सिजोफ्रेनिया पीड़ित व्यक्ति को है प्यार की जरूरत: Schizophrenia Treatment
Schizophrenia Treatment

Schizophrenia Treatment: अभी तक लोग सिजोफ्रेनिया के प्रति जागरुक नहीं हैं, जबकि दुनिया में 2.4 करोड़ लोग सिजोफ्रेनिया से प्रभावित हैं। यह दुनिया भर में हर 300 लोगों में से एक है। सिजोफ्रेनिया किसी व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और व्यवहार को इस तरह प्रभावित करता है कि वे अक्सर खुद को दूसरों से कटा हुआ महसूस करने लगते हैं। सिजोफ्रेनिया को एक मनोवैज्ञानिक बीमारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसका मतलब यह है कि इस स्थिति वाले मरीज वास्तविकता से संपर्क खो देते हैं और वे यह अंतर करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं कि क्या वास्तविक है और क्या नहीं है। सिजोफ्रेनिया में व्यक्ति के सामने एक भ्रम की स्थिति पैदा होती है। वह अपने भ्रम को ही सच मानता है। उसके मन में एक ऐसा कठोर विश्वास होता है, जो सबूतों के बावजूद नहीं बदलता है। इस तरह की धारणाओं के कारण व्यक्ति के मन में शक भी पैदा होता है। उसे लगता है कि अजनबी वास्तव में रोगी का जिक्र कर रहे हैं या उसके बारे में बात कर रहे हैं, या कभी-कभी अधिक वह असामान्य या विचित्र भी लग सकते हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति के मन की मान्यताएं कठोर होती हैं और एक व्यक्ति उन्हें बदलने में असमर्थ होता है, भले ही इस बात के पुख्ता सबूत हों कि उनकी सोच सच नहीं है।

दूसरी ओर, मतिभ्रम में व्यक्ति उन चीजों को सच समझने लगता है, जो वास्तव में मौजूद नहीं हैं। हो सकता है कि वह ऐसी चीजें देखने लगे, जो उस समय वहां पर नहीं है या ऐसी आवाजें सुन सकता है, जो वास्तव में वहां नहीं हैं। किसी बाहरी व्यक्ति को, यह ऐसा प्रतीत हो सकता है जैसे कोई व्यक्ति अपने आप में बड़बड़ा रहा हो या कभी-कभी बिना किसी स्पष्ट कारण के हंस रहा हो।

Schizophrenia
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वहीं सिजोफ्रेनिया के लक्षणों की तीसरी मुख्य श्रेणी में अव्यवस्थित सोच शामिल है, जिसका साफ असर लोगों के बोलने के तरीके में दिखाई देता है। जिन लोगों की सोच भ्रमित या अव्यवस्थित होती है, वे ऐसे वाक्य बनाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं जो समझ में आ सकें। उनका यह अव्यवस्थित व्यवहार ही इस बीमारी का एक प्रमुख लक्षण है। सिजोफ्रेनिया के मरीज असामान्य तरीके से व्यवहार कर सकते है- मसलन, वे ऐसे कपड़े पहन सकते हैं, जो मौसम या सामाजिक स्थिति के अनुकूल ना हो या फिर वे बच्चों जैसा व्यवहार कर सकते हैं या फिर बहुत अधिक हिल-डुल सकते हैं।

जबकि सिजोफ्रेनिया के ये लक्षण सभी में दिखाई देते हैं, लेकिन वहीं कुछ लक्षण ऐसे भी होते हैं, जिन्हें पकड़ना अधिक कठिन है, हालांकि ये रोगियों पर उतना ही प्रभाव डालते हैं। इन्हें नकारात्मक लक्षण कहा जाता है। इस तरह के लक्षणों को पहचानने के लिए किसी मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ती है। इनमें बोलने की कमी, आत्मविश्वास की कमी, रुचि की कमी, भावनात्मक अभिव्यक्ति की कमी या अन्य लोगों से दूरी बनाना शामिल है।

सिजोफ्रेनिया को एक क्रॉनिक बीमारी माना जाता है। इसका निदान तब किया जाता है जब लक्षण कम से कम एक महीने तक मौजूद रहते हैं और ये व्यक्ति के जीवन व उसकी कार्यप्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। सिजोफ्रेनिया को समझने के लिए, अधिकांश शारीरिक बीमारियों की तरह मानसिक स्वास्थ्य को समझना भी महत्वपूर्ण है। सिजोफ्रेनिया का एक बहुत ही मजबूत जैविक आधार है- इसमें डोपामाइन जैसे कई न्यूरोट्रांसमीटर के साथ-साथ मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली में भी परिवर्तन होते हैं।

हालांकि, सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति के लिए एक सामान्य जीवन जीना काफी कठिन हो सकता है, लेकिन सही इलाज की मदद से इसे व्यवस्थित अवश्य किया जा सकता है। इस बीमारी से पीड़ित मरीज आमतौर पर यह नहीं पहचान पाते हैं कि वे इससे पीड़ित हैं और इसलिए यदि किसी प्रियजन में लक्षण दिख रहे हैं, तो ऐसे में उनकी मदद करने के लिए आप आगे आएं। इस बीमारी के लक्षणों को मैनेज करने के लिए आमतौर पर मनोचिकित्सक द्वारा कुछ दवाएं दी जाती है। इन दवाओं का उद्देश्य सिजोफ्रेनिया में शामिल न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन को ठीक करना है।

चूंकि यह एक क्रॉनिक बीमारी है, इसलिए एक बार जब सिजोफ्रेनिया के सक्रिय लक्षण दूर हो जाते हैं, तो व्यक्ति के लिए काउंसिलिंग अहम भूमिका निभाती है। काउंसिलिंग के जरिए व्यक्ति को रोजमर्रा की जिंदगी की चुनौतियों से निपटने से मदद मिलती है। व्यक्ति को उन लक्षणों से निपटने के साथ-साथ अपने रूटीन को व्यवस्थित करने, सामाजिक कौशल को बढ़ाने और एक सेहतमंद जीवनशैली को जीने में मदद मिलती है। इसके अलावा, इस बीमारी से निपटने के लिए दवाइयों के साथ-साथ परिवार का सहयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण है।