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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

ग्यारह वर्ष की ईशु की आंखें रंग से भरा बड़ा-सा टब और मेज पर रखी सुंदर-सुंदर पिचकारियों को देखकर एक क्षण तो खुशी से चमकी किन्तु फिर एकाएक उदास हो गईं। वह सामने पेड़ों के झरमुट के नीचे बैठ गई। जबकि घर के दूसरे बच्चे नीनू, मोनू और रचना रंग-बिरंगी पिचकारियों और रंग से भरे बड़े टब को देख खुशी से झूम उठे थे। किलकारियां मारते और एक-एक पिचकारी हाथ में पकड़े वे ईशु दीदी के पास चले आए थे। ईशु को चुप-चुप और उदास देखकर उससे छोटे वे तीनों उसके पास चुपचाप खड़े हो गए।

“चलो न दीदी, आज होली है। पिचकारी में रंग भरकर खूब खेलेंगे। आज तो हम सबको रंगकर ही छोड़ेंगे।” सात वर्ष के नीनू ने चुप्पी को तोड़ते हुए स्नेहपूर्वक कहा।

ईशु ने कोई उत्तर नहीं दिया। बस चुपचाप उदास बैठी रही।

“मजा आ जाएगा दीदी! दादा जी ने हम सबके लिए सुंदर पिचकारियां लाई हैं।” नौ वर्ष के मोनू ने ईशु दीदी से कहा। वह उसके ताया की बेटी थी और ईशु से बहुत प्यार करती थी।

“ईशु दीदी, आप नहीं खेलेंगी तो हम भी नहीं खेलेंगे।” पांच वर्ष की रचना बोली।

तीनों बच्चे ईशु के पास ही उदास होकर बैठ गए।

बरामदे में बैठे दादा रामरत्न सूद बड़ी देर से बच्चों को देख रहे थे। अब वह धीरे-धीरे बच्चों के पास पहुंच गए और बड़े स्नेह से बोले, “अरे बच्चो! मैंने तुम सबको सुंदर-सुंदर पिचकारियां लाई हैं। रंगों से टब भरकर रख दिया है। पर आप सब खेलते क्यों नहीं?”

सभी बच्चे चुप रहे। किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया तो दादा पुनः बोले, “ईशु बेटा, क्या बात है? …..किसी ने कुछ कहा है क्या?”

“नहीं दादा जी।”

“फिर सब चुप क्यों हैं! होली क्यों नहीं खेलते?”

“दादा जी, रास्ते पर चलते जब कभी नल बहता रहता है तो आप उसे बंद कर देते हैं न? ….. घर में भी नल खुला नहीं रहने देते।”

“हां-हां बेटे। पानी को व्यर्थ गंवाना सही नहीं है। हमें तो बूंद-बूंद पानी बचाना चाहिए।” दादा ने स्नेह से कहा।

“दादा जी, फिर इतने बड़े टब में पानी में रंग घोलकर पानी व्यर्थ में बर्बाद कर दिया है। पड़ोसी मीरा मौसी का नल प्रायः सूखा रहता है। किन्तु हमने कितनी ही बाल्टियां टब में डालकर पानी व्यर्थ गंवा दिया है न?”

ईशु ने अपने दादा से अपने मन की व्यथा कह डाली। अब बच्चों को ईशु दीदी की उदासी का पता चल गया था।

रामरत्न सूद को काटो तो खून नहीं। उनकी बोलती भी कुछ देर के लिए जैसे बन्द हो गई थी। थोड़ी देर बाद वे प्यार से बोले, “सॉरी बेटा, मुझे माफ कर दो। आप सब को खुश करने के लिए मैं यह भूल ही गया था कि मैं पानी व्यर्थ में नष्ट कर रहा हूं। सचमुच बच्चो, मैंने कितना ही पानी रंग घोल कर बर्बाद कर दिया है। मुझे माफ कर दो। ….. बच्चो, ऐसी खुशी किस काम की जिससे दूसरों को दु:ख मिलता हो।”

दादा रामरत्न सूद ने सभी बच्चों के सिर पर हाथ फेरा और उन्हें आंगन में ले आए। बच्चों के साथ दादा ने एक बाद फिर कसम खाई कि वे कभी पानी फिजूल नष्ट नहीं करेंगे। अब दादा उन्हें फल खिलाने के लिए साफ-सुथरी फल की दुकान की ओर ले चले थे। बच्चों ने पिचकारियां छोड़ दी थी और खुशी-खुशी दादा के साथ मस्त चाल से चलने लगे थे।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’