… राजा विजयभान सिंह ने राधा की बांह थामी और उसे दूसरी ओर ले गए पश्चिम दिशा की ओर। काफी दूर, कुछेक ताड़ के वृक्षों पर बैठे गिद्ध स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे। उन्होंने कहा‒ उन ताड़ के वृक्षों से भी बहुत दूर, जहां तुम्हारी दृष्टि भी नहीं पहुंच सकती, सब मेरा है, मैं यह सब कुछ तुम्हें दे दूंगा।…. तुम्हें इस इलाके की रानी बना दूंगा….यहां के निवासी तुम्हारी प्रजा होंगे, लेकिन एक शर्त……मुझे क्षमा कर दो। मेरे प्रति अपने दिल में जगह बना लो। अपनी उदासी को भूलकर मेरे प्रति दिल खोलकर मुस्कुराने लगो। मुझे इस संसार में और कुछ भी नहीं चाहिए।

तुम स्वयं जानती हो, मुझे इस संसार में किसी वस्तु की कमी नहीं रही है। मैंने जो कुछ भी चाहा, वह एक इशारे पर कदमों में आ गिरा, परंतु कल रात तुम्हारे साथ जबरदस्ती करने के बाद ही न जाने क्यों मुझे ऐसा प्रतीत हुआ, मानो मैंने तुम पर बहुत बड़ा जुल्म किया है‒ तुम पर ही नहीं, उन तमाम लड़कियों पर, जो मेरी वासना का शिकार हुई हैं। तुम्हारी इन काली आंखों में न जाने कैसा जादू है कि इनमें अपने प्रतिबिम्ब को देखकर मेरे अंदर का मानव जाग उठा है। मेरे अंदर की इंसानियत मुझे धिक्कार रही है। राधा क्या तुम मुझे क्षमा करके एक नया जीवन अपनाने का मौका नहीं दोगी?

राजा साहब! राधा ने भीगे स्वर में तड़पकर कहा‒ ‘आपको मैं कभी क्षमा नहीं करूंगी, मरते दम तक नहीं। आपको क्षमा करके मैं उन सैकड़ों-हजारों अबलाओं के विरुद्ध किस प्रकार एक बड़ा पाप अपने ऊपर ले सकती हूं, जिनकी अभिलाषाओं का खून आपके सिर है। उन मजबूर और बेबस लड़कियों में मेरी भोली-भाली बहन भी सम्मिलित है। उसे उठवाते समय आपने यह तक नहीं सोचा कि वह कच्ची आयु की लड़की आपकी वासना की भूख मिटाने योग्य है भी या नहीं। आपके जुल्म के कारण उसने अवश्य आत्महत्या कर ली, परंतु मैं ऐसा कभी नहीं करूंगी।

मैं जिऊंगी और जीवित रहकर संसार के आगे आपका भांडा फूटने की प्रतीक्षा करूंगी। आखिर कोई तो इस संसार में ऐसा उत्पन्न होगा, जो आपके कर्मों का फल आपको देगा। आप मनुष्य नहीं शैतान हैं, मुझे शादी के मंडप से उठवाते हुए आपने यह नहीं सोचा था कि आपकी इस करनी से मेरा बूढ़ा बाबा मर जायेगा, अनगिनत लोगों का दिल टूट जाएगा।

राजा साहेब, ऐसा नहीं है कि भगवान कुछ नहीं देखता है‒वह सब्र करते हुए सबकी सुनता है। आप देख लीजिएगा‒दौलत का यह घमंड एक दिन टूटकर चूर-चूर हो जाएगा। आप कहीं के नहीं रहेंगे। मेरी सिसकियां आपको खा जाएंगी। मेरे आंसू आपको जीने नहीं देंगे। मेरी आहें इस खूबसूरत महल को खंडहर बनाकर रख देंगी।’

‘लड़की!’ सहसा समीप आये एक मंत्री ने राधा की बात सुनकर अपनी तलवार बाहर खींची। चाहा कि अपने स्वामी के अपमान के बदले में उसका सिर कलम कर देए परंतु तभी राजा विजयभान सिंह बीच में आ गए।

‘प्रताप!’ उन्होंने उसे हाथ के इशारे से मना करते हुए कहा‒ कहने दो इसे, कहने दो। जो कुछ भी इसके मन में है, कह लेने दो। इसे मना मत करो।’ …

 

आगे की कहानी कल पढ़ें, इसी जगह, इसी समय….

 

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