भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
एक राजा था। उसकी तीन पुत्रियाँ थी। तीनों ही बड़ी सुन्दर एक से एक। पर तीसरी कन्या दोनों बड़ी बहनों से ज्यादा खूबसूरत और अकलमंद थी। राजा एक दिन शिकार पर गया। शिकार करते-करते बहुत दूर निकल गया। वापिस लौटना चाहा तो रात हो चुकी थी। रात में उसने जंगल में ही डेरा डाल लिया तभी जोरों कि बारिश शुरू हो गई। राजा भागता हुआ एक गुफा के पास आया। गुफा खाली थी तो वह वहीं पर बैठे-बैठे सो गया। जब उसकी आँख खुली तो एक बड़ा-सा राक्षस उसके सामने बैठा था।
राजा ने उस राक्षस से क्षमा मांगी और वहाँ से जाने लगा। तभी गुफा की दीवार बंद हो गई। राजा डर गया। राक्षस ने अपनी डरावनी आवाज में कहा “मेरी अनुमती के बिना तुमने मेरी गुफा में समय बिताया है। इसका हरजाना भर के जाओ।”
‘ठीक है, मैं महल जाकर तुम्हें हरजान दे दूंगा।’
‘नहीं हरजाने के रूप में जो मैं चाहता हूँ, तुम्हें वही देना पड़ेगा।’
‘पर’
‘पर-वर कुछ नहीं, मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे राज्य चलूंगा और हरजाना साथ लेकर आऊँगा।’
राजा डर गया और उसे अपने साथ ले जाने को तैयार हो गया। तभी गुफा का दरवाजा अपने आप खुला गया। दोनों राज्य की ओर निकल गये।
राज्य में प्रवेश करने के बाद राजा ने मंत्री को बुला कर राज्य के खजाने में से कुछ धन लाने को कहा। तभी राजा की तीनों पुत्रियाँ वहाँ आ गई, राक्षस ने तीनों को देखा, तीनों पर मोहित हुआ। राजा से कहा- ‘मुझे धन नहीं, तुम्हारी तीनों पुत्रियों को दे दो।’
राजा बड़ा गुस्से में आया, अपनी तलवार निकाल ली। पर राक्षस के आगे उसकी तलवार कुछ नहीं कर पायी। रात भर राजा सोचता रहा, तभी सब से छोटी बेटी वहाँ आयी। कहा- ‘आप चिंता न करें, पिता जी कल आप हम तीनों की विदाई की तैयारी करें। बाकी सब मुझ पर छोड़ दें।’
सुबह हो गई, तीनों तैयार होकर महल से निकली, तीनों धुंघट में थी। पिता से आखिरी बार गले मिलकर वे महल से बाहर निकली। निकलते ही राक्षस से कहती है कि ‘हम तो तुम्हारे साथ चल रही हैं। पर यह हम कैसे मान ले कि हमें लेकर जाने पर भी तुम संतुष्ट रहोगे। अगर फिर से तुम पिताजी को सताओगे नहीं।’
‘तो तुम क्या चाहती हो?’
‘प्रमाण दो’
‘कैसा प्रमाण?’
‘यही की हमारे यहाँ से जाने के बाद तुम्हारा इस राज्य और राजा से कोई नाता नहीं है। अगर फिर तुम यहाँ आने की सोचे तो?’
‘ठीक है, अगर ऐसा हुआ तो तुम मेरी जान ले लेना’
‘कैसे?’
‘मेरी जान एक मिट्टी के घड़े में रखी है, उस घड़े को तोड़ दो।’
ठीक है कहकर जंगल की ओर निकल पड़े। गुफा कि ओर चलते-चलते राक्षस को यह लगा, बाकी की दो जिन्होंने बूंघट ओढ़ रखे थे। वो तो राकुमारियाँ नहीं है। वह गुस्से में आग बबूला हो गया चिल्लाकर कहा, मैं अभी राजा के पास जाऊँगा और दोनों राजकुमारियों को ले आऊंगा। तभी सब से छोटी राजकुमारी गुफा के अंदर भागी और वहाँ कई सारी मिट्टी के घड़े पड़े मिले। पर एक घड़ा जो ऊपर कीक पर लटका हुआ था, उसने ऊपर चढ़कर उस घड़े के तोड़ दिया। राक्षस वहीं तडप-तडप कर मर गया। छोटी राजकुमारी वापिस महल पहुंची।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
