bhakti
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जो भगवान करते हैं, वही भक्त भी करता है, क्योंकि भक्त के लिए तो भगवान ही ‘रोल मॉडल’ हैं। जैसे भगवान सभी को समान देखते हैं, छोटे-बड़े में भेद नहीं करते हैं तो भक्त भी सभी को एक समान ही देखता है। भगवान कहते हैं कि मैं सभी को समान रूप से देखता हूँ, किंतु जो मेरे भक्त हैं वे हैं और मैं उनमे हूँ-

समः अहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्यः अस्तिन प्रियः।

तु माँ भक्त्या, मथि ते तेषुच अपि अहं।।

(श्रीमद्भगवतगीता, अध्याय 9 श्लोक 29 )

जो भगवान देखते हैं, वही भक्त भी देखता है। इस बात का एक उदाहरण एक महात्माजी ने इस प्रकार दिया है-

एक बार श्रीकृष्ण और अर्जुन साथ-साथ टहलने निकले थे। आकाश में एक पक्षी को उड़ते देख कृष्ण ने अर्जुन से पूछा, क्या वह एक बाज ही है? अर्जुन ने बिना पक्षी की ओर देखे ही कह दिया, हां, वह एक बाज ही है। इस पर कृष्ण ने कहा, वह एक चील हो सकता है और अर्जुन ने तुरन्त हामी भर दी_ हां वह तो चील ही है। कृष्ण ने फिर कहा, हे अर्जुन! मुझे तो वह कौवे जैसा लगता है। इस पर अर्जुन ने कहा, हां, हां वह तो एक कौवा ही है।

हंसते हुए भगवान ने पूछा, हे अर्जुन! तुम मेरी हां में हां क्यों मिला रहे हो? अर्जुन ने तपाक से उत्तर दिया- जो कुछ मेरी आंखें देखती हैं उससे कहीं ज्यादा विश्वास मैं आपके शब्दों पर करता हूँ। इस प्रकार भगवान का भक्त अपने आपको भगवान में ऐसे मिला देता है_ तल्लीन कर लेता है कि वह उसमें एक रूप हो जाता है। उसका कोई अलग अस्तित्व ही नहीं रह जाता है। इसी पर तो कबीर कहते हैं-

लाली मेरे लाल की, जित देखी तित लाल। लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल

भगवान भक्त को नहीं देखते हैं। वे तो उसकी भक्ति को देखते हैं_ उसके समर्पण को देखते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)