अजय ने जब अंशु की रुचि अपने में देखी तो वह विश्वास नहीं कर सका विश्वास करने का साहस नहीं हुआ।

क्या अंशु विशाल को भुलाकर उसकी बन सकती है? क्या यह संभव है कि वह एक ऐसे व्यक्ति से प्यार करे, जो पहले एक अपराधी रह चुका है तथा जिसके अपराध के बारे में सारा संसार जान चुका है?

उसे इस पार्टी में बुलाकर जो भी सम्मान दिया जा रहा है, यह तो एक औपचारिकता है, ताकि अन्य अपराधियों को अपराध छोड़ने की प्रेरणा मिल सके। क्या उसके मस्तक पर लगा कलंक कभी मिट सकेगा? क्या अंशु भूल सकती है कि वह कभी अपराधी था?

फिर भी उसे विश्वास होने लगा कि अंशु उसमें जो भी रुचि ले रही है, वह सहानुभूति के अतिरिक्त कुछ और भी है। अंशु के देखने का ढंग, आंखों में डूब जाने का ढंग… अंशु जब अजय से अपनी आंखें मिलाती तो अजय को ही अपने दिल पर काबू करके पलकें झुका लेनी पड़ती थीं।

सहसा वहां अंशु की एक प्रिय सहेली आ गई। पार्टी में वह देर से आई थी, इसलिए उससे मिलने वहां चली आई।

अजय ने देखा, यह वही लड़की थी, जो अंशु को उस दिन स्टेशन पर लेने आई थी, जब उसने अंशु के साथ पहली बार रेल-यात्रा की थी।

‘हाय अंशु!’ उसने चहककर कहा।

‘हाय!’ अंशु ने कहा, परंतु इस समय उसे अपनी सहेली का हस्तक्षेप करना अच्छा नहीं लगा। फिर भी उसके स्वागत में वह मुस्करा दी।

अंशु ने तुरंत ही उसकी भेंट अजय से कराई। अजय की प्रशंसा भी की तो उस लड़की ने उससे हाथ मिलाकर प्रसन्नता प्रकट की। लड़की का नाम अंशु ने मीना बताया।

‘हमारे होने वाले जीजाजी कब आ रहे हैं?’ सहसा अन्य बातों से फुर्सत पाकर मीना ने पूछा, बहुत चंचलता के साथ।

जीजाजी? अजय चौंक पड़ा।

अंशु भी चौंक गई। पूछा, ‘जीजाजी?

‘हां-हां…विशाल बाबू।’ मीना ने कंधा झटका।

विशाल! अजय ने ऐसा मुंह बनाया, मानो उसने अपनी प्लेट से मिठाई का एक टुकड़ा नहीं, कोई किरकिरी वस्तु उठाकर दांतों के बीच रख ली है।

‘मुझे क्या पता।’ अंशु ने लापरवाही से उत्तर दिया। उसे इस समय विशाल का नाम अच्छा नहीं लगा

‘अरे! पागल हो गई है क्या?’ मीना ने आश्चर्य से कहा, ‘यहां सारी सहेलियों ने तेरे सहारे इस शनिवार को पिकनिक की तैयारी कर रखी है और तू कह रही है कि मुझे क्या पता? आखिर तूने ही तो कहा था कि वह आठ या नौ तारीख तक आ जाएंगे। क्या तूने अभी तक उन्हें पत्र भी नहीं लिखा?’

‘ओ माई गॉड!’ अंशु को अचानक याद आया। वह वास्तव में भूल गई थी। विशाल को उसने कभी पत्र नहीं लिखा था, परंतु पिकनिक के कारण लिखने को अवश्य तैयार हो गई थी फिर अजय के प्यार में वह इस प्रकार खो गई थी कि उसे कुछ याद ही नहीं रहा।

‘कहां खो गई थी, जो विशाल बाबू को पत्र लिखना ही भूल गई?’ सहसा समीप से जाते बैरे की ट्रे से कोका-कोला की एक बोतल उठाकर मीना ने पूछा।

अंशु ने अजय को देखा। फिर बात संभालकर बोली, ‘कहीं नहीं। मैंने उसे कभी पत्र नहीं लिखा, शायद इसीलिए भूल गई थी।’

‘खैर…’ मीना ने कहा, ‘अब भी बहुत समय है। विशाल बाबू को रिंग कर देना। हम लोगों का दस तारीख का प्रोग्राम बिल्कुल पक्का है।’

फिर मीना अजय की ओर पलटी। बोली, ‘बेचारे विशाल बाबू इससे प्यार करते हैं, परंतु शर्मीले इतने हैं कि अंशु से आंख तक नहीं मिलाते।’

सहसा वह चौंकी। बोली, ‘अजय बाबू, आप भी हमारे साथ क्यों नहीं चलते? वास्तव में पिकनिक का आनंद आ जाएगा।’

‘मैं!’ अजय बौखला गया। उसका इन बड़े लोगों में क्या काम?

अंशु ने एक पल सोचा। फिर बोली, ‘अजय बाबू चलें, अवश्य चलें।’

अंशु ने अपनी प्लेट से एक टुकड़ा मिठाई का उठाया और होंठों तक ले जाने से पहले कहा, ‘अजय बाबू, आप तो बिल्कुल अकेले हैं, इसलिए आप खाने की चिंता मत कीजिए। मैं आपका ब्रेकफास्ट तथा लंच रख लूंगी। रात का खाना तो हम रसोइए द्वारा पिकनिक स्पॉट पर ही बनवाएंगे।

अजय की आंखों में एक सपना जागा, जिसे मीना ने पढ़ने का प्रयत्न किया। सोचा, अंशु अजय का इतना विचार क्यों रख रही है? क्या अजय एक समय खाने का प्रबंध किसी होटल से नहीं कर सकता?

फिर उसने अपना मन झटक दिया। उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। अंशु अजय की मित्र भी तो हो सकती है। मित्र तथा प्रेमी-प्रेमिका में बहुत अंतर होता है।

जारी…

ये भी पढ़िए-

शक्तिला

इंसानियत की खातिर

बुआ फिर आना

आप हमें  फेसबुक,  ट्विटर,  गूगल प्लस  और  यू ट्यूब  चैनल पर भी फॉलो कर सकते हैं।