मैं हूं जलेबी बाई, मुझसे जलती हैं और मिठाई। जले भी क्यों ना! मैं हूं ही इतनी मीठी, क्रिस्पी और लाजवाब! तभी तो उत्तर भारत में सुबह का नाश्ता जलेबी के बिना कुछ ऐसा ही है, जैसे कि चूना-कत्थे के बिना पान बेस्वाद। पता है चाहे ब्रेकफास्ट हो या लंच या शाम के समय समोसो का लुत्फ, सब मुझे गर्मा गर्म या कभी कभी ठंडी रबड़ी के साथ किसी भी रूप में खाना एन्जॉय करते हैं। तभी तो मैं हूं आपकी मनपसंद अलबेली, नाम है मेरा जलेबी। लेकिन एक बात बताऊं इतने सालों से हर रंग में, हर उत्सव और त्योहारों में रची बसी मैं, भारतीय नहीं हूं। मैं भी आपके जैसे यह खुश फहमी पाले हुए थी। अपने आप को भारतीय समझती थी, लेकिन मेरी गलतफहमी दूर हो गई जब मुझे पता चला कि मैं जुलाबिया से आई हूं। आपको भी झटका लगा ना! देखिए कुछ इस तरह से है मेरी कहानी मेरी जड़ों को भारतीय ही समझा जाता है लेकिन मैं यह गलत फहमी आज दूर करना चाहती हूं की मेरा जन्म भारत में नहीं हुआ है। जुलबिया में 10वीं सदी की एक किताब अल तबीख में मेरी रेसिपी लिखी गई थी और उसमें मेरे बारे में यह भी जिक्र किया गया है कि में एक मीठी डिश हूं, जिसे रमादान के दिनों में बनाया जाता है। जुलबिया आज के मॉडर्न ईरान में भी प्रचलित है। हालांकि जुलबिया मेरे से थोड़ा अलग है, आप उसे मेरा चचेरा भाई मान सकते हैं। जुलबिया को शहद व गुलाब जल के मिश्रण के साथ बनाया जाता है जबकि मुझे केवल सिंपल सिरप के साथ बनाया जाता है। उसके बाद फिर हुई मेरी भारत में एंट्री। मैं जुलबिया से ही निकली हूं और मुझे पर्शिया के व्यापारियों के माध्यम से भारत लाया गया। 15वीं सदी तक मैं भारत के मुख्य त्यौहारों में और शादियों में बनने वाली मुख्य डिश बन गई थी, अर्थात बाकी के व्यंजनों में से सबसे ज्यादा रोब मेरा ही था और आज भी है। यहां तक कि मंदिरों के प्रसादों में भी मेरी जगह बन चुकी। भारतीय घरों में खाना खाने के बाद मिठाई के रूप में खाई जाने वाली भी मैं इकलौती मिठाई बन गई थी लेकिन मुझे केवल खास मौकों पर ही बनाया जाता था।
पूरे भारत में मुझे अलग अलग नामों से जाना जाता है व अलग अलग विधियों के द्वारा बनाया जाता है। लेकिन इन अलग अलग विभिन्नताओं के बाद भी मैं पूरे भारत में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध मिठाई हूं। एक मजेदार बात बताऊं लोगों को नागरिकता लेने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं लेकिन मुझे तो बिना नागरिकता मिले ही भारतीय समझा जाता है। भाड़ में जाए वह लोग जो मुझे देशद्रोही बोलते हैं, मैं पूरी तरह से देसी हूं। तभी तो हर पार्टी का नेता मुझे खाना पसंद करता है। एक बात और, आजकल तो लड़के भी मेरी जैसी लड़कियां पसंद करते हैं।जैसे मुझे आप जिस रंग में डालो उस रंग की होने के बाद भी अपना मिठास नहीं खोती। अपने गुण नहीं बिगाड़ती। उसी प्रकार आजकल लड़कों को भी ऐसी ही लड़कियां चाहिए जो जिन्हें कोई बेवकूफ ना बना सके, जो बिंदास हो, जिसका हर अंदाज बोल्ड, तभी तो मेरी जैसी लड़कियों की डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जलेबी जैसी सीधी।
ऐसे ही भारत के बहुत से इलाकों में मेरी प्रसिद्धि बढ़ती गई और मेरा विकास होता गया। दक्षिणी भारत में कुछ लोग तो मुझे जिलेबी कहते हैं। बंगाल में मुझे जिलापी के नाम से जाना जाता है। यहां तो मुझे प्रमुख मेले रथयात्रा पर भी बनाया जाने लगा है अब। गुजरात में मुझे फाफड़ा के साथ खाया जाता है। जितनी जल्दी और सब तरफ मैंने अपनी जड़ें पूरी भारत में मजबूती से जमायीं है कोई और मेरा सानी। नहीं न? पता है, इंदौर के कई क्षेत्रों में मुझे बहुत ज्यादा वजन व बहुत मोटा और जलेबा के नाम से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश में इमरती व मध्य प्रदेश में खोवा जलेबी के रूप में मुझे खूब पसंद किया जाता है।
बजारों में मेरी मांग सर्दियों के समय अधिक हो जाती है। सर्दियों में हर कोई मुझे सुबह सुबह गर्म गर्म खाना पसंद करता है और मुझे खाने के बाद जो स्वाद लोगों की जीभ पर रहता है उसका तो कोई जवाब ही नहीं है। भारत के लगभग हर शहर और गांव में मेरी जगह है। और सभी भारतीयों को मैं बहुत पसंद हूं। मेरी जगह कोई अन्य मिठाई नहीं ले सकती। सचिन तंदुलकर जैसी बड़ी बड़ी हस्तियों को भी मेरा स्वाद खूब मन भाता है।चाहे बाजार में कोई भी मिठाई क्यों न आ जाए लेकिन मेरी जगह अलग है। मेरे जैसा कोई नहीं।
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