पीसीओडी यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी डिसआर्डर को पीसीओएस भी कहा जाता है। उनका कहना है सिंड्रोम शब्द जुड़ जाने से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसके सही कारणों का अभी पता नहीं चला है। आमतौर पर इसे लाइफस्टाइल डिजीज के तौर पर देखा जाता है। इसमें अंडेदानी में छोटी छोटी गांठें बन जाती हैं जिसके कारण कई तरह की हार्मोनल परेशानियां होने लगती हैं।
पीसीओएस के लक्षण
अनियमित मासिक धर्म, बांझपन, मुंहासा, सिर पर के या सिर के किनारे के हिस्सों के बालों का झड़ना, शरीर पर अवांछित बाल जो कि सामान्य तौर पर होंठ के ऊपरी हिस्से, ठुड्डी, चेहरे के किनारे-किनारे, गर्दन में दिखाई देते हैं। मोटापे के साथ-साथ गर्दन के पिछले हिस्से की त्वचा का कालापन व फोल्ड्स जैसे लक्षण भी इसमें दिखाई देते हैं।
पीसीओएस की पहचान कई ब्लड टेस्ट्स, गर्भाशय व अंडाशयों की सोनोग्राफी के साथ-साथ कुछ लक्षणों के जरिए होती हैं। पीसीओएस की गांठों को हटाने के लिए सर्जरी की जरूरत नहीं होती है।

कारण
जल्दी और देर से वयस्कता में पीसीओएस प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है और अक्सर महिलाएं गर्भवती होने में असमर्थ होने पर ही मदद मांगती हैं। उपचार में अंडाशय को अंडे की वृद्धि की निगरानी के साथ अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए दवा शामिल है। गंभीर मामलों में आईवीएफ की जरूरत पड़ सकती है। पीसीओएस में अंडों की संख्या में तेजी से कमी होती है। कुछ गंभीर पीसीओएस रोगियों में समय से पहले रजोनिवृत्ति हो सकती है। इंसुलिन प्रतिरोध को कम करने के लिए दवाओं के साथ-साथ पीरियड्स को नियमित करने के लिए ज्यादातर एक हार्मोनल गोली दी जाती है और पुरुष हार्मोन का स्तर दिया जाता है।
इलाज
पीसीओएस के लिए कोई ज्ञात स्थायी इलाज नहीं है। हार्मोनल संतुलन को सही करने और पीसीओएस को ठीक करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। व्यायाम की तरह जीवनशैली में बदलाव होता है, जो 30 मिनट के लिए सप्ताह में 3-4 बार कार्डियो वर्कआउट का कुछ रूप है। आहार संशोधनों में लक्षणों के 70% नियंत्रण में योगदान होता है। कम कार्बोहाइड्रेट, अधिक ताजे फल और सब्जियां, उच्च प्रोटीन और कम वसा वाले आहार की सिफारिश की जाती है। रिफाइंड आटे, शक्कर, जंक फूड और प्रिजर्वेटिव लोडेड भोजन के अत्यधिक सेवन से बचना चाहिए।
तनाव
पीसीओएस को कम करने के लिए तनाव को दूर करना भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे एंड्रोजन का स्राव घट जाता है।
पीसीओएस आधुनिक समय की बीमारी है जिसके लिए आंशिक रूप से हम स्वयं जिम्मेवार होते हैं और तनाव को कम करके, इसे अच्छी तरह से प्रबंधित और नियंत्रित किया जा सकता है।

Input-डॉ.अंशुमाला शुक्ला-कुलकर्णी, गायनकोलॉजिकल लैप्रोस्कोपिक सर्जन,कंसल्टेंट,कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी हॉस्पिटल