28 साल की सुरभि को हाल ही में पता चला कि उसे पीसीओडी हुआ है। उसे भी अन्य महिलाओं की तरह समझ नहीं आया कि इसका क्या अर्थ है और उसकी बॉडी के साथ क्या गड़बड़ चल रहा है। उसे पीरियड्स अनियमित हो रहे थे और वजन भी लगातार बढ़ता जा रहा था। लेकिन जो चीज उसे परेशान कर रही थी, वह यह थी कि लोग उसकी परेशानी को सही तरह से नहीं समझ रहे थे। उसके खुद के मम्मी- पापा नहीं समझ रहे थे कि सिर्फ डाइट करके वह अपना वजन नहीं कम कर सकती है। उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो पीसीओडी के साथ उसकी लड़ाई कभी कम ही नहीं होगी।

आज इस आर्टिकल में हम एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की ऑब्स्टेट्रिक एण्ड गायनोकोलॉजी डिपार्टमेंट की हेड और सीनियर कन्सल्टेन्टडॉ पूजा ठुकराल से पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं।

क्या है पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)

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पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) बच्चा पैदा करने वाली उम्र की महिलाओं में होने वाला मेटाबॉलिज्म और हार्मोनल डिसआर्डर है।यह हर 10 में से 1 महिला को होता है, जिसकी वजह से आज यह एक आम समस्या बन गई है।

पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को बहुत कम समय तक या लंबे समय तक पीरियड्स होता है, उनके शरीर पर बाल अधिक हो जाते हैं, मुंहासे के साथ मोटापा उन्हें अपना शिकार बनाता है। किशोरावस्था में, पीरियड्स में कम ब्लीडिंग होना या पीरियड्स नहीं होना इस बीमारी का एक संकेत हो सकता है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में ओवरी (अंडाशय) बड़े हो सकते हैं जिनमें थोड़ी मात्रा में तरल पदार्थ होते हैं, जिन्हें फॉलिकल कहा जाता है।

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का कारण

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पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का सटीक कारण अज्ञात है, लेकिन अत्यधिक इंसुलिन और मामूली इंफ्लेमेशन जैसे कुछ कारक इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। दोनों स्थितियां अंडाशय को एण्ड्रोजन का उत्पादन करने के लिए उत्तेजित करती हैं, जिससे अंडाशय की अंडोत्सर्ग की क्षमता प्रभावित होती है। आनुवांशिकता भी पीसीओएस होने की आशंका को बढ़ाती है। वजन कम करने के साथ- साथ रोग की जल्द पहचान और इलाज कराने से टाइप 2 डायबिटीज और हृदय रोग जैसी लंबे समय तक होने वाली जटिलताओं के जोखिम को कम किया जा सकता है। अधिकतर महिलाओं को इसका पता तब चलता है, जब वे प्रेगनेन्ट होने की कोशिश करती हैं क्योंकि इसकी वजह से फर्टिलिटी संबंधी दिक्कत होती है।

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) के लक्षण

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पीसीओएस के लक्षण अक्सर महिला में उसके पीरियड्स शुरू होने के बाद शुरू होते हैं। कुछ मामलों में, पीसीओएस बाद में प्रजनन वर्षों के दौरान विकसित होता है। पीसीओएस के लक्षण महिलाओं में अलग- अलग तरह से प्रकट हो सकते हैं और महिलाओं पर उनका प्रभाव अलग- अलग तरीके से हो सकता है। ज्यादातर मामलों में इसके लक्षण मोटापे के कारण और बढ़ जाते हैं। इसके कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:

अनियमित पीरियड्स: यह पीसीओएस का सबसे आम लक्षण है। इसमें पीरियड्स  35 दिनों से अधिक समय पर हो सकते हैं; चार महीने या उससे अधिक समय तक पीरियड्स नहीं आ सकता है और लंबे समय तक पीरियड्स रह सकता है और बहुत कम या बहुत अधिक ब्लीडिंग हो सकती है।

अतिरिक्त एण्ड्रोजन: पुरुष हार्मोन (एण्ड्रोजन) का स्तर बढ़ सकता है, जिसकी वजह से चेहरे और शरीर पर अधिक बाल (हर्सूटिज्म) हो सकते हैं, बड़े लोगों को मुंहासे या टीन एज में मुंहासे हो सकते हैं, और पुरुषों वाला गंजापन (एंड्रोजेनिक एलोपेसिया) हो सकता है।

पॉलीसिस्टिक ओवरी: पॉलीसिस्टिक अंडाशय बड़े हो जाते हैं और उनमें लिक्विड से भरी कई छोटी थैलियां होती हैं जो अंडों को घेरे रहती हैं।

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का निदान और इलाज 

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पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की पहचान करने के लिए कोई खास टेस्ट नहीं है। इसकी पहचान करने के लिए महिला की मेडिकल हिस्ट्री, पारिवारिक इतिहास, पीरियड्स, वजन में बदलाव और अन्य लक्षणों की जानकारी ली जाती है। पीसीओएस की पहचान करने के लिए निम्नलिखित जांच और परीक्षण किये जा सकते हैं:

शारीरिक जांच जिसमें पेल्विक की जांच भी शामिल है। डॉक्टर को रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स (प्रजनन अंगों) को देखकर हिस्टरेक्टमी (गर्भाशय गांठ), किसी प्रकार की वृद्धि या अन्य असामान्यताओं के संकेत मिल जाते हैं।

पीरियड्स संबंधी असामान्यताएं या एंड्रोजेन की अधिकता जो पीसीओएस के समान हैं, के संभावित कारणों का पता लगाने के लिए कई हार्मोन के स्तर को मापने के लिए रक्त परीक्षण किये जाते हैं। अतिरिक्त रक्त परीक्षण के तौर पर खाली पेट में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड स्तर की जांच और ग्लूकोज टोलेरेंस टेस्ट कराये जा सकते हैं।

ओवरी (अंडाशय) की उपस्थिति और यूट्रस (गर्भाशय) की लाइनिंग की मोटाई को देखने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है।

पीसीओएस के इलाज का उद्देश्य इनफर्टिलिटी, हिर्सुटिज्म, मुंहासे या मोटापा जैसे लक्षणों को मैनेज  करना है। विशिष्ट उपचार में बॉडी वेट को नियंत्रित करना या दवाओं को नियंत्रित करना जैसे लाइफस्टाइल बदलाव शामिल हो सकते हैं।

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से जुड़ी जटिलताएं

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पीरियड्स से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या होने या इनफर्टिलिटी की समस्या होने या शरीर या चेहरे पर अधिक बाल होने, मुंहासे और पुरुषों की तरह गंजापन जैसे अधिक एण्ड्रोजन होने के लक्षण होने पर डॉक्टर से सलाह लें।

पीसीओएस होने से अन्य जटिलताएं हो सकती हैं। इसके कारण मोटापा भी हो सकता है। इससे होने वाली अन्य जटिलताओं में शामिल हो सकते हैं :

टाइप 2 डायबिटीज

हाई ब्लड प्रेशर

कोलेस्ट्रॉल और लिपिड असामान्यताएं, जैसे ट्राइग्लिसराइड्स का अधिक स्तर या उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्रॉल कम होना जिसे कि ‘अच्छा’ कोलेस्ट्राल माना जाता है।

मेटाबोलिक सिंड्रोम, इसके लक्षण से हृदय रोग के जोखिम में काफी वृद्धि का संकेत मिलता है।

नॉन- अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस, लीवर में फैट जमा होने के कारण लीवर में गंभीर इंफ्लेमेशन हो सकता है।

इनफर्टिलिटी, प्रेगनेन्ट होने में दिक्कत

स्लीप एपनिया, नींद न आना

डिप्रेशन और एंग्जाइटी

यूट्रस से असामान्य ब्लीडिंग

एस्ट्रोजन के निरंतर उच्च स्तर के संपर्क के कारण यूट्रस (गर्भाशय) की लाइनिंग का कैंसर (एंडोमेट्रियल कैंसर)

जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावधि मधुमेह) या प्रेगनेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के लिए डाइट और लाइफस्टाइल बदलाव

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शुगर और कार्बोहाइड्रेट कम करना : आइडियल डाइट में विभिन्न तरह के फूड्स, हाई फाइबर, पॉल्ट्री और फिश शामिल होना चाहिए। लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले फूड्स को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए, जैसे- ओट्स, बार्ली, ब्राउन राइस आदि। रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट, मैदा, चावल और चीनी से परहेज करना चाहिए।

सैचुरेटेड और हाइड्रोजेनेटेड फैट से परहेज : सैचुरेटेड फैट कई फूड्स में पाए जाते हैं लेकिन सबसे ज्यादा एनिमल और डेयरी बेस्ड प्रोडक्टस में। ये आपके कोलेस्ट्रॉल और कैलोरी इनटेक को बढ़ा सकते हैं। बेक की गई चीजों में भी फैट होता है, तो इनसे परहेज करना ही सही है।

रंग- बिरंगे फल और सब्जियों का सेवन : हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे लेटयूस और ब्रोकोली का सेवन जरूर करना चाहिए। लाल फल जैसे बेरी में न्यूट्रिएन्ट और एंटी- ऑक्सीडेंट खूब होते हैं। प्लांट न्यूट्रिएन्ट जैसे सूखे हुए बीन्स, लेज्यूम और दाल भी रोजाना की डाइट का हिस्सा होने चाहिए।

जल्दी और कम खाएं, पानी भी पर्याप्त पिएं : पीसीओएस से ग्रसित महिलाओं को वॉटर रिटेन्शन भी हो सकता है। इससे बचने का एकमात्र रास्ता है कि आप खूब सारा पानी पिएं और छोटे मील लेकिन जल्दी- जल्दी खाएं। पीसीओडी में कब्ज होने की भी आशंका रहती है। इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी जरूर पिएं।

सीड्स खाएं : अलसी और तिल के बीज पीसीओडी वालों के लिए बढ़िया हैं। लेकिन इसे रोजाना 20 ग्राम से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। मेथी दाना, दालचीनी आदि के सेवन से भी हार्मोन्स कंट्रोल में रहते हैं।

ग्रीन टी : ग्रीन टी में एंटी- ऑक्सीडेंट खूब होते हैं, जिसे आप दिन में दो बार आसानी से पी सकती हैं।

रेड मीट को कहें ना : 2013 में हुईओ एक स्टडी के अनुसारं रेड मीट के सेवन से इंफर्टिलिटी का जोखिम रहता है। इसलिए बेहतर होगा कि आप इसे न खाएं। हॉट डॉग, सॉसेज और लंचऑन मीट जैसे प्रोसेस्ड मीट से परहेज करना चाहिए। स्टीक, पोर्क और हैमबर्गर भी नहीं खाएं।

वेट मैनेजमेंट : रोजाना आप अपनी डाइट में क्या ले रहे हैं सिर्फ यही जरूरी नहीं है, आप कितनी मात्रा में ले रहे हैं, यह भी बहुत जरूरी है।

नियमित एक्सरसाइज : नियमित तौर पर एक्सरसाइज करने से आप कैलोरी बर्न करते हैं, मसल मास बिल्ड करते हैं। इससे इंसुलिन रेसिस्टेंस भी कम होता है, कोलेस्ट्रॉल कम होता है और टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम होता है।

डिनर का समय : रात का खाना सोने से 3-4 घंटे पहले जरूर खा लें।

क्या- क्या खाएं

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अनाज : ओट्स, बार्ली, म्यूसली, किनुआ, ब्रैन, मल्टी ग्रेन ब्रेड, ब्राउन ब्रेड

दाल : हरी मूंग, चना दाल, बीन्स, पीली मूंग

डेयरी प्रोडक्ट्स : स्किम या टोंड मिल्क, सोय मिल्क, टोफू, पनीर

फल : बेरी, ऑरेंज, पीच, पपीता, पेयर, तरबूज, सेब

नट्स : अखरोट, अलसी के बीज, बादाम

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