आयुर्वेदिक तथा यूनानी चिकित्सा के मनीषियों के अनुसार वर्षा के वजह कीटाणु ज्यादा पनपने लगते हैं। इसलिए आहार-विहार संबंधी सावधानियां बरतना जरुरी होता है। वर्षा ऋतु में पुराने जौ, चावल और शहद का सेवन करना चाहिए। भोजन में प्रतिदिन शहद का प्रयोग बेहद हितकारी है। हरड़ और चिरायता का इस्तेमाल श्रावण-भादों के माह में अत्यधिक फायदेमंद होता है।
हरड़ का चूर्ण और सेंधा नमक मिलाकर खाना बेहद लाभदायक होता है। यकृत क्रिया को दुरुस्त रखने के लिए नींबू का सेवन करना चाहिए। इन दिनों तुलसीदल का इस्तेमाल फायदेमंद रहता है।
जामुन सेवन पाचन क्रिया के लिए हितकारी होता है और इसमें लौह तत्त्व ज्यादा होता है। भोज्य वस्तुओं में हल्के ताजे और सुपाच्य चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। वर्षा ऋतु में गरम रस वाले, रुखे, कसैले, कड़वे चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। हरी सब्जियों, विशेषकर पत्तियों वाली सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि कीड़े मकोड़े होने का खतरा रहता है। मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए। वर्षा ऋतु के सावन महीने में शाक, सत्तू और भादों में दही नहीं खाना चाहिए। आयुर्वेद में उल्लेख है-‘श्रावण साग न भादों दही क्वार करेला कार्तिक भट्टी।
पीने का जल उबालना चाहिए। नदी तथा तालाब का जल नहीं प्रयोग करना चाहिए। बासी चीजों को और बाजार में खुले हुए और कटे हुए फल नहीं लेने चाहिए। चूंकि वर्षा ऋतु में बल कम हो जाता है और पाचन शक्ति भी धीमी हो जाती है, इसलिए रात्रि जागरण, धूप और ओस में सोना नुकसानदायक माना जाता है। मेंहदी की तासीर शीतल मानी जाती है। यह पैरों तथा हाथ पर लगाना शरीर की गर्मी को शांत करने का काम करती है।
व्याधियां:- जठराग्नि की कमजोरी और संक्रमित पानी से वर्षा ऋतु में अपचन, उल्टी, दस्त, हैजा, आंव इत्यादि उदर की व्याधियां तो होती हैं साथ ही ग्रीष्म काल के दौरान उत्पन्न खून की उष्णता भी
अकस्मात् पैदा होकर खून के विकारों को भी बरसात के शुरु में पनपाती है। समस्त शरीर घमौरियों, नन्हीं फुसियों एवं कुछ बड़े-बड़े फोड़ों, जिन्हें आम भाषा में शमीला कहते हैं, इन दिनों में होते हैं। पोखरों, नाली-नालों में वर्षा काल का जल इकट्ठा होता है जो दूषित, मैला एवं गंदा होता है जिसे पीने से उदर की बीमारियां पैदा होती हैं एवं स्नान करने से चर्म रोग दाद, खुजली, फोड़ा-फुंसी इत्यादि भी पैदा होते हैं। इस मौसम में वायु का प्रकोप ज्यादा होने के वजह शरीर के तमाम भागों में पीड़ा आदि वायु रोग भी पैदा होते हैं।
इलाज:-इस मौसम में उक्त खामियों और कारणों को खत्म करने के लिए अनेक साधन आयुर्वेद में खासतौर से उल्लेखित हैं। इस मौसम की व्याधियों के निदान के लिए सामान्य इलाज और एहतियातों पर ही ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है जो निम्नवत हैं:
-रक्त विकार जन्य व्याधि खाज-खुजली से पीड़ित मरीज के तौलिए, रुमाल, बनियान, जांगिया आदि का प्रयोग दूसरे व्यक्ति न करें। नाखून भली-भांति कटे हुए और स्वच्छ होने चाहिए। खाज-खुजली रोग से छुटकारा पाने के लिए नीम की पतियों को भली-भांति धोकर और फिर उन्हें पानी में उबालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए। प्रतिदिन नीम के साबुन से स्नान करना लाभदायक रहता है।
-जामुन की गुठली की मींग, आम की गुठली की मींग एवं भुनी हुई छोटी हरड़-तीनों वस्तुओं को बराबर मात्रा में लेकर कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम सुबह-शाम छाछ (मठे) के साथ नियमित रुप से इस्तेमाल करने से दस्त बंद हो जाते हैं। इससे मधुमेह मरीज को भी फायदा होता है। बालकों के दस्त में बबूल की कोमल पत्ती, अनार की कली और जीरा मिलाकर दें। मात्रा अवस्थानुसार रखें।
-चमेली का तेल 100 ग्राम, कपूर की दो टिक्की डालकर रखें। घूलने पर तेल मालिश करने से खुजली की व्याधि में में कारगर फायदा होता है अथवा सूखे आंवले के चूर्ण को चमेली के तेल में मिलाकर लगाएं। पुरानी से पुरानी खुजली खत्म हो जाएगी।
-अगर उल्टी जल्द बंद करनी हो, तो दो आम के पत्ते और एक मुट्ठी पुदीने की पत्तियों की चटनी पीस लें। इसे एक कप जल में घोलकर एक चम्मच शहद के साथ पिला दें। उल्टी बंद हो जाएगी।
-अमरुद खाने से दस्त साफ होता है साथ ही पाचन क्रिया ठीक रहती है। इससे कब्ज नहीं होता है किंतु खाली पेट अमरुद का सेवन कदापि न करें जठराग्नि मंद हो, तो अमरुद के साथ नमक मिलाकर खाना लाभकारी रहता है।
-मूली छीलकर बारीक काटकर यथारुचि सेंधा नमक और नींबू रस डालकर भोजन के पश्चात् प्रयोग करने से अपच या अजीर्ण में लाभप्रद है।
-बहेड़े के फल को जलाकर उसके चूर्ण में काला नमक मिलाकर देने से अतिसार खत्म हो जाता है। मात्रा एक ग्राम से 3 ग्राम है। छोटे बच्चों के पतले दस्त, पेचिश में 6 ग्राम सौंफ लेकर 75 मिली. जल में उबालें। जब जल आधा रह जाए, तब उतारकर उसमें एक ग्राम काला नमक डाल दें। बच्चों को बारह ग्राम में तीन मर्तबा देने से अधिक फायदा होता है।
-वमन में आम और जामुन के पत्तों का स्वरस पकाकर ठंडा करके दें।
-बरसात में अंगुलियां सड़ने पर उसमें बबूल और मेंहदी की पतियां पीसकर लगाते हैं।
-फोड़ा-फुसी, खुजली में सत्यानाशी के बीजों को पीसकर सरसों के तेल में पकाकर उस तेल को लगाएं अथवा नीम के किल्ली को गरम तेल में डालकर उसे फोड़ा-फुसी पर लगाया जाता है।
फोड़े के लिए नीम की छाल को भी घिसकर लगाया जाता है।
-दाद-खाज, खुजली से राहत पाने के लिए सरसों के तेल में आक (मदार, अकवन) के पत्तों का रस और हल्दी मिलाकर गर्म कर लें। इसे छानकर साफ शीशी में भर लें। इसे लगाने से चर्म रोगों से छुटकारा मिलेगा। सेम के पत्तों को दाद पर लगाया जाए, तो वह ठीक हो जाती है।
-उदर में अजीर्ण या अपचहोने पर अजवाइन, सौंठ, हरड़, सेंधा नमक बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रखें। एक-एक चम्मच सबेरे-शाम व रात्रि जल से लें।-आंवले को भूनकर गुठली निकाल कर पीसकर घी में भूनें। फिर जीरा, अजवाइन, सेंधानमक स्वादिष्ट-सा होने लायक मिलाकर थोड़ी भूनी हींग भी मिला दें। इसे सुखाकर गोली बनाकर देने से भूख बढ़ती है, पाचन होता है, डकार, चक्कर और दस्त में फायदा होता है।