उलझन

पियूष … पियूष बेटा आ जाओ, नाश्ता लग गया है, गीता की आवाज़ सुन कर पियूष ने जवाब दिया ‘‘आ रहा हूं मां बस थोडी देर और”

‘‘आपका बेटा भी कमाल है, इतनी लड़कियां देख चुका है पर कोई पसन्द ही नहीं आती” इतना कहते कहते गीता डाईनिंग टेबल पर आकर बैठ गई, पियूष के पापा नीरज अखबार में से झांकते हुए बोले, बेटा तो मेरा है पर गया अपनी मां पर है जो भी काम करता है, सब्र से सोच समझ कर ही करता है। तुम देखना बहू भी अच्छी ही ढूंढ कर लाएगा”

‘‘पापा यह लड़की देखो, ‘‘पियूष अपना लैपटॉप लेकर आ गया, देखने में तो सुन्दर है ही पढ़ी और समझदार भी है, मैं कई दिनों से चैटिंग कर रहा हूं। ‘‘अरे भई तुम्हें पसंद है तो मिल लो” नीरज ने जवाब दिया, इसी बीच गीता और नीरज ने भी लड़की देख ली, देखने में तो बहुत ही सुन्दर लग रही थी।

गीता ने कहा चलो इस लड़की से मिल लेते हैं और परिवार से भी मिल लेंगे, ‘‘तो फिर कल ही मुम्बई चलते हैं पियूष ने कहा, मुम्बई? गीता चौंकी, इतनी बड़ी दिल्ली में कोई लड़की नहीं मिली? ‘‘ठीक है तो कल सुबह की फ्लाइट से ही चलते हैं” नीरज ने कहा, पियूष ने कंगना को भी फोन कर दिया और सुबह ही मुम्बई पहुंच गये। होटल पहुंचने के एक घण्टे के अन्दर कंगना और उसकी मम्मी भी वहां पहुंच गए। कंगना तो एक ही नजर में सबको भा गई, कंगना की मां मीरा ने बड़े ही सम्मान और आदर के साथ उन्हें घर चलने के लिए कहा, गीता थोड़ा संकोच कर रही थी, तो मीरा ने कहा कि रिश्ते तो संयोग से होते हैं, पर दोस्ती का कोई कारण नहीं होता। तो इसलिए हम अभी से दोस्त बन गए हैं और आप हमारे घर में ही रहेंगे, मीरा का आग्रह इतना प्यारा था कि ना करने की गुंजाइश ही नहीं रही।

कंगना का घर बहुत ही सुन्दर और सलीके से सजा हुआ था, मीरा ने बहुत ही स्वादिष्ट नाश्ते और उनका स्वागत किया और फिर सब ड्राइंग रूम में आकर बैठ गए। मीरा ने बताया कि कंगना के पापा डाक्टर हैं और कुछ देर में आने वाले हैं, गीता घर की सजावट बड़े ध्यान से देख रही थी कि उसने देखा कि बड़े से पोस्टर साइज फोटो में मीरा के साथ राकेश खड़ा था, गीता के चेहरे के भाव देखते हुए मीरा ने कहा ‘‘जी हां, यही है डॉ राकेश, मेरे पति।” गीता बहुत घबरा गई इतने सालों बाद राकेश से सामना होगा, पता नहीं कैसा व्यवहार करेगा। आज वह इतना बड़ा सर्जन है यह सब सोचते सोचते गीता सोफे में धस गई, नीरज और पियूष कंगना से बातचीत में व्यस्त थे।

गीता अपने अतीत में पहुंच गई और उसे राकेश से अपनी पहली मुलाकात याद आ गई। कॉलेज का पहला दिन था, रैगिंग के डर से वह क्लास रूम में छिप कर बैठी थी कि एक स्मार्ट सा लड़का क्लास में आया। उसने बस इतना ही पूछा ‘‘फ्रैशर”? कि क्या वो नई स्टूडेन्ट है, पर गीता की जैसे जान ही निकल गई उसने घबराहट के मारे रोना ही शुरू कर दिया, उसको रोता देख राकेश के तोते ही उड़ गये। उसने उसने गीता को बहुत को समझाना चाहा, परन्तु वह तो कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थी। राकेश वहां से जल्दी ही हट गया कि कहीं गीता उसकी शिकायत ना कर दे, बस यही थी उनकी पहली मुलाकात।

राकेश माउथ ऑरगन बड़ा अच्छा बजाता था अक्सर सीढ़ियों के नीचे महफिल सजती और वो पुराने गानों की धुनें बजाता, गीता भी छिप-छिप कर उसे सुना करती, उसकी कोशिश रहती कि वह उसके गाने मिस ना करें, एक दिन राकेश सीढ़ियां उतर रहा था कि सामने से गीता ऊपर की ओर आ रही थी, इसी बीच राकेश का पांव फिसल गया। गीता ने सम्भालने की पूरी कोशिश की, फिर भी राकेश की कलाई में मोच आ गई। गीता ने अपना रूमाल कस कर उसकी कलाई पर बांध दिया और उसे टैक्सी स्टैण्ड तक छोड़कर आई, क्योंकि राकेश ड्राइविंग नहीं कर सकता था। इतना सब होने के बाद भी दोनों के बीच एक ही शब्द का आदान-प्रदान हुआ और वह था ‘शुक्रिया’ और कुछ नहीं।

अगले दिन सुबह गीता कॉलेज में प्रवेश कर ही रही थी कि एक सुरीली सी आवाज सुनाई दी ‘‘माफ कीजिएगा, क्या आप मेरे साथ कॉफी पीना पसन्द करेंगी? इससे पहले कि गीता कुछ समझ पाती, राकेश ने कहा ‘‘मैं एक बजे कैन्टीन में आपका इन्तजार करूगां” और गीता का जवाब सुने बिना ही वह चला गया।

गीता एक बजे कैन्टीन गई। दोनों में औपचारिक बातें होती रहीं। राकेश ने उसका शुक्रिया अदा किया और कल फिर मिलने के वादे के साथ दोनों अपनी-अपनी क्लास में चले गये, अब रोज रोज मिलने का सिलसिला शुरू हो गया, पर जगह बदल गई अब वह कैन्टीन के पीछे वाले पार्क में बैठते, घण्टों बातें करते। उनको मिले अभी 6- 8 महीने ही हुए थे कि गीता के घर में उसके रिश्ते की बात चल निकली। राकेश को अभी अपना कैरियर बनाना था वह किसी भी हालात में शादी के बन्धन में नहीं बंध सकता था।

गीता की शादी नीरज के साथ तय हो गई। गीता को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। वो दिन भी आ गया जब दोनों को जुदा होना था। दोनों एक दूसरे से गले मिलकर घण्टों रोते रहे, अभी तो ठीक से मिले भी नहीं थे कि जुदा हो गए। राकेश ने जुदा होते हुए कहा कि ‘‘जब भी मुझे याद करना, इज्जत से करना, खुश होकर करना, नीरज के साथ रिश्ता भी पूरी ईमानदारी के साथ निभाना। आप दोनों के बीच मेरी कोई जगह न हो।” और गीता ने ऐसा ही किया। वह नीरज के साथ बहुत खुश थी, पर आज?

वह अभी सोच ही रही थी कि नमस्ते जी की आवाज से उसकी तन्द्रा टूटी। सामने राकेश को देखकर वह नमस्ते करना भी भूल गई। उसको ऐसे सकपकाते देख कर सब हंस पड़े। राकेश गीता को देखकर हैरान था कि इतने सालों के बाद आज मिली भी तो कैसे?

रात को खाने की मेज पर राकेश ने गीता से कहा ‘‘गीता जी मैंने कहीं पहले भी देखा है आपको” किस कॉलेज में थी आप? गीता ने नाम बताया ‘‘ओह तभी मैं परेशान था कि कहां देखा, मैं भी उसी कालेज में था। ‘‘मैंने तो एक साल ही कॉलेज किया था”, इससे पहले गीता अपना वाक्य पूरा करती, नीरज आ गए और गीता के कन्धे पर प्यार से हाथ रखते हुए बोले, फिर हम आ गए और कॉलेज छूट गया, हंसी मजाक के माहौल के बाद सब अपने अपने कमरे में चले गए।

गीता बालकनी में खड़ी थी कि राकेश ने आकर पूछा, कैसी हो गीता? गीता की पलकें नम हो गई, ठीक हूं, जवाब दिया, ‘‘तुम कैसे हो इतने बड़े सर्जन बन गए हो”? ‘‘हां गीता बहुत खुश हूं” मीरा से तो तुम मिल ही चुकी हो, बहुत ही समझदार और सुगढ़ है, राकेश ने जवाब दिया। परन्तु राकेश तुमने सबके सामने हमारे कॉलेज की बात क्यों की। गीता अगर कभी यह बात खुलती कि हम एक ही कॉलेज में थे, और हमने यह बात छिपाई है तो गलत होता।

पर अब क्या होगा राकेश? मैं पियूष के लिए कंगना का हाथ मांगना चाहती थी, अब मैं क्या करूं, कैसे मना करूं?  क्यों? राकेश चौंका, क्या कंगना तुम्हें पसन्द नहीं या और कोई कारण है… नहीं राकेश इस रिश्ते के बाद हम बार-बार मिलेंगे… तो क्या, राकेश ने कहा, गीता हम बच्चे नहीं हैं बड़े-बड़े बच्चों के मां बाप हैं। अपने अपने पार्टनर के साथ पूर्णरूप से खुश हैं, क्या दोस्त आपस में मिलते नहीं, इसमें गलत क्या होगा?

मैं डरती हूं कि दबे अरमां कहीं फिर से आंखें ना खोल दें और दोनों परिवारों की रूसवाई हो। गीता ने कहा, और दो बूंदे उसके गालों पर ढुलक आईं। लेकिन राकेश उच्च व्यक्तित्व वाला समझदार व्यक्ति था। उसने गीता को समझाया कि दोनों बच्चे एक दूसरे को पसन्द करते हैं। इन बच्चों में ही हम अपने अतीत की खुशबू महसूस करेंगे। मैं भी बेफिक्र रहूंगा कि मेरी बेटी तुम्हारी छत्रछाया में है, पियूष मेरे बेटे की कमी को पूरा करेगा। सब ठीक रहेगा, तुम चिन्ता मत करो ‘‘अरे भई क्या बातें हो रही हैं, जरा हम भी तो सुनें” नीरज की आवाज से दोनों सहज होने की कोशिश करते हुए अन्दर आ गए। राकेश ने नीरज का हाथ थामते हुए कहा अब आगे का क्या प्रोग्राम है.. नीरज ने हंसते हुए कहा, चट मंगनी पट ब्याह और क्या जी।

सब सोने के लिए चले गए, लेकिन गीता की आंखों में नींद नहीं थी। वह अभी भी इसी उलझन में थी क्या वह ठीक कर रही है।