में भी जल लाया जा सकता है? मगर बोलें क्या? अतः सभी शिष्य बाल्टियां लेकर नदी की ओर चल दिए।

वे पानी भरने लगे, पर जैसे ही वे बाल्टियां भरते सारा जल निकल जाता। निराश होकर सारे शिष्य वापस लौट आए। स्वामीजी को अपनी परेशानी बताई। स्वामीजी ने देखा कि एक शिष्य नहीं आया। उन्होंने सभी शिष्यों को बैठा लिया और प्रतीक्षा करने लगे। वह शिष्य नदी पर रुक गया था। वह बाल्टी भरता, पानी रिस जाता। शाम होने तक वह इसी प्रकार श्रम करता रहा। इसका परिणाम यह निकला कि बांस की शलाकाएं फूल गईं और छिद्र बंद हो गए।

तब वह बड़ा प्रसन्न हुआ और बाल्टी में जल भरकर ही आश्रम आया। नित्यानंदजी ने उसे शाबासी दी और शिष्यों को संबोधित कर बोले, “विवेक, धैर्य, निष्ठा और सतत परिश्रम करने से दुर्गम कार्य को भी सुगम बनाया जा सकता है।

सारः धैर्य जीव का एक महत्वपूर्ण गुण है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)