उस दिन घर पहुंचते ही अजय ने अपने घर से बाहर के खुले वातावरण का निरीक्षण किया। फिर घर चारों ओर से बंद किया। इसके बाद उसने डी.आई.जी. को फोन मिलाया। उन्हें उसने बताया कि यह सुनहरा अवसर है, जब लगभग सभी अपराधी पकड़े जा सकते हैं।

‘लेकिन हमारे वहां पहुंचने से पहले चन्दानी और उसके विशेष आदमी वहां से भाग भी तो सकते हैं।’ डी.आई.जी. ने कहा, ‘वह इतना मूर्ख नहीं कि उसने तहखाने से किसी और गुप्त रास्ते द्वारा भाग निकलने का रास्ता नहीं बनाया हो। यह भी निश्चित है कि भाग निकलने से पहले वह तुम्हारे पिता को भी जीवित नहीं छोड़ेगा।’

अजय ने कुछ देर सोचा। फिर बोला, ‘हम उनमें से किसी को भी भाग निकलने का अवसर नहीं देंगे।‘ इसके बाद अजय ने उन्हें एक तरकीब बताई।

डी.आई.जी. ने अजय की बात बहुत ध्यान से सुनी। कुछ देर सोचा। फिर बोले, ‘यह एक बहुत बड़ा रिस्क है। इसमें तुम्हारी भी जान जा सकती है। इस पर अजय ने कहा, फिर भी कुछ न करने से तो कुछ करना ही अच्छा है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो पता नहीं, वह स्थान कभी हमें मिलेगा भी या नहीं, जहां तहखाने के गुप्त रास्ते निकलते हैं।’

अजय ने डी.आई.जी. से कुछ और विशेष बात की और फिर फोन रख दिया। उसने बहुत होशियारी के साथ कागज पर एक खाका बनाया। फिर से मोड़कर मेज की दराज में डाल दिया, शाम को चन्दानी की पार्टी में अपने साथ ले जाने के लिए। इसके बाद उसने अलमारी खोली। अलमारी की तिजोरी से उसने अपने पिता की एक रिवॉल्वर निकाली, चांदी के समान सफेद चमकदार रिवॉल्वर, जर्मनी की बनी हुई छह गोलियां ही बहुत थीं फिर भी उसने कुछ अलग गोलियां रख लेने का विचार कर लिया।

अपने पिता से उसने बचपन में ही इसका उपयोग सीख लिया था उसका निशाना ऐसा अचूक था कि उसने कभी रिवॉल्वर की एक गोली व्यर्थ नहीं जाने दी थी, परंतु भाग्यवश उसके हाथ से हत्या कभी नहीं हुई। वह अपने काम में इतना निपुण था कि उसने रिवॉल्वर कभी अपने पास रखना उचित नहीं समझा। रिवॉल्वर रखने से इसे चलाने का जोश भी बढ़ जाता है। साल-छह महीने में वह अपना निशाना साफ करने के लिए जंगल की ओर जाता था। कभी-कभी चन्दानी की आज्ञा पर उसके तहखाने में भी अभ्यास कर लेता था, क्योंकि तहखाने से गोली का स्वर बाहर नहीं जा सकता था। चन्दानी को उसके निशाने पर गर्व था। तब चन्दानी उसे हर प्रकार का उत्साह देता था और तब अजय भी चन्दानी की सेवा बहुत लगन से करता था, अपना कर्त्तव्य समझकर, क्योंकि तब अजय की भेंट अंशु से नहीं हुई थी।

अजय ने रिवॉल्वर की नली साफ की समें गोलियां भरीं और फिर बेसब्री के साथ शाम की प्रतीक्षा करने लगा। आज की शाम उसके जीवन को सदा के लिए स्वतंत्र करने के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण थी, यदि वह वास्तव में अपनी योजना में सफल उतरा तो

ठीक शाम पौने छह बजे अजय एम्बेसडर होटल के सामने उपस्थित था। तभी एक व्यक्ति ने उसके पास आकर कहा, ‘बादल‘।

अजय बिना कुछ कहे उसके साथ हो लिया। दस पग पर खड़ी कार के अंदर वे बैठे ही थे कि तभी चार इंस्पेक्टर लापरवाही बरतकर कार के समीप से जाने लगे, कार के दोनों ओर से, परंतु जैसे ही कार के समीप पहुंचे, तीन इंस्पेक्टरों ने तुरंत अपनी-अपनी रिवॉल्वर निकालकर अजय के अतिरिक्त उन तीनों व्यक्तियों की कनपटी पर रख दी। चौथा इंस्पेक्टर रिवॉल्वर लिये कुछ दूर खड़ा सतर्क हो गया। तीनों अपराधियों ने अजय को बहुत आश्चर्य से देखा, घूरकर भी, परंतु अब समय हाथ से निकल चुका था। एक साधारण वैन समीप ही खड़ी हुई थी। इंस्पेक्टर के इशारे पर वैन का पिछला द्वार खुला। उसमें से दस-बारह सिपाही बाहर निकले। लपककर इंस्पेक्टरों के पास आ गए। वैन का चालक भी वैन वहां लाने लगा।

एक इंस्पेक्टर ने अपराधियों को एक-एक करके कार से बाहर निकाला और पुलिस के साथ हथकड़ियां पहना दीं। वैन वहां आ चुकी थी। वैन के अन्दर तफंगों जैसे रंग-रूप में तीन व्यक्ति बैठे हुए थे। वे बाहर निकले और अजय के साथ कार में बैठ गए। इंस्पेक्टर ने अपराधियों को वैन में बिठाया। मिनटों में कार अपने रास्ते बढ़ गई और वैन अपने रास्ते। इंस्पेक्टरों ने अपनी मोटर साइकिलें संभालीं और वैन के पीछे-पीछे चले गए।

यह सब तमाशा देखकर वहां जनता एकत्र हो चुकी थी। किसी की भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। जब सब चले गए तो जनता आपस में एक-दूसरे को आश्चर्य से देखकर भुनभुनाने लगी।

रास्ते में अजय ने अपनी पॉकेट से अपना चश्मा निकाला, जो देखने में बिल्कुल चन्दानी के भेजे हुए चश्मे समान था चन्दानी का चश्मा बाहर से देखने में ऐसा था, जैसे पहनने वाला सब-कुछ देख रहा हो फिर ऐसा चश्मा अजय को मिलने में कठिनाई क्यों होती, जिससे वह वास्तव में सब कुछ देख सके? डी.आई.जी. ने उसके दिए खाके के अनुसार उसे अनेक चश्मे बनवाकर दे दिए थे, जिसमें से एक उसने चुन लिया था। जो कमी रह गई थी, उसे उसने स्वयं पूरा कर लिया था। अजय इसके द्वारा आज सुबह ही चन्दानी के व्यक्तियों को धोखा देने में सफल हो गया था, उस समय जब एक इंस्पेक्टर ने आकर कार के ड्राइवर से लाइसेंस मांगा था। तब पल भर में ही अजय ने चश्मा बदल लिया था और तब उसे बहुत आसानी के साथ चन्दानी के गुप्त अड्डे का पता चल गया था। चन्दानी का अड्डा उसके बंगले का तहखाना ही था, जिसे देखकर अजय को मन ही मन बड़ा आश्चर्य हुआ था। अंतर केवल इतना था कि तहखाने के लिए बंगले की बगल से होकर आना पड़ता था।

जारी…

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