‘देख ले-‘ मीना ने अंशु को कोहनी मारी।
बोली, ‘अजय बाबू की दृष्टि में तेरे लिए कितना अधिक दीवानापन झलक रहा है। अब संकोच की दीवार हटाना तेरे हाथ में है।‘
अंशु ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह और लजा गई।
पानी के मध्य एक चट्टान पर मीना ने दरी बिछाई। नीचे बैठी तो अंशु भी घुटने समेटकर बैठ गई।
मीना ने रेडियोग्राम पर रिकॉर्ड लगा दिया। फिर खड़ी होकर अपना गाउन उतारते हुए अंशु को देखा।
‘न बाबा, मैं नहीं तैरूंगी। तू ही चली जा।’ लाज के मारे अंशु अब उठना भी नहीं चाहती थी।
अंशु बड़े-बड़े होटलों तथा क्लब के स्वीमिंग पूल में अपरिचित व्यक्तियों के सामने भी तैरने में कोई हर्ज नहीं समझती थी। वह ऊंचे समाज की एक स्वंतंत्र विचारों वाली लड़की थी, जहां इन बातों में लजाना एक पिछड़ापन समझा जाता है, परंतु आज जब वह अपने ही मित्रों के सामने लजाने लगी तो मीना आश्चर्य किए बिना न रह सकी। उसने कहा, ‘अरे वाह! जीवन भर नटखटी करने वाली लड़की आज अजय बाबू से डर रही है? अरे पगली, यही तो अवसर है। आ, चल, मैं तेरे साथ हूं।’
मीना ने अंशु की बांह पकड़कर उसे खड़ा किया। बोली, ‘आज तुम दोनों के प्यार का भेद एक-दूसरे पर अवश्य खुल जाना चाहिए। आगे पता नहीं ऐसा अवसर कभी मिले या न मिले, कौन जानता है।‘
अंशु ने स्वयं में सिमटते हुए एक बहुत प्यारी मुस्कान के साथ अपना गाउन उतारा। अजय उसे देख रहा था। अंशु का कुंदन समान दमकता शरीर। भगवान ने मानो उसके अंग-अंग को अपने हाथों से तराशा था।
अंशु ने अजय को देखा। उसकी चुभती हुई दृष्टि वह सहन नहीं कर सकी तो तुरंत आगे बढ़कर उसने पानी के वस्त्र में अपने को गर्दन तक छिपा लिया। हल्के नीले पानी में उसका शरीर सफेद जलपरी समान झलकने लगा।
मीना भी अंशु के समीप पानी में उतर गई थी। उसने दबे स्वर में अंशु से कहा, ‘थोड़ा गहराई में जाकर एक-दो डुबकी लगा दे। अजय बाबू का ध्यान कहीं और होगा तो मैं तेरे बचाव के लिए चीख पडूंगी।’
अंशु ने कुछ नहीं कहा। वह तैरती हुई गहराई में गई, अजय की ओर, परंतु उसका साहस नहीं हो सका कि वह शरारत करते हुए डुबकी लगाए। प्यार की गंभीरता शरारत करने की आज्ञा नहीं दे सकी।
अजय अंशु को बहुत हसरत से देख रहा था। अंशु का उसके सामने हाथ–पैर चलाना कठिन हो गया, परंतु फिर स्वयं को संभालकर वह तैरती हुई अजय की दृष्टि से दूर चली आई, एक ओर, जहां झरना कुछ अधिक गहरा था। वहां छोटी-छोटी चट्टानों के मध्य तथा तेज गति से बहते पानी में एक सुंदर जोड़ा बैठा हुआ था। लड़के ने सफेद कमीज और चॉकलेट रंग की पैंट पहन रखी थी तथा लड़की ने गुलाबी साड़ी। दोनों प्रेम सागर में डूबे हुए थे।
अंशु ने उनके स्थान पर अजय तथा अपने आपको देखा। काश, इसी प्रकार वह भी अजय के साथ ठंडे पानी में बैठी दिल की आग बुझाती होती।
वहां समीप ही पानी के मध्य एक चट्टान और अधिक उभरी हुई थी। इस पर किसी लड़की का रेशमी आंचल बिछा हुआ था। एक किनारे कुछेक सेब भी रखे हुए थे। चट्टान की दरारों में थोड़ी-थोड़ी घास उग आई थी। घास में कुछ फूल भी मुस्करा रहे थे।
अंशु इसी चट्टान पर आकर लेट गई। उस जोड़े की ओर से उसने अपना मुखड़ा फेर लिया और दूसरी ओर करवट ले ली।
उसकी आंखों में एक सपना जागा, उस जोड़े के स्थान पर वह अजय के साथ है। अजय इस समय सफेद कमीज तथा चॉकलेट रंग की पैंट में बहुत सुंदर लग रहा है। वह अजय के बहुत समीप बैठी है, तैराकी वस्त्र में नहीं, साड़ी में, जिससे नारी की लाज को गहना मिलता है। उसका आंचल हवा के दबाव तथा पानी के बहाव पर बार-बार सरक जाता है। अजय उसे बहुत हसरत से देखता हुआ प्यार भरी बातें कर रहा है, परंतु वह उससे दृष्टि मिलाने में भी असमर्थ है। लाज के कारण बोझिल पलकें उठने का नाम ही नहीं ले रही हैं।
अंशु को यह सपना इतना सुंदर लगा कि पत्थर पर लेटे-लेटे ही वह शर्माने लगी। बेख्याली में उसने पत्थर पर बिछा आंचल अपनी कलाई पर खींच लिया और अंगुलियों से खेलने लगी।
समय इतना बीत गया कि उसका भीगा शरीर भी सूख गया। केवल लटें ही कुछ भीगी थीं।
अजय, अंशु से अधिक दूर नहीं रह सका तो वह भी इस ओर चला आया था। एक चट्टान पर खड़े होकर वह अंशु की पीठ की ओर देख रहा था, बहुत ध्यान से। अंशु की लटों पर नन्हीं-नन्हीं बूंदें सितारों समान चमक रही थीं। अंशु का शरीर बेदाग था, पैरों की प्यारी-प्यारी सफेद अंगुलियां, गोल तराशी हुई पिंडलियां, घुटनों के जोड़ के नीचे हल्का-सा गड्ढा। अंशु की पीठ पर चोली का बंध इंच भर चौड़ा था। ऐसा लगता था, मानो संसार की चिंता से दूर कोई जलपरी स्वप्न देखने के लिए इस चट्टान पर आकर लेट गई है।
जारी…
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