जिस आयु में आमतौर पर लड़कियां हायर सेकेंडरी कक्षा की छात्रा होती हैं और उन्मुक्त गगन में बिंदास पंछी की तरह यहां-वहां चहकती-उड़ती फिरती हैं, उस 16 वर्ष की टीनेज में मेरा ब्याह हो गया था। सत्रह की होते-होते मैं मां बना दी गई और किसी को मलाल तक नहीं हुआ। जब मैं पहली बार गर्भवती हुई तो कितनी खुशियां छलक उठी थीं। मायके और ससुराल में उत्सव का माहौल था।
गोदभराई तथा अन्य पारंपरिक रस्में कितने उल्लासमय वातावरण में संपन्न की गई थीं। पेट में गर्भ के भार के बदले पढ़ाई के बोझ से अनायास मुक्ति मिल गई थी। यही नहीं मेरी पूछ परख, मेरा रुतबा बढ़ गया था किसी महारानीसा। समय के अंतराल से उसी खुशनुमा माहौल में मैंने एक नन्हीं परी सोनम को धरती पर अवतरित किया। बड़े हर्षोल्लास से उसका जन्मोत्सव, नामकरण संपन्न किया गया, लेकिन वही सोनम, मेरे कलेजे का टुकड़ा आज जब मां बनने की कगार पर आ गई है तो घर में क्यों मुर्दई छाई हुई है? इस अप्रत्याशित घटना से मैं हतप्रभ हूं। परिवार में खुशी का वातावरण क्यों नहीं? क्यों नहीं नानी बनने की खुशी मेरे चेहरे पर दमक रही? क्यों नहीं मैं अपनी बेटी के मां बनने के अवसर पर पारंपरिक रस्म अदायगी करना चाह रही? क्यों गुपचुप, चोर की भांति, जमाने से छिपाकर उसका प्रसव कराने का मन बना रही हूं? मेरा जमीर उसे नाजायज मान क्यों धिक्कार रहा?
कारण दर्पण की तरह स्पष्ट है। बिना डोली उठे, बिना शहनाई बजे, बिना ब्याह के कोई लड़की मां बने, समाज यह कभी गंवारा नहीं करेगा। सोनम की उम्र ही शादी लायक नहीं। 14 वर्ष की सोनम कक्षा 8 में अध्ययनरत है और इन दिनों परीक्षा की तैयारियों में व्यस्त थी। फिर यह दूसरी परीक्षा का अवरोध कहां से उत्पन्न हो गया? मैंने कितना उसकेसुनहरे भविष्य के बारे में सोचा था, सब मटियामेट हो गया। मैंने सोचा था कि अपनी तरह उसका विवाह नाबालिग अवस्था में नहीं करूंगी, बल्कि 18 वर्ष के उपरांत ही तब करूंगी, जब तक वह बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेगी। उसके बाद आगे पढऩा, नहीं पढऩा उसके ससुराल पक्ष पर निर्भर करेगा।
अब सवाल यह है कि मुझे यह सब कैसे पता लगा? वह तो बताएगी नहीं और यह राज छिपनेवाला नहीं। हुआ यह कि जब सोनम इम्तिहान की तैयारी में मशगूल थी, एक मां होने के नाते, मुझे उसमें कुछ असामान्य परिवर्तन घटते दिखाई दिए। उसकी उम्र की सहज चंचलता, अल्हड़पन, उल्लास-उमंग उसके जिस्म व व्यवहार से गायब दिखाई दिए। पहले तो मैंने सोचा कि परीक्षा का दबाव, तनाव उसे संजीदा बना रहा है और ऐसा नामुमकिन भी नहीं। परीक्षा के तनाव में अच्छे-अच्छों की हालत खस्ता हो जाती है।
एक दिन मैंने घुमा-फिरा कर सोनम से पूछ लिया, ‘सेनेटरी पैड ला दूं तेरे लिए, मैं अपने लिए लेने जा रही हूं।’ यह सुनकर सोनम घबरा गई, मानो चोरी पकड़ी गई हो। ‘क्या हुआ बेटी अब तो पेड बहुत सस्ते हो गए हैं। फ्री में भी मिलने लगे हैं।’ मैंने पुचकारते हुए दोबारा कहा। मेरा तीर निशाने पर लगा, जैसे उसके दुखते जख्म पर हाथ रख दिया गया हो। वह बुक्का फाड़कर रो पड़ी और मुझसे चिपकते बोली, ‘नहीं मम्मी उसकी जरूरत नहीं।’
अब चौंकने-घबराने की बारी मेरी थी, ‘क्या… क्यों?’ मैं जैसे आसमान से धरती पर आ गिरी। किसी अनहोनी की आशंका मेरे मन को व्यथित करने लगी। ‘मेरी माहवारी बंद हो गई है।’ उसने रूआंसे स्वर में कारण बताया। ‘ऐसे कैसे हो सकता है, तूने बताया क्यों नहीं मुझे, डॉक्टर के पास ले जाती?’ अपने जेहन में उपजे अनेक सवाल मैंने दाग दिए, जिसके प्रहार से वह और घबरा गई।
मेरा मन नहीं माना तो उसे डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने जब परीक्षण कर बताया कि वह मां बनने वाली है। उसे छह महीने का गर्भ है तो मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई। अब उसका गर्भपात का समय भी निकल चुका था। जबरदस्ती प्रयास करने से उसकी जान जाने के अवसर बन सकते थे। मैं हतप्रभ थी। इस जानकारी से मन-मस्तिष्क जैसे निष्क्रिय हो चले थे। यह सब कैसे, कब घटित हो गया। किस शैतान ने उस मासूम की अस्मत पर हमला किया? वह दरिंदा केवल एक घर में पैदा नहीं हुआ, एक समाज, एक प्रदेश, एक देश, एक संस्कार, एक विचार और एक शिक्षा व्यवस्था पर अट्टहास करता आया है।
मेरी सोनम तो बहुत सीधी-सादी, भोलीभाली है। कहीं आती-जाती भी नहीं। न उससे पूछने की हिम्मत मुझे हो रही थी, न उसे बताने की। हम परस्पर नजरें चुरा रहे थे, लेकिन मां होने के नाते मुझे ही कदम उठाना था, कैसे चुप बैठ सकती थी? आखिर वह शैतान कौन था, जिसने सोनम को सरेआम दोजख के द्वार पर धकेल दिया? मेरा मन तेजी से कुछ संभावनाओं पर विचार करने लगा।
मैं अपनी कल्पनाशक्ति दौड़ा कर सोचने लगी कि वह शोहदा कौन हो सकता है? वह जिस स्कूल में पढऩे जाती है वहां का कोई अध्यापक, कर्मचारी हो सकता है? मोहल्ले या आस-पास का कोई बदमाश हो सकता है। बस इसके अतिरिक्त तो कोई हो नहीं सकता। बच्चे का असली बाप तो सोनम से ही पता चल सकता है।
मुझे तो अपनी बेटी पर बड़ा नाज था। उसके पापा को मैं किस मुंह से यह सब बता पाऊंगी। मुझ पर इल्जाम लगाएंगे कि जरा सा बेटी का ध्यान नहीं रख सकती। ‘सोनम बेटी, उस दरिंदे का नाम बताओ, जिसने तुम्हारे साथ यह गलत हरकत की। उस राक्षस को मैं छोडूंगी नहीं, चाहे जो हो जाए। मैं उस लफंगे की करतूत सबके सामने उजागर करूंगी।’ मैंने सोनम को विश्वास में लेकर नाम जानना चाहा। सोनम पत्थर सी जड़वत हो गई। उसके मुंह से बोल नहीं फूट रहे
थे। बस मुखाकृति से पता चल रहा था कि वह भारी दुविधा में है।
‘ऐसे चुप रहोगी तो कैसे काम चलेगा? तुम उस नीच का नाम बताओ, उसे उसके किए की सजा दिलाकर ही रहूंगी। पुलिस-कानून तो बाद में निबटेगा, पहले मैं उसे नहीं छोडूंगी।’ प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते मैंने उसे आश्वस्त करना चाहा, लेकिन मेरा स्वर जैसे बेकाबू हो बगावत के स्तर पर उतर आया था, उनमें गुस्से की तल्खी घुलने लगी थी।
सोनम की लंबी खामोशी मुझे भयभीत करने लगी। क्या वह इतना डर गई है कि उस पशु का नाम तक नहीं ले सकती। ‘बता बेटी उस बलात्कारी जालिम का नाम?’ मेरा गुस्सा चरम पर पहुंच रहा था और सहनशीलता जवाब देने लगी थी। ‘क्या करेंगी मम्मी नाम जानकर?’ पहली बार सोनम ने हिम्मत दर्शाई, वह भी विगलित स्वर में। ‘कहा न उस भेडि़ए को पुलिस में पकड़ाऊंगी, जेल की सलाखों तक, फांसी के फंदे तक पहुंचाऊंगी।’ शब्दों पर मेरा नियंत्रण छूटा जा रहा था, जुबान लडख़ड़ाने लगी थी। ‘और कोई रास्ता नहीं है?’ सोनम ने खोए स्वर में पूछा। उसका सवाल मुझे बुरी तरह चौंका गया, मुझे लगा जैसे शायद वह कोई समझौता सुलह चाहती है। ‘हां एक रास्ता है जो थोड़ा मुश्किल जरूर है पर… उस पर भी विचार किया जा सकता है।’ मैंने आश्वस्त किया तो बड़ी
उम्मीद से सोनम मेरी ओर ताकने लगी। फिर बुझे स्वर में पूछने लगी, ‘क्या रास्ता है?’ अंतिम रास्ता बस यही है कि मैं उसके साथ तुम्हारा ब्याह करा दूं। यह होगा कि यह रिश्ता भी जायज हो जाएगा और बच्चा भी, लेकिन यह तभी मुमकिन है, जब तुम दोनों शादी के लिए राजी हो जाओ।’ दिल पर पत्थर रखकर मैंने विकल्प सुझाया।
सोनम के चेहरे पर करुणा के भाव उभरने लगे। मैंने फिर समझाया, ‘देखो बेटी, दोनों घरों की इज्जत तभी पर्दे में रह सकती है। अगर तुम उसके साथ शादी को तैयार हो तो उसका नाम बताओ। मैं उसके घरवालों से बातचीत कर शादी का दबाव बना सकती हूं।’ ‘फिर मेरी परीक्षा, मेरी पढ़ाई का क्या होगा?’ सोनम ने आहिस्ता से कहा। ‘यह तुमने उस वक्त नहीं सोचा, जब उसने तुम्हारे साथ मुंह काला किया?’ मैंने आक्रोशपूर्वक पूछा। मेरा मन जैसे सोनम को भी इस घटना का सहभागी स्वीकारने लगा था।
‘मम्मी इसमें मेरा जरा सा भी कसूर नहीं’ सोनम ने सफाई दी। ‘चलो मैं मान लेती हूं। पहले उस दुष्ट का नाम बता, फिर सोचेंगे क्या किया जा सकता है। पहले बात संभालने की कोशिश की जाएगी, नहीं तो फिर पुलिस का सहारा है।’ मैंने दोहराया। ‘मम्मी…पापा…’ सोनम कहते हुए गई। मैं यहां-वहां देखने लगी, शायद वह अपने पापा के सामने यह घटना बताना चाहती हो। ‘कहां है पापा?’ वे नहीं दिखे तो मैंने पूछ लिया। ‘नहीं मम्मी, मेरा मतलब पापा ही वह आदमी हैं, जिसने मेरे साथ यह गंदा काम किया!’ बमुश्किल सोनम कह पाई। ‘क्या तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है? पापा तेरे साथ ऐसी गंदी हरकत कैसे कर सकते हैं?’ मैंने बौखलाते हुए फटकार लगाई।
‘मम्मी, आपको पता है पापा शराब पीते हैं। एक दिन जब आप घर में नहीं थीं, उन्होंने दारू के नशे में मुझे गंदी नीयत से दबोच लिया। मैं कितना रोई, चीखी-चिल्लाई, गिड़गिड़ाई, पर वे नहीं माने… फिर तो कई बार उन्होंने ऐसी घिनौनी हरकत दोहराई।’ नजरें झुकाए सोनम बोली। ‘और तुमने मुझे बताया तक नहीं? शुरू में बता देती तो यह नौबत नहीं आती’ मैंने व्यथित स्वर में पूछा। ‘कैसे बताती? पापा ने धमकी दे रखी थी कि अगर मम्मी को बताया तो वे तुमको जान से मार डालेंगे। मैं तुमको खोना नहीं चाहती थी।’ सोनम ने बात पूरी की।
अब शक की कोई गुंजाईश नहीं बची थी। बागड़ ही अपने खेत को खाने लग जाए तो क्या होगा? माली ही अपनी बगिया को उजाडऩे पर उतारू हो जाए तो क्या होगा? मुझे लगा जैसे धरती में बहुत बड़ा सुराख हो गया है और मैं उसमें समाती जा रही हूं।
